जाले (दरभंगा)(आससे)। कृषि विज्ञान केंद्र जाले में उर्वरक अनुज्ञप्ति पर चल रहे 15 दिवसीय प्रशिक्षण के क्रम में बुधवार को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के गेहूँ एवं मरुआ के विशेषज्ञ वैज्ञानिक डॉ. सतीश सिंह ने गेहूँ की खेती एवं उसका बीज उत्पादन विषय पर विस्तार से जानकारी दिया। बतौर प्रशिक्षक के रूप में पहुँचे श्री सिंह ने बताया कि गेहूँ की बुआई हर जगह हो चुकी है एवम अधिकांश कृषकों द्वारा पहली सिंचाई भी कर ली गई है।
उन्होंने पहली सिंचाई 21 से 25 दिनों पर अवश्य कर लेने का आग्रह करते हुए बताया कि 21 से 25 दिनों के बीच गेहूँ के जड़ों के विकास का समय होता है। पहला पटवन के बाद खेतों की मिट्टी हल्की हो जाती है। इससे गेहूँ के छोटे-छोटे पौधों के जड़ों को फैलने में आसानी होती है तथा अधिकाधिक मात्रा में उससे पौधे निकलते हैं। उसके बाद उन खेतों में आवश्यकता के अनुसार दिए जाने वाले नाइट्रोजन का एक चौथाई हिस्सा से टापड्रेसिंग करने की बात कही।
उन्होंने खेतों में बीज बुआई के 34 दिनों के बाद ही उसमें खर-पतवार दिखने पर खासकर चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार दिखने पर टू,फोर-डी नामक दवा का छिड़काव करने का सुझाव दिया। उन्होंने बताया कि उक्त दवा का दो एम एल प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से लाभ होता है एवम गेहूँ में गाभा निकलने के समय अगर खेतों में नमी की कमी दिखने पर सिंचाई अवश्य करे व सिंचाई के बाद बचे हुए एक चौथाई भाग नाइट्रोजन का उपरिवेशन करें।