- रवि शंकर। नए कृषि कानूनों को लेकर कुछ किसान संगठनों के विरोध-प्रदर्शन के बीच केंद्र सरकार ने रबी सीजन की छह फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ा दिया है। सबसे ज्यादा बढ़ोतरी सरसों और मसूर में 400-400 रुपये प्रति क्विंटल की हुई है, जबकि एमएसपी में सबसे कम बढ़ोतरी जौ में हुई है। सरकार ने गेहूं, जौ, चना, मसूर, सरसों और सूरजमुखी के सरकारी खरीद मूल्य में इजाफा किया है। जौ की एमएसपी 1600 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 1635 रुपये हुई है। वहीं चने की एमएसपी में 130 रुपये की वृद्धि की गई है। अब इसकी कीमत 5230 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित की गई है। मसूर की एमएसपी में 400 रुपये, सरसों की 400 रुपये और सूरजमुखी की एमएसपी में 114 रुपये का इजाफा करने का फैसला किया गया है। इससे एमएसपी को लेकर किसान संगठनों के कुछ तबकों द्वारा किए जा रहे दुष्प्रचार पर विराम लगना चाहिए।
मौजूदा समय में सरकार खरीफ और रबी दोनों सीजन में उगाई जाने वाली 23 फसलों के लिए एमएसपी तय करती है। फसल की बोआई से पहले ही हर साल उसकी एमएसपी तय की जाती है। इसका एक मकसद यह भी होता है कि इससे किसान बोआई के लिए फसलों का रकबा बढ़ाने या घटाने का फैसला आसानी से कर सकें। हालांकि, नए न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर किसान संतुष्ट नजर नहीं आ रहे।
किसानों की मांग रही है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार, फसलों के दाम उनकी लागत के अनुपात में डेढ़ गुना किए जाएं। स्वामीनाथन आयोग ने लागत में केवल खाद, बीज, कीटनाशक और सिंचाई आदि पर आने वाले खर्च को नहीं, बल्कि किसान के श्रम को भी जोड़ा था। उस हिसाब से फसलों की कीमत कहीं अधिक बनती है।
फिर किसानों की मांग यह भी है कि एमएसपी की गारंटी दी जाए, क्योंकि उनका अनुभव है कि स्थानीय व्यापारी सरकारी तय कीमतों पर फसल नहीं खरीदते, उससे काफी कम और मनमानी दर पर खरीदते हैं। इसलिए किसान चाहते हैं कि तय एमएसपी के नीचे ट्रेडिंग न हो। कृषि प्रधान देश भारत में खेती और किसान कितनी मुश्किलों से गुजर रहे हैं, यह जानने के लिए किसी अध्ययन या शोध की जरूरत किसी को नहीं होनी चाहिए।