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Jharkhand Crisis: हेमंत सोरेन की विधायकी पर राजभवन चुप, सीएम खटखटाएंगे सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा


रांची, । Jharkhand Political Crisis मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपनी विधानसभा की सदस्यता को लेकर असमंजस की स्थिति स्पष्ट करने के लिए राजभवन और चुनाव आयोग पर दबाव बनाने के तैयारी में हैं। इस कड़ी में वे सर्वोच्च न्यायालय का रुख कर सकते हैं। इस दिशा में तैयारी की जा रही है। विधिक परामर्श के बाद इसे अंतिम रूप दिया जाएगा। सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर वे आग्रह करेंगे कि चुनाव आयोग द्वारा उनकी विधानसभा की सदस्यता को लेकर राजभवन को मंतव्य प्रेषित करने के बाद राज्य में भ्रम की स्थिति है। 25 अगस्त को चुनाव आयोग द्वारा प्रेषित इस पत्र को लेकर राजभवन ने अभी तक कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी है। इससे राज्य में अनिश्चितता का माहौल है। इसका असर रोजमर्रा के कामकाज पर पड़ रहा है। कार्यपालिका में शिथिलता है। इस स्थिति में यह आवश्यक है कि चुनाव आयोग के मंतव्य से उन्हें अवगत कराया जाए।

राज्यपाल से चंद रोज पहले मिले थे हेमंत सोरेन

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बीते गुरुवार को इस संबंध में राज्यपाल रमेश बैस से मुलाकात कर इस संबंध में आग्रह कर चुके हैं। उन्होंने राज्यपाल को सौंपे गए पत्र में उल्लेख किया है कि राज्य का संवैधानिक प्रमुख होने के नाते उनसे संविधान और लोकतंत्र की रक्षा में महती भूमिका की अपेक्षा की जाती है। इससे पहले एक सितंबर को सत्तारूढ़ यूपीए के प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल से मुलाकात कर ज्ञापन सौंपा था। प्रतिनिधिमंडल ने दावा किया था कि उन्हें राज्यपाल ने दो-तीन दिन के भीतर स्थिति स्पष्ट करने को कहा था। हेमंत सोरेन की तरफ से उनके अधिवक्ता ने चुनाव आयोग को पत्र प्रेषित करते हुए यह आग्रह किया है कि राजभवन को पत्थर लीज खनन मामले से संबंधित जो मंतव्य प्रेषित किया गया है, उसकी प्रति उन्हें भी उपलब्ध कराई जाए।

सियासी गलियरों में निकाले जा रहे कई मायने

भारत निर्वाचन आयोग का पत्र पहुंच जाने के बाद जिस तरह से राज्यपाल रमेश बैस इसे सार्वजनिक नहीं कर रहे हैं, इससे झारखंड के राजनीतिक गलियारों में कई तरह के मायने लगाए जा रहे हैं। हर कोई बस एक ही सवाल पूछ रहा कि राज्यपाल पत्र को सार्वजनिक क्यों नहीं कर रहे हैं? कानूनी सलाह लेने में उन्हें इतना वक्त क्यों लग रहा है? एक चर्चा यह भी चल रही कि राज्यपाल किसी खास अवसर की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यही वजह है कि दो तीन दिन में फैसला सुना देने संबंधित वादे के बावजूद उन्होंने अभी अमल करना उचित नहीं समझा है।