आगरा। सिकंदरा के अरतौनी में दबंगों ने मामूली विवाद में युवक को घर से बुलाया। मारपीट के बाद रस्सी से गला घोंट दिया। मरा समझ कर गड्ढे में खोद कर गाड़ दिया। रात जानवरों ने मांस नोच कर खाने का प्रयास किया। घायल हालत में युवक कब्र से निकल कर भागा। 13 दिन से अस्पताल में इलाज हो रहा है।
इतनी जघन्य घटना पर थाना पुलिस की करगुजारी देखिए कि पीड़ित का मुकदमा तक दर्ज नहीं किया। पुलिस आयुक्त से पुलिस के बिक जाने की शिकायत के बाद बुधवार को चार युवकों पर मुकदमा दर्ज किया गया।
अरतौनी के रहने वाली रामवती ने बताया कि 18 जुलाई को क्षेत्र में दो पक्षों में विवाद हुआ था। एक पक्ष के एक युवक के हाथ में धारदार हथियार से चोट लगी थी। वो उनके घर के बाहर खड़ा होकर गाली गलौज कर रहा था। 24 वर्षीय बेटे रूप किशोर ने उसे वहां से जाने को कहा।
इसके बाद रात 11 बजे के करीब क्षेत्र के ही अंकित, गौरव, करन और आकाश घर आए। प्रधान पुष्पेंद्र के द्वारा बुलाने की बात कहकर बेटे को साथ ले गए। गांव के बाहर खेतों की ओर ले जाकर बेटे को बुरी तरह पीटा। रस्सी गले में डालकर बेटे का गला घोंट दिया। उसे मरा हुआ समझकर जमीन में गड्ढा खोद कर गाड़ दिया।
कुछ घंटों बाद किसी जंगली जानवर ने खून सूंघ कर गड्ढे को खोद दिया। बेहोश बेटे के शरीर का मांस नोचकर खाने लगा। दर्द के कारण होश आने पर बेटा जैसे – तैसे कब्र से निकल कर पास रहने वाले लोगों के घर के बाहर पहुंचा। लोगों ने उसे बचाया और परिवार को सूचना देकर इलाज के लिए ले गए। पुलिस को पूरे मामले की जानकारी दी गई।
पुलिस ने तहरीर लेकर मेडिकल करवाया पर कार्रवाई नहीं की। कई दिन चक्कर लगाने के बाद परिवार ने वकील के साथ जाकर पुलिस आयुक्त जे. रविन्दर गौड से शिकायत की। उनके आदेश पर पुलिस ने पीड़ित परिवार को बुलाकर दोबारा तहरीर लेकर मुकदमा दर्ज किया।
घायल अस्पताल में परिवार कर्जदार
रूपकिशोर के भाई दीपक ने बताया कि जूता कारीगर रूपेश का निजी अस्पताल में इलाज चल रहा है। छह माह की बेटी है। पत्नी को टीबी की। बीमारी है। परिवार कर्ज में आ चुका है।
पहला नहीं है मामला
रपट दर्ज न करने का सिकंदरा पुलिस का यह अंदाज कोई नया नहीं है। बीते माह में ऐसे आधा दर्जन से अधिक मामले सामने आ चुके हैं। साढ़े तीन माह बाद चेन लूट का मुकदमा पुलिस आयुक्त के आदेश पर लिखा। थूक और कीचड़ चटवाने पर पीड़ित को मुकदमा दर्ज कराने को थाने में खुद पर पेट्रोल डालने का प्रयास करना पड़ा। सब्जी के रुपये न देने पर जानलेवा हमले के मामले में पुलिस आयुक्त को हस्तक्षेप करना पड़ा आदि कई उदाहरण सामने आ चुके हैं।