रांची, । लोक आस्था के महान पर्व छठ पर चहुंओर उल्लास है। इस बीच राज्य के अलग-अलग हिस्सों में हुई दो हृदयविदारक घटनाओं में छह बच्चों की नदी में डूबकर मौत हो गई। बताने की जरूरत नहीं कि इन घटनाओं से बच्चों के परिवार वालों पर कितना बड़ा दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। इनकी छठ व्रत की खुशियां मातम में बदल गई हैं। इस तरह की घटनाएं असावधानी की वजह से होती हैं।
उल्लास और उमंग के मौकों पर अक्सर हम सावधानियों का दामन छोड़ देते हैं। यह काफी महंगा साबित होता है। असावधानियों की बड़ी कीमत चुकाने से बेहतर है कि हम सतर्क और सावधान रहें। इस तरह की घटनाओं में बच्चों से ज्यादा जिम्मेदारी बड़ों की है। नदियों तालाबों के पास जाने या नहाने के दौरान उनकी निगरानी होनी चाहिए। साथ ही व्रत-त्योहार व अन्य मौकों पर तो जलाशयों की बैरिकेडिंग होनी चाहिए। बचाव के अन्य उपाय भी होने चाहिए। बच्चों को समझाया जाना चाहिए कि वे गहरे जलाशयों में खेलने या नहाने नहीं जाएं। इसका कड़ाई से पालन भी कराया जाना चाहिए। बुधवार और गुरुवार को बड़ी संख्या में लोग नदियो-तालाबों के घाट पर छठ पूजा करने जाएंगे। इस दौरान भी अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत है। इस बार हमारे सामने सावधानी बरतने की दोहरी चुनौती है। महामारी के दौर में शारीरिक दूरी का पालन भी करना है और डूबने से भी बचना है।
झारखंड सरकार ने आस्था को सम्मान देते हुए छठ घाटों पर जाकर पूजा करने की अनुमति दी है, लेकिन हमें इसका नाजायज फायदा नहीं उठाना चाहिए। पानी में उतरते समय भी सावधानी बरतनी है और पूजा के समय भी। बच्चों, वृद्धों और कमजोर लोगों पर खास ध्यान देने की जरूरत है। घटनाओं से सबक लेकर हम सुरक्षित तरीके से त्योहार मनाएं, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है। आस्था मन की गहराइयों में होती है। उसके लिए ज्यादा आडंबर की जरूरत नहीं होती। इसका ध्यान रखना है।