ऋतुपर्ण दवे
कोविड-१९ पर जितने भी नये शोध या खुलासे सामने आ रहे हैं हर बार स्क्रिप्ट कुछ अलग होती है। समूची दुनियामें बेबसीका आलम है। भारतमें अब पहली बार हालात बदसे बहुत बदतर हुए हैं। अब रोजाना संक्रमितोंके नये और अक्सर रिकॉर्ड बनाते आंकड़े डराते हुए सामने आते हैं। उससे भी ज्यादा दिखने और सुनाई देनेवाली जानी-अनजानी मौतोंकी संख्या चिन्ताजनक है। सबसे ज्यादा शर्मसार और रोंगटे खड़े करनेवाला सत्य शमसान और कब्रस्तानभी दिखानेसे नहीं चूक रहे हैं। चिताके लिए लकडिय़ां भी नसीब नहीं हो पा रही हैं। हैरान और हलकान करनेवाली बड़ी हकीकत यह भी है कि शवोंकी लंबी कतार तो कहीं अंतिम संस्कारके लिए टोकन जैसी व्यवस्था करनी पड़ रही है। लेकिन फिर भी सवाल बस इतना कि जब पता है कोरोना २०२१ में जानेवाला नहीं और वक्त ठहरनेवाला नहीं तो दोनोंमें तालमेल बैठानेकी जुगत क्यों नहीं। सरकार, हुक्मरान और आवाम तीनोंको इस कठिन दौरमें मिल-जुलकर सख्त फैसले लेने होंगे। जिन्दगीकी खातिर कड़े फैसले ही कोरोनाकी चुनौती और नये बदलते रूपोंसे बजाय लडऩेके, कड़ीको तोडऩेके लिए सहज और आसान उपाय होंगे। बस सख्ती और ध्यान इसपर देना होगा कि इस बार फिर पहले जैसी कड़ी तिबारा जुड़ न पाये वरना कोरोना कौनसे रूपमें आ जाय।
कोरोना संक्रमणकी कड़ी तोडऩेका हमारा और दुनियाका बीते बरसका बेहद अच्छा अनुभव रहा। लापरवाही और कोरोनाके बेअसर हो जानेके भ्रममें सबके सब इतने बेफिक्र हुए कि मुंहसे मास्क हटाये दो गजकी दूरी घटा पूरी मजबूतीसे आये कोरोनाको पहचान नहीं पाये। कई राज्योंके उच्च न्यायालयोंने हालातपर चिन्ता जतायी है। जितनी स्वास्थ्य व्यवस्थाएं हैं, जनसंख्या और महामारीके आंकड़ोंके सामने ऊंटके मुंहमें जीरे समान है। बस सबसे अहम यह है कि बेहद सीमित संसाधनोंसे ही लोगोंकी जान बचाना है। यह बहुत ही बड़ी चुनौती है। हालात वाकईमें मेडिकल इमरजेंसी जैसे हैं। किसी कदर बढ़ते संक्रमणको केवल और केवल रोकना होगा, बल्कि दोबारा न हो इसके लिए पाबन्द होना होगा। पहले भी और अब भी कोरोनाकी भयावहताके लिए हम खुद ही जिम्मेदार थे और हैं। दरअसल जनवरी-फरवरीमें वैक्सीनेशनकी शुरुआतके साथ कोरोनाके आंकड़ोंमें तेजीसे आयी गिरावटके चलते लोगोंने जैसे मास्कको भुला दिया। आम तो आम खास भी बिना मास्कके दिखने लगे और दो गजकी दूरी नारों एवं विज्ञापनोंतक सीमित रह गयी। बस यहींसे नये म्यूटेशनने घेरना शुरू कर कुछ यूं चुनौती दी कि संक्रमणके हर दिन नये हालात जैसे रिकॉर्ड बनानेपर आमादा हो गये। इसका मतलब यह कतई नहीं कि वैक्सीन कारगर नहीं। दुनियाभरके चिकित्सक और मेडिकल सुबूत बताते हैं कि वैक्सीनेशनके बाद संक्रमणके खतरोंके गंभीर परिणाम बेहद कम हो जाते हैं। वैक्सीनेशनको लेकर कुतर्क बकवास है। दुनियाकी जानी-मानी मेडिकल जर्नल द लांसेटकी हालिया रिपोर्टका दावा है कि कोरोना संक्रमणका अधिकतर फैलाव हवाके जरिये हो रहा है। एयर ट्रांसमिशनके सुबूत भी दिये गये। एक इवेण्टका उदाहरण भी रखा जिसमें एक संक्रमितसे ५३ लोगोंमें फैला। यह भी दावा किया गया कि कोरोना वायरसका संक्रमण बाहर यानी आउटडोरकी तुलनामें भीतर यानी इण्डोरमें ज्यादा होता है। लेकिन यदि उचित वेण्टीलेशनकी सुविधा है तो डर कम हो जाता है। एक शोधका भी जिक्र है जिसमें बिना खांसे, छींके लोगों यानी साइलेण्ट ट्रांसमिशनसे ४० प्रतिशततक फैलनेका दावा है जो चिन्ताजन है। वहीं होटलोंके अलग कमरोंके उन लोगोंका भी जिक्र है जो कभी एक-दूसरेके संपर्कमें नहीं आये, बल्कि करीबी कमरोंके संक्रमितोंकी ओरसे आयी हवाके जरिये संक्रमणका शिकार हुए।
