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Devshila: छिरिंग-रंजीत ने अपनी आंखों से देवशिला को श्रीराम होते देखा


मुजफ्फरपुर: या अनुरागी चित्त की गति समझे न कोय, ज्यों-ज्यों बूड़े श्याम रंग त्यों-त्यों उज्ज्वल होय…कविवर बिहारी की ये पंक्तियां आज के समय में नेपाल के छिरिंग लामा और मधुबनी के रंजीत कुमार महतो पर चरितार्थ हो रही हैं। शालिग्राम में बसे राम के सानिध्य में रहने का अवसर मिला तो इनका तन-मन सब सात्विक हो गया। रामरस की वर्षा में खूब भीगे, खूब पगे और ऐसा पगे कि अब तक राम-नाम के रसपान में डूबे हुए हैं।

अयोध्या तक देवशिला ले गए छिरिंग, जनकपुर से साथ आए रंजीत

छिरिंग और रंजीत, ये ऐसे दो व्यक्ति हैं, जिन्होंने अपनी आंखों से देवशिला को राम होते हुए देखा है। दौड़ती-भागती गाड़ियों के बीच सड़कों पर भक्ति का ज्वार देखा है। नगर-नगर देवशिला के स्पर्श को आतुर जनसमूह का उमड़ता भावावेग देखा है। इन दोनों ही व्यक्तियों के लिए यह सब कल्पनातीत था और जब इन्हें इस कल्पनातीत क्षण का भागीदार होने का मौका मिला तो वह भी राममय हो गए। जो कभी सामिष थे, अब निरामिष हो गए हैं। ये केवट तो बने, लेकिन उतराई में मिली कमाई का एक भाग उन्हीं राम के नाम भेंट कर दिया।

नेपाल के गंडकी प्रदेश के बेनी नगर पालिका निवासी छिरिंग लामा और बिहार के मधुबनी जिले में पिपरौन के निवासी रंजीत महतो ने कृष्ण गंडकी नदी से प्राप्त शालिग्राम देवशिलाएं अयोध्या तक पहुंचाईं। छिरिंग 26 जनवरी को दोनों देवशिलाएं लेकर नेपाल से चले और 28 जनवरी की रात जनकपुर धाम पहुंचे। यहां से दोनों देवशिलाएं 30 जनवरी को भारतीय ट्राले से अयोध्या जानी थीं, जिसे लेकर रंजीत पहुंचे। लेकिन, मुख्य देवशिला दूसरे ट्राले पर नहीं ले जाई जा सकी। इस पर रंजीत दूसरी देवशिला लेकर अयोध्या के लिए चले।

ऐसे केवट जिन्होंने उतराई भी श्रीराम के नाम कर दी

छिरिंग कहते हैं कि कृष्ण गंडकी से जनकपुर धाम तक शालिग्राम देवशिला के सानिध्य में ही यह अनुभव हो गया कि भगवान ने इस विशेष कार्य के लिए चुनकर उनपर अपनी कृपा बरसाई है। यात्रा समन्वयक नेपाल विहिप के महामंत्री जितेंद्र सिंह बताते हैं कि पूरी यात्रा के दौरान छिरिंग रोज सुबह स्नान कर देवशिला का पूजन करते, चढ़ावा चढ़ाकर प्रसाद खाते और तब जाकर स्टीयरिंग संभालते थे। नेपाल में मांसाहार एवं मदिरा प्रचलन में है, लेकिन 26 जनवरी से यात्रा शुरू करने के बाद पांच जनवरी को नेपाल लौटे छिरिंग ने अब तक मांस-मदिरा को हाथ नहीं लगाया है। पूछे जाने पर छिरिंग कहते हैं कि अब मन नहीं करता। उन्होंने देवशिला पहुंचाने के खर्च में अपनी तरफ से 11 हजार नेपाली मुद्रा भी अर्पित की।

छिरिंग देवशिला के साथ ही पहली बार भारत आए। वे अपने साथियों से सुनते रहते थे कि यहां चालकों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता, लेकिन अब वह हमेशा यहां रामलला का दर्शन करने आएंगे। वे कहते हैं कि मुझे देवशिला ले जाने का सौभाग्य मिला, यह मेरे जीवन भर की कमाई हो गई है।

देवशिला के सानिध्य में शराब-मांस सब छूटा

अयोध्या से चावल लेकर नेपाल के लिए जाते समय रंजीत कुमार महतो ने मुजफ्फरपुर में बताया कि मुझे ऐसा लग रहा है कि श्रीराम ने मुझे हनुमान बना लिया। मेरा जरूर कोई पुण्य कर्म रहा होगा, जो मैंने यह सौभाग्य पाया। रंजीत बताते हैं कि मैं कई राज्यों में जाता हूं और काम के बाद शराब पीकर सोने की आदत थी, लेकिन शालिग्राम देवशिला के सानिध्य में शराब-मांस सब कुछ छूट गया। वह आगे कहते हैं कि यह श्रीराम की ही कृपा है कि सड़क पर देवशिला के दर्शन को लालायित अपार भीड़ के बाद भी कुछ अनहोनी नहीं हुई। रामभक्तों व साधु-संतों की टोली ने यात्रा को और आसान बना दिया। 15 घंटे की यात्रा थी, जो 70 घंटे में पूरी हुई, लेकिन फिर भी पता ही नहीं चला।