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Delhi Metro: किस रंग की लाइन पर चलती है कौन सी मेट्रो, ? और अब क्या होगा बड़ा बदलाव


नई दिल्ली, । दिल्ली मेट्रो (Delhi Metro) 25 दिसंबर 2022 को 20 साल की हो जाएगी। मेट्रो को राजधाली दिल्ली की लाइफ लाइन कहा जाता है। अगर मेट्रो न चले तो समझो दिल्ली पूरी तरह थम जाएगी। लाखों लोगों को हर दिन दिल्ली मेट्रो उनके गंतव्य तक पहुंचाती है। राजधानी दिल्ली में मेट्रो की 10 लाइन हैं, जबकि नोएडा और गुरुग्राम में भी एक-एक लाइन है।

शाहदरा-तीस हजारी के बीच चली पहली मेट्रो

वर्ष 2002 में 25 दिसंबर को पहली बार रेड लाइन पर ही शाहदरा से तीस हजारी के बीच मेट्रो का परिचालन शुरू हुआ था। लेकिन अब रेड लाइन पर मेट्रो रिठाला से गाजियाबाद के शहीद स्थल तक चलती है। जिस पहर अब कुल 29 मेट्रो स्टेशन हैं। जिसकी लंबाई 34.5 किमी है। इस पर कुल 39 मेट्रो रोजाना संचालित की जाती हैं।

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दिल्ली एनसीआर में 12 लाइनों पर मेट्रो दौड़ रही है। दिल्ली एनसीआर में मेट्रो का जाल कुल 391 किमी में फैल चुका है। जिसमें 286 मेट्रो स्टेशन हैं। दिल्ली एनसीआर में 10 लाइन पर मेट्रो दौड़ रही है। जबकि नोएडा-ग्रेटर नोएडा के बीच एक्वा लाइन पर मेट्रो चल रही है। वहीं, गुरुग्राम में रेपिड मेट्रो चलती है। दोनों शहरों की मेट्रो दिल्ली मेट्रो की लाइनों से जुड़ती हैं।

इन लाइनों को अलग अलग नाम दिया गया है। साथ ही इन्हें अलग रंग से दर्शाया गया है। आइए जानते हैं इसके बारे में…

  • ब्लू लाइन- इस लाइन पर मेट्रो द्वारका सेक्टर-21 और आनंद विहार के बीच चलती है। साथ ही मेट्रो द्वारका सेक्टर-21 और वैशाली के बीच भी चलती है। इस पर कुल 57 मेट्रो स्टेशन हैं।
  • येलो लाइन- इस लाइन पर हुड्डा सिटी सेंटर और समयपुर बादली के बीच चलती है। इस पर कुल 37 मेट्रो स्टेशन हैं।
  • ग्रीन लाइन- कीर्ति नगर से बहादुरगढ़ के बीच चलती है, जिस पर 23 स्टेशन हैं।
  • रेड लाइन- यहां रिठाला से शहीद स्थल के बीच मेट्रो चलती है, जो 29 स्टेशन पर रुकती है।
  • पिंक लाइन- मजलिस पार्क से शिव बिहार के बीच चलती है और 38 स्टेशन हैं।
  • ग्रे लाइन- द्वारका से धंसा के बीच चलती है, इस पर कुल चार स्टेशन हैं। इसे दिल्ली मेट्रो की सबसे छोटी लाइन कहा जाता है।
  • मजेंटा लाइन- जनकपुरी वेस्ट और बॉटनिकल गार्डन के बीच चलती है। यहां 25 स्टेशन हैं।
  • सिल्वर लाइन- इस पर काम चालू है और तुगलकाबाद से एरोसिटी के बीच चलेगी।
  • एक्वा लाइन- यह लाइन नोएडा-ग्रेटर नोएडा के बीच की है। इस पर कुल 21 स्टेशन हैं। इसे दिल्ली मेट्रो की ब्लू लाइन और मजेंटा लाइन से जोड़ने की तैयारी चल रही है।
  • रेपिड मेट्रो- यह मेट्रो गुरुग्राम (हरियाणा) में चलती है, जो दिल्ली मेट्रो की येलो लाइन के सिकंदरपुर मेट्रो स्टेशन से जुड़ती है।
  • वायलेट लाइन- कश्मीरी गेट से राजा महर सिंह के बीच चलती है और 34 मेट्रो स्टेशन हैं।
  • ऑरेंज लाइन- यह एयरपोर्ट लाइन है, जो नई दिल्ली से द्वारका सेक्टर-21 के बीच चलती है। इस पर कुल छह स्टेशन हैं।

ये नया बदलाव हो सकता है दिल्ली मेट्रो में

पिछले वर्ष स्वदेशी एटीएस तकनीक का ट्रायल भी 24 दिसंबर को शुरू हुआ था। ऐसे में इस माह 24 या 25 दिसंबर से रेड लाइन पर स्वेदशी तकनीक का इस्तेमाल शुरू हो सकता है। दिल्ली मेट्रो की सबसे पुरानी रेड लाइन पर दिसंबर से स्वदेशी आटोमेटिक ट्रेन सुपरविजन (आइ-एटीएस) सिस्टम से मेट्रो का परिचालन शुरू हो जाएगा। एटीएस सिग्नल सिस्टम का अहम हिस्सा होता है। इस स्वदेशी तकनीक के इस्तेमाल से मेट्रो परिचालन में सिग्नल सिस्टम के लिए विदेशी कंपनियों पर निर्भरता कम हो जाएगी।

इसके इस्तेमाल से मेट्रो के सिग्नल सिस्टम के रखरखाव और नए कारिडोर पर सिग्नल सिस्टम विकसित करने का खर्च एक तिहाई घट जाएगा। मौजूदा समय में सभी मेट्रो कारिडोर पर विदेश में तैयार सिग्नल सिस्टम का इस्तेमाल किया जा रहा है।

रेड लाइन का जर्मनी की कंपनी को रखरखाव का जिम्मा

रेड लाइन पर जर्मनी की कंपनी से हासिल तकनीक से मेट्रो का परिचालन होता है। इसका रखरखाव बेहद महंगा होता है। सिग्नल सिस्टम में विदेश की कंपनियों के वर्चस्व को खत्म करने के लिए केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय की पहल पर डीएमआरसी व भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) ने मिलकर स्वदेशी एटीएस तकनीक विकसित की है, जो कंप्यूटर आधारित तकनीक है।

 

एटीएस की मदद से कंट्रोलरूम से मेट्रो का बना रहता है संपर्क

एटीएस तकनीक से मेट्रो ट्रेनें आपरेशन कंट्रोल रूम (ओसीसी) से जुड़ी रहती हैं। रेड लाइन के लिए शास्त्री पार्क में ओसीसी बना हुआ है। इस ओसीसी से परिचालन के दौरान हर मेट्रो ट्रेन पर नजर रखी जाती है। इसमें तकनीकी खराबी के कारण मेट्रो का ओसीसी से संपर्क कटने पर परिचालन प्रभावित हो जाता है। डीएमआरसी का कहना है कि अभी एटीएस सिस्टम के साफ्टवेयर में दिक्कत होने पर जर्मनी में कंपनी के विशेषज्ञों से मदद लेनी पड़ती है। किसी चिप खराबी होने पर उसे विदेश भेजना पड़ता है। अब इसका रखरखाव यही सुनिश्चित हो सकेगा।