जम्मू, । जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के गठन को लेकर जारी संशय की बादल सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के साथ ही छंट गए। सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को विधिसम्मत ठहराते हुए 30 सितंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने को कहा है । इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर को यथाशीघ्र पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान करने की प्रक्रिया शुरु करने का भी आदेश दिया है।
जम्मू-कश्मीर में विभिन्न राजनीतिक दल अपने दलगत राजनीतिक मतभेदों के बावजूद इन दो मुद्दों पर एकमत ही रहे हैं। प्रदेश में शीघ्र विधानसभा चुनाव कराने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने वाले पैंथर्स पार्टी के प्रधान हर्ष देव सिंह ने कहा कि यह फैसला जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र को मजबूत बनाने और बाबूराज को खत्म करेगा।
चुनाव आयोग भी कह चुका है कि जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक शून्य को भरने की जरुरत है । मौजूदा स्थिति को और अधिक समय तक नहीं बनाए रखा जा सकता। केंद्र सरकार भी कई बार कह चुकी है कि वह जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के गठन के लिए गंभीर है, लेकिन सुरक्षा संबधी कुछ मुद्दों का समाधान जरुरी है। वह कह चुकी है कि चुनाव कराने का अंतिम निर्णय चुनाव आयोग को लेना है।
जम्मू-कश्मीर में अंतिम विधानसभा चुनाव साल 2014 में हुए
जम्मू-कश्मीर में जून 2018 में तत्कालीन पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार के भंग होने के बाद पहले राज्यपाल शासन रहा और फिर जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के तहत केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर बनने के साथ ही 31 अक्टूबर 2019 से से उपराज्यपाल ही शासन की बागडोर संभाले हुए हैं। जम्मू-कश्मीर में अंतिम विधानसभा चुनाव वर्ष 2014 में हुए थे और लगभग साढ़े पांच वर्ष से जम्मू-कश्मीर में कोई निर्वाचित सरकार नहीं है। नेशनल कान्फ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी , कांग्रेस, जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी, माकपा समेत विभिन्न राजनीतिक दल आरोप लगाते हैं कि भाजपा पिछले दरवाजे से जम्मू-कश्मीर की सत्ता अपने पास रखने के लिए विस चुनाव नहीं होने दे रही है।
राज्यपाल या उपराज्यपाल के कुछ फैसले लोगों को नहीं आते पसंद: सज्जाद
निर्वाचित सरकार न होने के कारण कई बार जनता और प्रशासन के बीच की दूरी स्पष्ट नजर आयी है और कई निर्णयों को प्रदेश प्रशासन ने पहले लागू करने की घोषण की और बाद में उन्हें निलंबित कर दिया, क्येांकि आम जनमानस उनके लिए तैयार नहीं था। राजनीतिक कार्यकर्ता सज्जाद सोफी ने कहा कि उपराज्यपाल हों या राज्यपाल, उनका शासन किसी भी तरह से एक निर्वाचित सरकार का विकल्प नहीं होता। राज्यपाल या उपराज्यपाल शासन के दौरान नौकरशाह कई बार जमीनी हकीकतों को नजर अंदाज कर कुछ ऐसे फैसले लेते हैं जो आमजन को नहीं सुहाते। निर्वाचित सरकार ऐसे मुद्दों पर आमजन की सुविधा को ध्यान में रखते हुए बीच का रास्ता अपनाती है।
इसके अलावा निर्वाचित सरकार स्थानीय सामाजिक-आर्थिक- क्षेत्रीय और सांस्कृतिक परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए ही विकास योजनाओं को आगे बढ़ाती है। आम लोग अपने विधायकों से किसी भी समय प्रश्न कर सकते हैं, मिल सकते हैं, उनके प्रति अपनी नाराजगी जता सकते हैं, लेकिन राज्यपाल या उपराज्यपाल शासन में वह किस अधिकारी के पास जाएंगे। जनता दरबार की वास्तविकता सिर्फ फोटो सैशन ही होता है।
6 महीने के भीतर हो विधानसभा का गठन: सुप्रीम कोर्ट
पूर्व शिक्षा मंत्री और जम्मू-कश्मीर पैंथर्स पार्टी के प्रधान हर्ष देव सिंह ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र की बहाली और जम्मू-कश्मीर के लोगों के जख्मों पर मरहम लगाने वाला है। हमने ही सर्वोच्च न्यायालय में जम्मू-कश्मीर में जल्द चुनाव कराने की याचिका दायर की थी। अन्य याचिकाएं अनुच्छेद 370 के संदर्भ में थी। उन्होंने कहा कि हमने सर्वोच्च न्यायालय में अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय ने ही कहा है कि किसी भी प्रदेश में छह माह के भीतर ही विधानसभा का गठन होना चाहिए, लेकिन जम्मू-कश्मीर में ऐसा नहीं हो रहा है। यहां बाबूराज चल रहा है जो अब खत्म होगा।
लोग चाहते हैं अपनी चुनी हुई सरकार
प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और एमएलसी रविंद्र शर्मा ने कहा कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान करने और यहां विधानसभा चुनाव कराने के लिए केंद्र को अब सिंतंबर का इंतजार नहीं करना चाहिए। जम्मू-कश्मीर को एक पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान करने के साथ ही विधानसभा चुनाव कराए जाएं, यहां लोग उपराज्यपाल शासन के बजाय अपनी एक निर्वाचित सरकार चाहते हैं। केंद्र चाहे तो यहां संसदीय और विधानसभा चुनाव एक साथ करा सकता है।