काबुल, पिछले साल सत्ता संभालने के बाद से तालिबान (Taliban) महिलाओं पर तमाम तरह के प्रतिबंध लगाता रहा है। इसी कड़ी में ताजा आदेश के मुताबिक अब छात्राएं विश्वविद्यालयों (University) में पढ़ाई नहीं कर सकेंगी। इससे देश के महिला विश्वविद्यालयों की छात्राओं में अपने भविष्य को लेकर अविश्वास पैदा गया है। इस आदेश के विरोध में काबुल (Kabul) में देश के सबसे बड़े विश्वविद्यालय के बाहर छात्राओं ने काले कपड़ों में प्रदर्शन किया।
‘हमारे साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है’
23 साल की नर्सिंग छात्रा अमीनी कहती हैं कि, ”हमें पिजरे में कैद पंछी की तरह अनुभव हो रहा है। हम एक दूसरे के गले लगे, चीखे और रोए कि आखिर ऐसा हमारे साथ ही क्यों हो रहा है। वो अपनी तीन बहनों के साथ यहां आईं थी। जिनमें से दो का स्कूल जाना पहले ही बंद करवा दिया गया है। उन्हें देर रात आए इस नए आदेश का पता सोशल मीडिया के जरिए चला।”
पुरुष छात्रों के लिए नियम अलग
ठंड की छुट्टियों के चलते पूरे देश में विश्वविद्यालयों की सेवाएं बंद कर दी गईं है लेकिन छात्र परीक्षाओं और पुस्कालयों में पढ़ाई के लिए जा सकते हैं। इस बीच यहां ये भी जान लेना जरूरी है कि, तालिबान आंदोलन का गढ़ रहे कांधार में पुरुष छात्रों के लिए अलग कक्षाओं में परीक्षा देन की सुविधा थी। इन कक्षाओं में छात्राओं की पढ़ाई हो रही थी लेकिन अब इसे भी बंद कर दिया गया है।
‘कोई सुनने वाला नहीं’
एक तालिबान सुरक्षाकर्मी ने बताया की कुछ महिलाओं को सुबह तक नहीं पता था की उन्हें पढ़ाई से रोक दिया गया है। अपना नाम ना बताने की शर्त पर काबुल में लॉ के एक छात्र ने बताया कि, ”मेरी बहन कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई कर रही है। मुझे पता था कि ये खबर सुनकर वो सदमे में आ जाएगी इसलिए मैंने उस पिछली रात कुछ नहीं बताया। इससे तालीबान की निरक्षरता के साथ इस्लाम और मानव अधिकारों के बारे में उनका कम ज्ञान उजागर होता है। सब डरे हुए हैं और यही हालात बने रहे तो भविष्य बहुत ही खराब होगा। इस आदेश के विरोध में कुछ छात्र अपनी परीक्षा छोड़कर बाहर आ गए।”
किया था ये वादा
गौरतलब है कि, सत्ता में आने के बाद तालिबान ने वादा किया था कि उनका रवैया सख्त नहीं होगा, लेकिन उन्होंने तुरंत वही पुराने कड़े इस्लामिक नियम थोप दिये जो 1996 से 2001 के दौरान अपनी सत्ता के समय लागू किए थे। पिछले महीनों में महिलाओं पर प्रतिबंधों में तेजी से इजाफा हुआ है। उनके लिए अधिकतर सरकारी नौकरीयों के रास्ते बंद हो गए है। उनके अकेले शहर में घूमने, पार्क या बागीचों में जाने पर रोक लगा दी गई है।
‘अभी बची है उम्मीद’
काबुल में पश्तों साहित्य की एक 29 वर्षीय छात्रा ने कहा कि, ”हमारे पास कुछ भी करने का अधिकार नहीं है और हमारी बात सुनने वाला यहां कोई नहीं है। हम विरोध भी नहीं कर सकते। जीवन के हर पहलू में हमें अभिशप्त होना पड़ रहा है। हमारे पास ना तो नौकरी है ना ही हम कहीं जा सकते हैं। हमने अपना सबकुछ खो दिया है। हालांकि, उन्हें अब भी उम्मीद है कि सर्दियों की छुट्टियों के बाद तालिबान इन प्रतिबंधों को वापस ले लेगा। वो कहती हैं कि हम आने वाले तीन महीने इंतजार करेंगे। शायद वो अपना आदेश वापस ले लें।”