पटना

पटना: अब ‘शिक्षा’ की डगर चलेंगे विजय चौधरी


शिक्षा पर जितना खर्च, उस हिसाब से आउटकम नहीं

 -डॉ. लक्ष्मीकान्त सजल-

पटना। राज्य की नीतीश सरकार के मंत्री विजय कुमार चौधरी अब ‘शिक्षा’ की डगर चलेंगे। शिक्षा की डगर पर चुनौतियां भी कम नहीं होंगी। इस मायने में कि कोरोना काल में लाखों बच्चों की पढ़ाई छूट गयी है। पंचायती राज एवं नगर निकायों की महिला शिक्षक इच्छित तबादले का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं। पुरुष शिक्षक भी इच्छित जगह पर जाने के लिए पारस्परिक तबादले के इंतजार में हैं। पंचायती राज एवं नगर निकायों के शिक्षकों की प्रोन्नति की प्रक्रिया भी अटकी हुई है।

माना जा रहा है कि नये मंत्री विजय कुमार चौधरी के शिक्षा विभाग का कार्यभार संभालने के बाद उनके समक्ष प्रेजेंटेशन होगा। प्रेजेंटेशन के माध्यम से उन्हें विभाग की संरचना, राज्य सरकार द्वारा चलायी जा रहीं योजनाएं, उसके कार्यान्वयन की अद्यतन स्थिति, केंद्र प्रायोजित योजनाएं और उसके संचालन हाल, शिक्षा विभाग की उपलब्धियों एवं चुनौतियों से रू-ब-रू कराया जायेगा। आपको बता दूं कि वर्तमान में राज्य सरकार के विभागों में सबसे बड़ा शिक्षा विभाग ही है।

इसके अधीन सात ऐसे निदेशालय हैं, जो आकार की दृष्टि से अपने आपमें किसी विभाग से कम नहीं हैं। इन सात निदेशालयों में प्राथमिक शिक्षा निदेशालय, माध्यमिक शिक्षा निदेशालय, उच्च शिक्षा निदेशालय, जन शिक्षा निदेशालय, शोध एवं प्रशिक्षण निदेशालय, प्रशासनिक निदेशालय तथा मध्याह्न भोजन योजना निदेशालय शामिल हैं। इससे इतर बिहार शिक्षा परियोजना परिषद, राज्य शिक्षा शोध एवं प्रशिक्षण परिषद तथा उच्चतर शिक्षा परिषद भी आकार की दृष्टि से किसी बड़े निदेशालय से कम नहीं हैं।

विभाग के अधीन चार परीक्षा बोर्ड एवं दो निगम हैं। एक बिहार राज्य शैक्षणिक आधारभूत संरचना विकास निगम है, तो दूसरा बिहार राज्य पाठ्यपुस्तक निगम। प्राथमिक शिक्षा निदेशालय के अधीन 72 हजार, तो माध्यमिक शिक्षा निदेशालय के अधीन तकरीबन आठ हजार स्कूल हैं। उच्च शिक्षा निदेशालय के जिम्मे 13 पारम्परिक विश्वविद्यालय हैं। इन पारम्परिक विश्वविद्यालयों के अधीन ढाई सौ अंगीभूत एवं इतने ही सम्बद्ध कॉलेज हैं। शोध संस्थानों के साथ राजकीय महाविद्यालय हैं, सो अलग।

लेकिन, हालात बताते हैं कि शिक्षा पर जितना खर्च है, उस हिसाब से आउटकम नहीं है। शिक्षा बजट का तकरीबन तीस फीसदी हिस्सा ‘प्रारंभिक शिक्षा’ पर खर्च हो रहा है। करीब पंद्रह फीसदी हिस्सा माध्यमिक शिक्षा पर खर्च होता है। और, करीब पंद्रह फीसदी हिस्सा ही उच्च शिक्षा पर भी खर्च होता है। खर्च के हिसाब से आउटकम लाना नये शिक्षा मंत्री के लिए चुनौती होगी। विभाग के ही आंकड़ों की मानें, तो हर साल जितने बच्चे मैट्रिक में आते हैं, उनमें आधे हाई स्कूल की शिक्षा पूरी करने के पहले ही ड्रॉपआउट हो जाते हैं यानी पढ़ाई छोड़ देते हैं।

प्लस-टू तक की शिक्षा पूरी करने वाले बच्चों में आधे ही उच्च शिक्षा में दाखिला लेते हैं, जबकि आधे ड्रॉपआउट हो जाते हैं। आंकड़े बताते हैं कि तकरीबन एक लाख बच्चे स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड से पढऩे जाते हैं। स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड से पढऩे वालों के विशलेषण से यह नया तथ्य सामने आया है कि अधिकांश बच्चे पढऩे के लिए उड़ीसा जा रहे हैं। आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि हाल के वर्षों में भुवनेश्वर एक नये एजुकेशन हब के रूप में उभर रहा है।

उच्च शिक्षा से इतर प्रारंभिक शिक्षा में यह सुनिश्चित करना कम बड़ी चुनौती नहीं होगी कि पहली से आठवीं कक्षा के हर बच्चे के हाथ में किताब हो। दरअसल, पहली से आठवीं कक्षा के बच्चों को पाठ्यपुस्तक खरीदने के लिए पैसे दिये जाते हैं। आठवीं तक की हर कक्षा के हर बच्चे या उनके माता-पिता के खाते में पाठ्यपुस्तकों के मूल्य की राशि जाती है। लेकिन, उस पैसे से बच्चों के लिए उनके माता-पिता द्वारा पाठ्यपुस्तकें खरीदी ही जाय, ऐसा नहीं होता। इससे प्रभावित होने वाले बच्चों के हाथों तक किताबें नहीं पहुंचतीं।

बहरहाल, वर्तमान शैक्षिक परिदृश्य के मद्देनजर शिक्षा की कठिन डगर पर वैसे निर्णयों की आवश्यकता जतायी जा रही है, जिससे पहली से प्लस-टू कक्षा तक की शिक्षा में ड्रॉपआउट पूरी तरह रुके और बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले। उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात बढ़ाने के साथ ही उच्च शिक्षण संस्थानों की शैक्षिक व्यवस्था को दुरुस्त करना भी कम बड़ी चुनौती नहीं होगी।