नये शोधके अनुसार खांसने, छींकनेसे ही नहीं, बल्कि संक्रमितोंके सांस छोडऩे, बोलने, चिल्लाने या गाना गानेसे भी फैल सकता है। वायरसके बेहद तेजीसे फैलनेकी यही बड़ी वजह है। पहलेके दावेको कि कोरोना संक्रमण खांसते या छींकते समय निकलनेवाले बड़े ड्रॉपलेट्ससे या फिर किसी इंफेक्टेड सतहको छूनेसे ही फैलनेके दावोंको खारिज जरूर किया है लेकिन बार-बार हाथ धोने और आसपासकी सतहोंको साफ करने जैसी बातोंपर ध्यान रखना जरूरी भी बताया है। निश्चित रूपसे कोरोनाके बदलते तौर-तरीकोंसे निबटनेकी रणनीतिके तहत ही सारे अहतियात बरतनेकी सलाह दी गयी है। सार्स सीओवी-२ के चिंताजनक स्वरूपों यानी वैरिएंट्समें सबसे ज्यादा १७ ब्रिटिश हैं जो ब्रिटेनके बाद समूचे यूरोप और अमेरिकातक फैला। उसके बाद ब्राजीलियाईके भी १७ वैरिएंट हैं फिर दक्षिण अफ्रीकी १२ वैरिएंटके मिलनेसे चिन्ता बढ़ गयी है। इनके जांचमें भी जल्द पकड़ आनेको लेकर अक्सर संदेह हो जाता है। समूचा चिकित्सा जगत नये वैरिएंटके आक्रमणको लेकर परेशान है जिसकी तुलना फेफड़ोंपर इतना तेज आक्रमण है।
ऐसी स्थितिमें सुरक्षा प्रोटोकॉलमें तुरंत बदलाव किये जानेकी जरूरत है। भारतमें संक्रमणके हालातोंको देखते हुए लांसेट कोविड-१९ कमीशनके इंडिया टास्क फोर्सके सदस्योंने सलाह दी है कि सरकारको तत्काल दस या उससे अधिक लोगोंके मिलने-जुलने या जुटनेपर अगले दो महीनेके लिए रोक लगा देनी चाहिए। भारतकी दूसरी कोरोना लहरके प्रबंधनके लिए जरूरी कदम जारी रिपोर्ट बेहद चिन्ताजनक है जो कहती है कि जल्द ही देशमें हर दिन औसतन १७५० मरीजोंकी मौत हो सकती है जो जूनके पहले सप्ताहमें २३२० तक पहुंच सकती है! इस बार ४० दिनसे कम समयमें भी कोरोनाके नये मामलेमें आठ गुना वृद्धि हुई है पिछले साल सितंबरमें इतने ही मामले आनेमें ८३ दिनका समय लगता था। नियमित स्वास्थ्य परीक्षण भी नहीं रोका जाना चाहिए वरना संकट और गहरा सकता है। बच्चोंके नियमित लगनेवाले टीकाकरणकी सुविधाओंको भी नजरअंदाज करना ठीक नहीं होगा, क्योंकि इसे जच्चा-बच्चाके स्वास्थ्यपर काफी असर पड़ सकता है। देश बहुत ही नाजुक स्थितिमें है। विशेषज्ञोंके दावों और रिसर्चसे साफ हो गया है कि संक्रमण रोकना बेहद कारगर और आसान था जो आगे भी रहेगा। दुनियाकी अबतककी तमाम महामारियोंकी तुलनामें सबसे सस्ता और कारगर उपाय मास्क और दूरी दो हाथ हर किसीको नसीब है। लेकिन सब कुछ जानते हुए भी इससे हुए परहेजने हालात कहांसे कहां पहुंचा दिये। लगता नहीं कि पूरे देशके लिए एक अध्यादेश लागू हो जिसमें सबको कमसे कम छह महीनेके लिए उम्र (बच्चों, बड़ों, बूढ़ों) के हिसाबसे तय मास्क या मुंह, नाकको ढकने एवं परस्पर दूरी रखनेकी अनिवार्यता हो। अब भी इस जरा-सी सावधानीसे महामारीको चुनौती दी जा सकती है। काश अब भी आम और खास इसे समझ पाते।