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वर्ष 2030 तक कोयले के आयात पर बढ़ जाएगा भारत का खर्च,


  • नई दिल्ली । ग्लासगो में हाल में सम्पन्न सीओपी26 में निर्धारित लक्ष्य और व्यक्त संकल्पबद्धताओं की पूर्ति की कसौटी पर भारत अलग तरह की चुनौतियों को सामना कर रहा है। कोयले के चलन को चरणबद्ध ढंग से खत्म करने की राह में खड़ी बाजार की शक्तियां, दुरूह वित्तीय स्थितियां और कई अन्य कारणों से भारत के लिए सूरत ए हाल अलग नजर आ रही है।क्लाइमेट ट्रेंड्स ने सीओपी26 के निष्कर्षों को समझने और उन्हें खंगालने के लिए एक वेबिनार आयोजित किया।

इस दौरान सीओपी के बाद उसके प्रभाव तथा भारत किस तरह से निम्न कार्बन युक्त भविष्य अपना सकता है, इसके उपायों पर चर्चा की गई। डब्ल्यूआरआइ इंडिया में जलवायु कार्यक्रम की निदेशक उल्का केलकर ने कहा कि भारत की विकास संबंधी चुनौतियों और जलवायु से जुड़ी रणनीतियों को सिर्फ कोयले तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता। हालांकि कोयला निश्चित रूप से चर्चा का प्रमुख केंद्र है। उन्होंने कहा, अक्षय ऊर्जा अब कोयले से बनने वाली बिजली के मुकाबले अधिक प्रतिस्पर्धी और किफायती है लेकिन बाजार की शक्तियां 500 गीगावाट स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता की तरफ नहीं ले जा रही हैं।

वर्ष 2030 तक हमारी कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता का 57 प्रतिशत गैर जीवाश्म ईंधन स्त्रोतों से होगा लेकिन हम भारत द्वारा कोयले के आयात पर किए जाने वाले खर्च पर नजर डालें तो यह इस वक्त एक लाख करोड़ प्रतिवर्ष से कुछ नीचे है जो 2030 तक तीन लाख करोड़ तक पहुंच सकता है। सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के विश्लेषक सुनील दहिया ने कहा कि अगर इस बात पर गौर करें कि कोयला आधारित ऊर्जा क्षमता को चरणबद्ध ढंग से समाप्त करना भारत के लिए कितना आसान या मुश्किल है तो यह देखना होगा कि खासकर वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने के लक्ष्य के हिसाब से वर्ष 2030 में भी हम कोयले से उतनी ही बिजली बना रहे होंगे, जितनी आज बना रहे हैं।