कोरोना महामारीके सन्दर्भमें राहत और गम्भीर चिन्ताकी बातें एक साथ सामने आयी हैं। केन्द्र सरकारके सलाहकार वैज्ञानिकोंका आकलन है कि कोरोना संक्रमणका उच्चतम बिन्दु (पीक) तीनसे पांच मईके बीच आ सकता है। इसके पश्चात्ï संक्रमणकी गतिमें गिरावटका क्रम शुरू हो सकता है। खास बात यह है कि यह आकलन पूर्वके अनुमानसे एक सप्ताह पहले ही व्यक्त किया गया है। इसका मुख्य कारण वर्तमानमें संक्रमणकी भयावह तेजी है। इस समय देशमें संक्रमणके नये मामलों और मृतकोंकी संख्यामें काफी तेजी आयी है। विगत दस दिनोंसे संक्रमणके तीन लाखसे अधिक मामले सामने आ रहे हैं जबकि शनिवारको केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालयकी ओरसे जारी आंकड़ोंके अनुसार पिछले २४ घण्टोंमें नये संक्रमितोंकी संख्या चार लाखसे अधिक हो गयी और यह आंकड़ा चार करोड़ १९९३ पर पहुंच गया। इसी दौरान ३५२३ मरीजोंकी मृत्यु हुई। यह अबतककी सर्वाधिक संख्या है, जो गम्भीर चिन्ताका विषय है। देशमें अब कुल संक्रमितोंकी संख्या एक करोड़ ८७ लाखसे अधिक हो गयी है। मार्चमें कोरोनाकी रफ्तार बढऩे लगी थी और अप्रैलमें यह बेकाबू हो गया। अकेले अप्रैलमें ६६ लाखसे अधिक मामले आये। यह स्थितिकी भयावहताका संकेतक है। अप्रैलमें ही कोरोनासे ४५ हजार ८६२ लोगोंकी मृत्यु हुई। इस समय देशमें कोरोनाके ३२ लाखसे अधिक सक्रिय मरीज हैं। राहतकी बात यह भी है कि पिछले २४ घण्टेमें संक्रमणसे दो लाख ९९ हजार ९८८ मरीज ठीक हुए हैं। देशमें अबतक एक करोड़ ५६ लाख ८४ हजार ४०६ मरीज कोरोनाको परास्त करनेमें सफल हुए हैं। बेकाबू कोरोनासे जो हालात उत्पन्न हुए हैं उससे निबटनेके लिए केन्द्र और राज्य सरकारें पूरी तरह सक्रिय हैं। संसाधनोंकी कमीकी दिक्कतें भी हैं लेकिन ४० से अधिक राष्टï्र भारतकी सहायताके लिए सक्रिय हो गये हैं। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी निरन्तर हालातपर नजर रखे हुए हैं और मैराथन बैठकोंका भी सिलसिला जारी है। शुक्रवारको मंत्रिपरिषदकी बैठकमें उन्होंने कोरोना प्रबन्धन और भावी चुनौतियोंपर गहन मंत्रणा कर रणनीति तैयार की है, जिससे कि कोरोनाको परास्त किया जा सके। लेकिन इस महायुद्धमें सबसे बड़ी भूमिका आमजनकी है। जनताको यदि कोरोनासे मुक्ति चाहिए तो उसे पूरी तरह सतर्क और सजग रहना होगा। दिशा-निर्देशोंका सख्तीसे अनुपालन करना होगा। साथ ही टीकाकरणके लिए पूरी तरह तैयार रहनेकी भी जरूरत है।
आपसी रिश्तोंमें मजबूती
भारतमें कोरोना महाविस्फोटसे निबटनेके लिए मिल रहा वैश्विक समर्थन भारतकी मानवताके प्रति सेवाकी प्रतिबद्धताका ही परिणाम है, क्योंकि भारतने कोरोना महासंकटके समय अमेरिका सहित विश्वके तमाम देशोंकी जिस तरह मदद की है, उससे दुनियाके देशोंमें भारतके प्रति विश्वास बढ़ा है। यही कारण है कि आज जब भारत गहरे संकटमें फंसा है तो अमेरिकाको भी अपने रुखमें परिवर्तन करना पड़ा है। दरअसल पद सम्भालनेके बाद अमेरिकी राष्टï्रपति जो बाइडेनने कोरोना टीकेके निर्माणमें जरूरी कच्चे मालके निर्यातपर रोक लगा दी थी, जिसके चलते दुनियाका सबसे बड़ा टीका अभियान धीमा पड़ गया था। इस पाबन्दीको हटानेके लिए भारतके साथ उनकी डेमोक्रेटिक पार्टीमें भी दबाव बनाया जा रहा था और इसे लेकर उनकी आलोचना लगातार हो रही थी। इस दबावके कारण भी अमेरिका टीका निर्माणके लिए कच्चा माल देनेको तैयार हुआ। दुनियाके कई देशोंके आगे आनेके बाद जो बाइडेनने प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीसे बात कर मददका भरोसा दिया और अमेरिकासे दो ट्रांसपोर्ट विमान आक्सीजन सिलेण्डर, रेग्यूलेटर, रैपिड डायग्नोस्टिक किट, एन ९५ मास्क और पल्स आग्जीमटरकी खेप भारत भेजी है। इससे दोनों देशोंके बीच रिश्तोंमें और मजबूती आयगी। वैसे जो बाइडेनके सौ दिनका कार्यकाल भारतके लिए सहयोगात्मक ही रहा है। दोनों देशोंके रिश्तोंका पुराना इतिहास है लेकिन जो बाइडेन जिस तरहसे वैश्विक कार्यबल बनाकर भारतकी मददके लिए हाथ बढ़ाया है, वह सराहनीय और प्रशंसनीय है। भारतमें जिस तरह आक्सीजनकी कमी देखी गयी। उसे देखते हुए अमेरिका आक्सीजन उत्पादन और उससे जुड़ी सप्लाई भेजनेका विकल्प भी तैयार कर रहा है। इसके साथ ही संयुक्त राष्टï्र संघ और चीनने भी मददकी पेशकश कर भारतके मनोबलको बढ़ाया है। अमेरिकाके साथ भारतके रिश्तोंमें मजबूती वैश्विक शान्तिके लिए जरूरी है। अमेरिकाने जिस तरह भारतकी मदद की है वह दोनों देशोंके सम्बन्धोंको प्रगाढ़ बनानेमें सहायक होगा।