सम्पादकीय

प्रादेशिक स्तरपर गुटबाजीपर अंकुश


रमेश सर्राफ धमोरा     

पिछले सात वर्षोंसे केंद्रमें भाजपा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीके नेतृत्वमें सरकार चला रही है। वहीं देशके आधेसे अधिक प्रदेशोंमें भाजपा एवं उनके गठबंधनके साथी दलोंकी मिली-जुली सरकारें चल रही हैं। पहली बार भाजपाने देशमें राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपतिका चुनाव भी अपने बलपर जीता था। भाजपा लगातार पूरे देशमें मजबूत होती जा रही है। देशके एक दर्जन प्रदेशोंमें भाजपाके मुख्य मंत्री हैं। कई प्रदेशोंमें पार्टी गठबंधनकी सरकारमें शामिल है। पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड जैसे प्रदेशोंमें भाजपा मुख्य विपक्षी दल है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीके नेतृत्वमें राजनीतिक रूपसे भाजपा एक सशक्त पार्टी बन चुकी हैं। आज देशमें कांग्रेस सहित कोई भी ऐसी राजनीतिक पार्टी नहीं है जो राष्ट्रीय स्तरपर भाजपासे सीधा मुकाबला कर सके। अब तो कांग्रेस भी भाजपाके सामने पस्त पड़ चुकी है।

भाजपा जैसे-जैसे बड़ी पार्टी बनती जा रही है। वैसे-वैसे दूसरे दलोंके नेता भी लगातार भाजपामें शामिल हो रहे हैं। उनमेंसे कई लागोंको बड़े पद भी दिये गये हैं। बाहरसे आनेवाले नेताओंके कारण पार्टीमें वर्षोंसे काम कर रहे लोगोंको असहज स्थितिका सामना करना पड़ रहा है। इससे पार्टीमें बहुतसे प्रदेशोंमें कलह होने लगी है। पिछले दिनों पश्चिम बंगाल विधानसभाके चुनावमें भाजपाकी जबरदस्त हवाको देखकर तृणमूल कांग्रेस सहित कांग्रेस एवं वामपंथी दलोंके बहुतसे नेता भाजपामें शामिल हुए थे। जिनमेंसे बहुत लोगोंने टिकट लेकर विधायकका चुनाव भी जीता था। उन्हींमेंसे एक बड़े नेता मुकुल राय तृणमूल कांग्रेससे भाजपामें आये थे। परन्तु बंगालमें भाजपाकी सरकार नहीं बनने एवं मुकुल रायको नेता प्रतिपक्ष नहीं बनानेसे नाराज होकर वह वापस तृणमूल कांग्रेसमें चले गये। उनके साथ और कई विधायककी भी तृणमूल कांग्रेसमें जानेकी चर्चा जोरोंसे है। इससे भाजपाकी स्थिति असहज हो रही है। पश्चिम बंगालके मूल भाजपाई भी पार्टीके बड़े नेताओंपर दलबदलूको प्रश्रय देनेसे नाराजगी जता रहे हैं। ऐसे ही असममें २०१६ के चुनावमें असमगण परिषदसे आये सर्वानंद सोनोवालको मुख्य मंत्री बनाया गया था। हालके चुनावके बाद कांग्रेससे आये हेमंत विश्व शर्माने भाजपा नेतृत्वपर खुदको मुख्य मंत्री बननेका दबाव बनाया। जिसके चलते उनको मुख्य मंत्री बनाया गया। इससे पहले भाजपामें दबावसे कोई भी व्यक्ति पद नहीं ले सकता था। परन्तु अब स्थिति बदली हुई है। मध्यप्रदेशमें ज्योतिरादित्य सिंधियाके भाजपामें आनेके बाद उनके समर्थकों एवं भाजपाके पुराने कार्यकर्ताओंमें अब भी ३६ का आंकड़ा देखा जा सकता है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनावसे पहले भाजपामें दूसरे दलोंसे आये नेताओंको प्रत्याशी बनानेसे पार्टीको नुकसान उठाना पड़ा था। बाहरसे आये नेताओंके जीतकर विधायक बननेके बाद उनके पार्टी छोडऩेकी लगातार खबरें आती रहती है। कर्नाटकके मुख्य मंत्री येदियुरप्पाने कांग्रेसके विधायकोंको तोड़कर भाजपाकी सरकार तो बना ली। परन्तु उन्हें लगातार अपनी ही पार्टीके उन विधायकोंका विरोध झेलना पड़ रहा है जो बाहरसे आये हुए लोगोंके कारण मंत्री बननेसे वंचित रह गये। गुजरातमें मुख्य मंत्री विजय रूपाणी एवं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सीआर पटेलके मध्य वर्चस्वकी जंग चल रही है। गोवामें मुख्य मंत्री प्रमोद सावंत एवं स्वास्थ्यमंत्री विश्वजीत राणेके मध्य कोरोनाके दौरान खुलकर बयानबाजी हुई थी। झारखंडमें जरूर भाजपाने प्रदेशमें सत्ता गंवानेके बाद एक सही फैसला लेते हुए अपने पुराने आदिवासी नेता बाबूलाल मरांडीको फिरसे पार्टीमें शामिल करवा कर पुरानी गलतीको सुधारा है। हरियाणामें भी कांग्रेससे आये चौधरी वीरेंद्र सिंह, राव इंद्रजीत सिंह जैसे नेताओंका पार्टीको एक बार तो लाभ मिल गया। परन्तु पिछले विधानसभा चुनावमें वहां भाजपाको सरकार बनानेमें दूसरे दलोंका सहारा लेना पड़ा था। जम्मू-कश्मीरमें कट्टरपंथी महबूबा मुफ्तीकी पीडीपीके साथ भाजपाकी सरकार बनानेका सभी जगह विरोध हो रहा था। वह तो अच्छा रहा कि भाजपा आलाकमानने समय रहते पीडीपी सरकारसे बाहर आकर वहां राष्ट्रपति शासन लगवा दिया। जिससे वहां भाजपाका आधार समाप्त होनेसे बच गया था। राजस्थानमें भी सत्ता गंवानेके बाद भाजपा अंतर कलहसे गुजर रही है। पूर्व मुख्य मंत्री वसुंधरा राजे अगले चुनावमें खुदको मुख्य मंत्री प्रोजेक्ट करनेके लिए दबाव बना रही है। केंद्रीय नेतृत्व प्रदेशमें नये लोगोंको आगे बढ़ा रहा है। संघ पृष्ठभूमिसे आये सतीश पूनियाको प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भाजपाके केंद्रीय नेतृत्वने वसुंधरा राजेको संकेत भी दे दिया है कि आनेवाला समय नये लोगोंका होगा। समय रहते उन्हें नये लोगोंको स्वीकार करना होगा। यदि वसुंधरा राजे अपनी जिदपर अड़ी रही तो पार्टी नेतृत्व उनके खिलाफ कड़े फैसले लेनेसे भी नहीं हिचकेगा।

