- Deen dayal Upadhyaya Birth Anniversary सरलता और सादगी की प्रतिमूर्ति पंडित दीनदयाल उपाध्याय बहुमुखी एवं विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। वे एक कुशल संगठक एवं मौलिक चिंतक थे। सामाजिक सरोकार एवं संवेदना उनके संस्कारों में रची-बसी थी। उनकी वृत्ति एवं प्रेरणा सत्ताभिमुखी नहीं, समाजोन्मुखी थी। एक राजनेता होते हुए भी उन्होंने जीवन के सभी पक्षों एवं प्रश्नों पर गहन चिंतन किया और उसका युगानुकूल चित्र खींचने और उत्तर देने का सार्थक प्रयास भी। इस नाते वे एक राजनेता से अधिक राष्ट्र-ऋषि थे।
आज भारतीय जनता पार्टी जिस विशिष्ट वैचारिक अधिष्ठान और मजबूत सांगठनिक आधार पर खड़े व टिके रहने का दावा करती है, उसके वास्तविक शिल्पी पंडित दीनदयाल उपाध्याय ही थे। बल्कि यह कहना चाहिए कि उन जैसे ध्येयनिष्ठ साधकों की साधना एवं समर्पण के बल पर ही भाजपा को सत्ता की सिद्धि प्राप्त हो सकी है। भारत की चिति एवं प्रकृति के मौलिक व सूक्ष्म द्रष्टा थे- पंडित दीनदयाल उपाध्याय।
विदेशी सत्ताएं तो परकीय दृष्टिकोण से संचालित थीं ही, स्वतंत्र भारत में भी ऐसे राजनीतिक नेतृत्व एवं दलों की कमी नहीं रही, जिनका दर्शन पश्चिम-प्रेरित रहा या जो भारत और इंडिया का फर्क नहीं जानते रहे और यदि जानते भी रहे तो उनका हित दोनों के अंतर को बनाए रखने में ही सधता रहा। वे भारत की समस्याओं का अध्ययन-अवलोकन पश्चिम के दृष्टिकोण से ही करते रहे। उन्होंने भारत और उसकी समस्याओं को खंड-खंड करके देखा, इस विखंडनवादी दृष्टिकोण के कारण ही वे भारत का समग्र चित्र प्रस्तुत करने में विफल रहे।
दीनदयाल जी का मानना था कि चाहे वह पूंजीवाद हो या साम्यवाद, समाजवाद हो या व्यक्तिवाद, इन सभी दर्शनों की अपनी-अपनी कुछ सीमाएं-लघुताएं हैं। क्योंकि ये वाद के संकीर्ण-संकुचित दायरे में आबद्ध रही हैं, इनकी जड़ें विदेशी हैं और इन सबने मनुष्य का चिंतन-विश्लेषण टुकड़ों में किया है। जब तक मनुष्य का समग्रता से चिंतन नहीं किया जाएगा, तब तक उसकी समस्याओं का भी समग्र समाधान नहीं किया जा सकेगा।