उल्लेखनीय है कि आज अधिकांश रेलवे स्टेशनों और प्रमुख स्थलों पर कैमरे भी लगे हैं। पुलिस प्रशासन ऐसे आंदोलनों में वीडियोग्राफी भी कराती है। रेल संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ रेलवे अधिनियम की धारा 151 के तहत मामला दर्ज होता है जिसमें अधिकतम सात वर्ष की सजा का प्रविधान है। लेकिन चूंकि कानून व्यवस्था राज्य का विषय है, लिहाजा उपद्रवियों के खिलाफ कार्रवाई जैसे मामलों में राज्यों की सहमति भी लेना होता है। हालांकि नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के दौरान उपद्रवियों से 80 करोड़ रुपये की वसूली को लेकर रेलवे बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष विनोद यादव ने काफी कुछ कहा था, लेकिन बाद में कुछ खास हो नहीं सका।
यह सही है कि धरना और प्रदर्शन लोकतांत्रिक प्रणाली का हिस्सा हैं, लेकिन उसके कुछ वैध तरीके हैं। धरने, आंदोलनों और हड़तालों पर संविधान के अनुच्छेद 19(2) से लेकर 19(4) तक में कुछ शर्तो और प्रतिबंधों के साथ बातें कही गई हैं। लेकिन छात्रों की बात तो अलग, राजनीतिक दल भी इसकी परवाह नहीं करते और अपनी बात दिल्ली तक पहुंचाने के लिए वे रेलवे को ही निशाना बनाते हैं। हाल के वर्षो में आंदोलनों में सबसे आसान निशाना भारतीय रेल बनती रही है और उस कारण रेल संपत्ति को नुकसान होता है।
आंदोलन का दुष्प्रभाव : हाल के वर्षो में ऐसे कई आंदोलन हुए हैं जिसका रेलवे से प्रत्यक्ष रूप से कोई संबंध नहीं रहा है, फिर भी अनेक बार उसे निशाना बनाया गया। वर्ष 2008 में महाराष्ट्र में भारतीय रेल द्वारा आयोजित एक प्रतियोगिता परीक्षा देने गए बिहार के छात्रों के साथ महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ताओं ने गुंडागर्दी की थी, जिसके खिलाफ बिहार में रेलगाड़ियों पर गुस्सा फूटा था और भारी आगजनी हुई। बीते डेढ़ दशक में राजस्थान में कई बार हुए गुर्जर आंदोलन में रेलवे को भारी नुकसान हुआ। बाद में जाट आंदोलन की चपेट में वर्ष 2011 में उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा आया। अदालत की सख्ती के बाद रेलों का आवागमन सुचारु तरीके से आरंभ हुआ। बाद में हरियाणा में मिर्चपुर कांड को लेकर रेल की पटरी ही निशाना बनी तो सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी घटनाओं पर सरकार की निष्क्रियता को बेहद खतरनाक मानते हुए कहा था कि हम अराजकता की ओर बढ़ रहे हैं और ताकतवर लोगों का समूह राज्य को बंधक बना रहा है, जो कानून से ऊपर नहीं हो सकते हैं। वर्ष 2020-21 में कृषि कानून विरोध आंदोलन के कारण पंजाब, हरियाणा और देश के कई हिस्सों में रेलें रोकी गईं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि पिछले दो-ढाई दशक में ही देशभर में दर्जनों बार अनेक जगहों पर रेलों के आवागमन को बाधित किया गया है।
संबंधित अधिनियम : रेल अधिनियम बनाते समय नीति निर्माताओं को इस बात का अंदाजा नहीं था कि स्वाधीन भारत में ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। रेल पटरियों पर धरना देने वालों के खिलाफ अगर रेलवे अधिनियम के तहत मामला दर्ज होता है और वे दोषी पाए जाते हैं तो आम तौर पर दो हजार रुपये जुर्माना या तीन माह कैद या दोनों का प्रविधान है। इस अधिनियम के तहत आरपीएफ और जीआरपी दोनों मामला दर्ज कर सकते हैं। सार्वजनिक संपत्तियों के मामले में सार्वजनिक संपत्ति नुकसान रोकथाम अधिनियम 1984 है, जिसमें दोषी को पांच वर्षो की सजा या जुर्माना दोनों हो सकता है। इस कानून में परिवहन और संचार साधनों के साथ सभी सार्वजनिक संपत्तियां शामिल हैं। बीते डेढ़ दशक से इसे कड़ा बनाने को लेकर काफी चर्चाएं उच्चतम अदालतों में हुई हैं और सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। तमाम संबंधित नियम-कानून होने के बावजूद रेल पटरियां रेल संचालन की जगह आंदोलन का आक्रमण बिंदु बनती जा रही हैं। विडंबना यह कि विवाद की विषय वस्तु कुछ और हो, परंतु धरना-प्रदर्शन के लिए मुख्य निशाना रेल पटरी को ही बनाया जाता है।
आवश्यक वस्तुओं की ढुलाई पर असर : भारतीय रेल तमाम आवश्यक वस्तुओं मसलन कोयला, लौह अयस्क, सीमेंट, अनाज, उर्वरक, पेट्रोल, चूना पत्थर, नमक और चीनी जैसी वस्तुओं की ढुलाई का सबसे बड़ा जरिया है। लेकिन आंदोलनों और धरनों के चलते बीते वर्षो में भारतीय रेल के माल राजस्व को काफी नुकसान हो रहा है। वर्ष 2015-16 में जहां इससे माल राजस्व की हानि 632 करोड़ रुपये थी, वह बढ़ते हुए वर्ष 2020-21 में 1472 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है।