भारत की चिंता की बड़ी वजह (Hambantota and India’s major cause for concern)
1- रक्षा मामलों के जानकार डा अभिषेक प्रताप सिंह (दिल्ली विश्वविद्यालय) का कहना है कि श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह की भौगोलिक स्थिति और चीन के उस पर बढ़ते दबदबा के कारण भारत की चिंता लाजमी है। उन्होंने कहा कि श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह (Sri Lanka Hambantota port) से भारत के चेन्नई बंदरगाह की दूरी महज 535 समुद्री मील यानी 990 किमी है। भारत के कोच्चि बंदरगाह के बीच की दूरी करीब 609 समुद्री मील या 1128 किमी है। भारत के विशाखापत्तनम बंदरगाह से हंबनटोटा की दूरी 802 समुद्री मील यानी 1485 किलोमीटर है। सामरिक रणनीति के लिए यह दूरी बहुत मायने नहीं रखती है। चीनी नौसेना का इस पोर्ट पर पहुंचने का मतलब भारत की नाक के नीचे आ जाना है।भारत को यह चिंता सता रही है कि चीन इस पोर्ट का इस्तेमाल सैन्य गतिविधियों के लिए कर सकता है।
2- उन्होंने कहा कि चीन अपने इस पोत को एक रिसर्च पोत कहता है। चीन का दावा है कि यह एक अनुसंधान और सर्वेक्षण पोत है। उन्होंने कहा कि चीन अपने इस श्रेणी के पोतों का उपयोग उपग्रह, राकेट और बैलिस्टिक मिसाइलों के प्रक्षेपण को ट्रैक करने के लिए करता है। चीन के पास इस तरह के पोतों की संख्या करीब आधा दर्जन है। ये पोत प्रशांत महासागर, अटलांटिक और हिंद महासागर से संचालित होने में सक्षम हैं। भारत के साथ अमेरिका भी इस पर संदेश जता चुका है। चीन इन पोतों को सेना पीएलए के सामरिक समर्थन बल (एसएसएफ) द्वारा संचालित किया जाता है। यह पीएलए की रणनीति, साइबर इलेक्ट्रानिक, सूचना, संचार और साइकोलाजिकल युद्ध मिशन को देखती है।
3- उन्होंने कहा कि हंबनटोटा पोर्ट पर चीनियों का दखल भारत के लिए चिंता का सबब है। भारत की चिंता यह है कि चीनी अब आराम करने या ईंधन भरने के नाम पर अपने पीएलए यानी चीनी नौसना जहाजों और पनडुब्बियों के लिए भी इस बंदरगाह का उपयोग करेगा। उन्होंने कहा कि चीन का यह पोत एक सैन्य जहाज से कहीं ज्यादा है। इस पोत का दोहरा उपयोग है। यह सर्वेक्षण के साथ-साथ जासूसी जहाज भी है। यह जल सर्वेक्षण के नाम पर समुद्र तल को देखने जैसे कई अन्य काम कर सकता है। हालांकि, चीन यह कहता रहा है कि वह इस पोर्ट को इस्तेमाल चीनी नौसेना बेस के रूप में नहीं करेगा, लेकिन चीन के चरित्र को देखते हुए इस बात की कोई गारंटी नहीं ले सकता है। इसके पूर्व में भी चीन हिंद महासागर क्षेत्र में ऐसे पोत भेजता रहा है।
क्या है हम्बनटोटा बंदरगाह (What is Hambantota Port)
दरअसल, 150 करोड़ डालर से बने हंबनटोटा बंदरगाह दुनिया के सबसे व्यस्त बंदरगाहों में से एक है। इस बंदरगाह को चीन की सरकारी संस्था चाइना मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग्स ने बनाया था। इसमें 85 फीसद हिस्सेदारी चीन के एक्सिम बैंक की थी। इसके बंदरगाह के निर्माण के वक्त से ही यह पोर्ट विवादों में रहा और इसका भारत ने विरोध किया था। श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के कार्यकाल में चीन के सहयोग से इस पोर्ट का निर्माण हुआ था। इस बंदरगाह में चीन से आने वाले माल को उतारकर देश के अन्य भागों तक पहुंचाने की योजना थी। नए कानून के जरिए श्रीलंका चीन की व्यवसायिक गतिविधियों पर लगाम लगाने की कोशिश कर रहा है और सुरक्षा का नियंत्रण भी अपने पास रख रहा है।
कहीं चीन अंतरिक्ष युद्ध की तैयारी में तो नहीं ?
अमेरिका के रक्षा विभाग की एक रिपोर्ट चौंकाने वाली है। इस रिपोर्ट के मुताबिक ड्रैगन ने अपने 2015 के रक्षा श्वेत पत्र में आधिकारिक तौर पर अंतरिक्ष को युद्ध के एक नए डोमेन के रूप में नामित किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन को उम्मीद है कि भविष्य में देशों के बीच होने वाले संघर्षों में अंतरिक्ष की एक अहम भूमिका होगी, जहां लम्बी दूरी के सटीक हमले करने की क्षमता और दूसरी सेनाओं की संचार क्षमताओं को ध्वस्त करने पर ज़ोर होगा। अमेरिकी कांग्रेस को अपनी एक वार्षिक रिपोर्ट में रक्षा विभाग ने कहा था कि चीन की स्ट्रैटिजिक सपोर्ट फोर्स (एसएसएफ) का स्पेस सिस्टम डिपार्टमेंट चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के लगभग सभी अंतरिक्ष संचालन के लिए जिम्मेदार हैं। इन अंतरिक्ष अभियानों में अंतरिक्ष प्रक्षेपण, निगरानी और अंतरिक्ष युद्ध शामिल हैं। चीन की यह फोर्स उपग्रहों और अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम) के लांच को ट्रैक करने के लिए युआन वांग पोत का संचालन करती है।