पिछले विधानसभा चुनावमें जब वसुंधरा राजेको मुख्य मंत्री प्रोजेक्ट कर चुनाव लड़ रहा जा रहा था। तब प्रचारके दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदीकी मीटिंगमें खुलकर नारे लगते थे कि मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं और वही हुआ प्रदेशकी जनताने वसुंधरा राजेके नेतृत्वको नकारते हुए प्रदेशमें कांग्रेसकी सरकार बनवा दी। उसके छह महीने बाद हुए लोकसभा चुनावमें प्रदेशकी सभी २५ सीटोंपर भाजपाको जीता कर मोदीको दूसरी बार प्रधान मंत्री बननेका मार्ग प्रशस्त किया था। भाजपाके केंद्रीय नेतृत्वको दूसरे दलोंसे आनेवाले लोगोंको सीधे महत्वपूर्ण पद नहीं देना चाहिए। उनको कुछ समयतक संघटनमें काम करनेके बाद ही पद दिया जाना चाहिए। दुनियाकी सबसे बड़ी पार्टीका तमगा हासिल करनेवाली भाजपाको सदस्य संख्या बढऩेके साथ ही अपने मूल कैडरको भी पूर्ववत मजबूत बनाये रखना चाहिए। तभी भाजपा सभीको साथ लेकर चलनेवाली पार्टी बनी रह पायगी। वरना पार्टी कार्यकर्ताओंकी नाराजगीका खामियाजा भाजपाको भारी पड़ सकता है। पार्टी आलाकमानको अपनी प्रादेशिक इकाइयोंको भी अनुशासित बनाना चाहिए। प्रादेशिक नेताओंमें व्याप्त गुटबाजीपर समय रहते अंकुश लगानी चाहिए। ताकि पार्टी और अधिक मजबूत बनकर उभर सके।