श्रीनगर। कश्मीर में सक्रिय आतंकियों तक तरल आइईडी एक बार फिर पहुंच चुकी है। बीते सप्ताह में दो तरल आइईडी बरामद किए जा चुके हैं। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, वादी में और भी तरल आइईडी होने की आशंका जताई जा रही है।
श्री अमरनाथ धाम की वार्षिक तीर्थयात्रा के दौरान आतंकी श्रद्धालओं को नुकसान पहुंचाने के लिए इनका इस्तेमाल कर सकते हैं। इस खतरे से निपटने के लिए सुरक्षा एजेंसियों ने अपने खुफिया तंत्र को पूरी तरह सक्रिय कर रखा है। बीते एक वर्ष के दौरान पकड़े गए आतंकियों और उनके सहयोगियों से भी इस सिलसिले में पूछताछ की जा रही है।
कितना खतरनाक है यह आइईडी
तरल आइईडी में ट्राई नाइट्रो टोलुइन, नाइट्रो ग्लिसरीन, हाइड्राजीन, सल्फ्यूरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड, नाइट्रो बैंजीन, ईथनोल जैसे तरल रसायनों का इस्तेमाल होता है। इसका आसानी से पता भी नहीं लगाया जा सकता और यह स्टिकी बम के बाद दूसरी बड़ी चुनौती है।
जम्मू-कश्मीर पुलिस ने इसी माह की शुरुआत में पुलवामा के निहामा में लश्कर-ए-तैयबा के डिवीजनल कमांडर रियाज अहमद डार को उसके साथी संग मार गिराया था।
पुलिस ने रियाज के तीन सहयोगियों को भी गिरफ्तार किया है। इनमें से एक शाकिर की निशानदेही पर पुलिस ने एक बाग में रखी दो तरल आइईडी बरामद कीं। यह दोनों एक प्लास्टिक के डिब्बे में थीं।
इन दोनों को मौके पर ही निष्क्रिय कर दिया गया। यह पहला अवसर नहीं है, जब घाटी में तरल आइईडी मिली हो। इससे पहले वर्ष 2007 में एक तरल आइईडी बरामद हुई थी।
जुलाई, 2014 में सांबा में रामगढ़ सेक्टर में घुसपैठ करते हुए मारे गए तीन आतंकियों से बरामद 10 आइईडी में पांच तरल आइईडी थीं। फरवरी, 2022 में भी सांबा जिले में अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास से तीन तरल आइईडी बरामद की गई थी। यह आइईडी पाकिस्तान में बैठे आतंकियों ने ड्रोन के जरिए इस तरफ पहुंचाई थीं।
साल 2007 में हुआ था इस्तेमाल
पुलिस अधिकारी ने बताया कि कश्मीर में 2007 में तरल आइइडी का इस्तेमाल हुआ था। इसके बाद घाटी में भीतर कभी आतंकियों के पास इसकी मौजूदगी का पता नहीं चला। इस दौरान एलओसी या अंतरराष्ट्रीय सीमा पर मारे गए घुसपैठियों से यह जरूर मिली है।
पुलवामा में तैयार तरल आइईडी के मिलने से पूरी आशंका है कि वादी में अन्य आतंकियों के पास भी यह हो सकती है। इसका पता लगाना आसान नहीं होता, इसलिए अमरनाथ यात्रा के दौरान आतंकियों द्वारा इसके इस्तेमाल की आशंका भी अधिक है।
सामान्य सेंसर व अन्य उपकरणों से खोजना मुश्किल जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि तरल आइईडी को डी2डी श्रेणी का विस्फोटक भी कहते हैं, क्योंकि इसका आसानी से पता नहीं लगाया जा सकता।
आतंकियों ने इसे किसी जगह लगाकर रखा हो तो विस्फोटकों का पता लगाने वाले सामान्य सेंसर व अन्य उपकरण इसे नहीं खोज सकते। इसके अलावा सक्रिय करने के बाद इसे एक जगह से दूसरी जगह नहीं ले जाया जा सकता।
इसे मौके पर ही नष्ट करना होता है और यह काफी खतरे वाला काम होता है। पुलवामा में जो तरल आइईडी मिलीं, वह पूरी तरह तैयार थीं और उन्हें सिर्फ सक्रिय किया जाना बाकी था।