उन्होंने कहा कि यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद ऊर्जा कीमतों और खाद्य आपूर्ति को लेकर जो चुनौतियां पैदा हुई हैं, उस बारे में पीएम मोदी भारत के रूख को इन देशों के समक्ष स्पष्ट करेंगे। जी-7 देशों की यह बैठक यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद उपजी वैश्विक परिवेश को देखते हुए महत्वपूर्ण हो गई है। माना जा रहा है कि समूह के सातों देशों की तरफ से रूस पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध को और ज्यादा मजबूती से लागू करने का प्रस्ताव रखा जाएगा। साथ ही रूस को किस तरह से आर्थिक तौर पर अलग-थलग किया जाए, इसको लेकर रणनीति बनाई जाएगी।
अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी, जापान और इटली के राष्ट्र प्रमुखों की इस बैठक में भारत, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, अर्जेंटीना और सेनेगल को विशेष तौर पर आमंत्रित किया गया है। यह भी माना जा रहा है कि समूह सात देशों की तरफ से लोकतांत्रिक देशों को एकजुट करने की कोशिश हो रही है ताकि रूस और चीन की तरफ से उभर रही चुनौतियों को लेकर एक रणनीति बन सके। वैसे भारत हाल के वर्षों में जी-7 की शीर्ष स्तरीय बैठकों में लगातार आमंत्रित किया जाता रहा है लेकिन इस बार का माहौल अलग है।
क्वात्रा ने बताया कि जी-7 बैठक में हमारा लगातार भाग लेना यह बताता है कि इन देशों के बीच भारत की स्वीकार्यता भी बढ़ रही है और ये देश मान रहे हैं कि वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत का सहयोग जरूरी है। उन्होंने यह भी बताया कि पीएम मोदी जी-7 से लौटने के दौरान कुछ घंटों के लिए यूएई में ठहरेंगे। यह वर्ष 2019 के बाद यूएई की उनकी पहली यात्रा होगी।
यूएई के नए राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद के साथ द्विपक्षीय बैठक में ऊर्जा व खाद्य सहयोग पर खास तौर पर बात होगी। भारत को अभी अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए यूएई की जरूरत है जबकि यूएई को खाद्य सुरक्षा के लिए भारत की मदद चाहिए। क्वात्रा ने यह भी स्पष्ट किया कि रूस के साथ ऊर्जा खरीद के मुद्दे पर उस पर किसी देश का दबाव नहीं है। भारत ने शुरू में ही यह साफ कर दिया है कि ऊर्जा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उसकी कंपनियां जहां से भी जरूरत होगी वहां से तेल खरीदने की नीति का पालन करेंगी।