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IMA देहरादून में कैडेट रहे तालिबानी नेता ने कहा- भारत हमारे लिए अहम


  • दो दशकों बाद अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान की वापसी के साथ ही भारत प्रतिक्रिया के मामले में बहुत सधे कदमों से आगे बढ़ रहा है. विदेश मंत्रालय समेत मोदी सरकार (Modi Government) ने भी फिलहाल देखो इंतजार करो की नीति अपनाई है. इस बीच तालिबान के कई कमांडर भारत के साथ संबंधों को लेकर अलग-अलग बयान दे चुके हैं. हालांकि कतर में डिप्टी हेड शेर मोहम्मद अब्बास स्तानकजई का हालिया बयान कई लिहाज से भारत के साथ तालिबान (Taliban) के संबंधों को आयाम देता है. इस बयान का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि शेर मोहम्मद उर्फ शेरू ने देहरादून स्थित आईएमए (IMA) में सेना की ट्रेनिंग ली है. उन्होंने कहा है कि तालिबान पहले की तरह ही भारत के साथ सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक व्यापारिक रिश्ते बनाए रखना चाहेगा.

भारत के साथ काम करने पर विचार कर रहा तालिबान
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक दोहा में तालिबान कार्यालय के डिप्टी हेड शेर मोहम्मद अब्बास स्तानकजई ने अफगानी मिल्ली टेलीविजन पर भारत के साथ तालिबान के रिश्तों पर प्रमुखता से अपना पक्ष रखा. शेरू का बयान इसलिए भी अहम हो जाता है कि 15 अगस्त को काबुल पर कब्जे के बाद किसी शीर्ष तालिबानी लीडर का भारत को लेकर यह पहला आधिकारिक बयान है. शेर मोहम्मद ने कहा कि भारतीय उपमहाद्वीप में भारत बेहद महत्वपूर्ण स्थान रखता है. हम पहले की तरह ही भारत के साथ सांस्कृतिक, आर्थिक व्यापारिक रिश्ते बनाए रखना चाहेंगे. हम भारत के साथ अपने राजनीतिक, आर्थिक व्यापारिक संबंधों को महत्व देंगे उन्हें बनाए रखना चाहेंगे. हम इस संदर्भ में भारत के साथ काम करने के बारे में विचार कर रहे हैं.

यूएनएससी में भारत बता चुका है कि वह कैसे तालिबान का तलबगार
तालिबान लीडर का ये बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि तालिबान के पाकिस्तान संग रिश्ते जगजाहिर हैं. ऐसे में जब पाकिस्तान तालिबान के सहयोग से जम्मू-कश्मीर पर उकसावेपूर्ण बयान दे रहा हो, तब अच्छे रिश्तों की तलब रखता बयान यह भी जाहिर करता है कि उदारवादी छवि बनाने को आतुर तालिबान भारत को बगैर तरजीह दिए नहीं रह सकता है. यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि इस्लामाबाद शुरुआत से भारत के अफगानिस्तान संग मजबूत संबंधों को नकारात्मक तौर पर देखता आया है. शेर मोहम्मद का बयान इसलिए भी महत्व रखता है क्योंकि भारत ने यूएनएससी में अफगानिस्तान मसले पर चर्चा के बाद एक बयान जारी किया था. इस बयान में तालिबान से कहा गया था कि वह न तो किसी आतंकी समूह का समर्थन करे ना ही अपनी जमीन का इस्तेमाल आतंक का इस्तेमाल किसी देश के खिलाफ होने दे.