रांची। : उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान समेत देश के कई राज्यों के चुनाव परिणाम भाजपा के लिए निराश करने वाला रहा। ऐसे में अब सियासी जगत में इस बात की चर्चा उठ रही है कि आरएसएस ने भाजपा की मदद नहीं की। लेकिन अब इन अटकलों पर पूरी तरह से विराम लग गया है। आरएसएस के एक नेता ने सबकुछ क्लियर कर दिया है।
आरएसएस ने चुनाव की शुरुआत से लेकर अंत तक मदद की
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपने पंच प्रण में से एक नागरिक कर्त्तव्य के तहत लोकसभा चुनाव में मतदाता जागरण के तहत कोई कसर नहीं छोड़ी। चुनाव की घोषणा के पहले से लेकर अंतिम चरण की समाप्ति तक संघ के स्वयंसेवक और सभी समविचारी संगठनों के हजारों कार्यकर्ता वोट प्रतिशत बढ़ाने से लेकर राष्ट्रवाद के नाम पर वोट डालने के लिए लोगों को प्रेरित करते रहे।
देश के अलग-अलग प्रांतों सहित झारखंड और बिहार में इसे लेकर हजारों छोटी व बड़ी बैठकें शहर से लेकर गांवों तक हुईं। मतदाताओं को घरों से निकालकर बूथों तक भी भेजा। झारखंड में तो पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में वोट प्रतिशत भी कम नहीं रहा।
इसके बावजूद झारखंड में पांच आदिवासी सीटों पर भाजपा की हार हुई। संघ में इसे लेकर मंथन चल रहा है। आदिवासी इलाकों में जमीन पर और काम करने की जरूरत महसूस की जा रही है। आदिवासी बहुल छत्तीसगढ़ और ओडिशा में जिस तरह से संघ ने काम किया और चुनाव में भाजपा को सफलता मिली, वैसा ही प्रयोग दूसरे स्थानों पर करने को लेकर चर्चा है।
आरएसएस के राकेश लाल ने बताई अंदर की बात
इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा को अपेक्षा से कम सीटों मिलने के बाद कई फोरम पर इस बात की चर्चा हो रही है कि संघ के कार्यकर्ता इस चुनाव में उतने सक्रिय नहीं दिखे या भाजपा ने उनकी ज्यादा मदद नहीं मिली। हालांकि संघ के कार्यकर्ता इसे सिरे से खारिज खारिज करते हैं। इस संबंध में आरएसएस के उत्तर पूर्व क्षेत्र के सामाजिक सदभाव प्रमुख राकेश लाल का कहना है कि संघ चाहता ही है कि उनके सभी समविचारी संगठन स्वतंत्र होकर काम करें। सभी संगठन
स्वतंत्र रूप से इतने सशक्त हो जाएं कि उन्हें संघ के स्वयंसेवकों की जरूरत नहीं पड़े। इसके बावजूद सभी संगठन एक-दूसरे के साथ सक्रिय व कार्यरत रहते हैं। कुछ लोगों द्वारा भ्रम फैलाया जा रहा है। संघ के कार्यकर्ता देशभर में मतदाताओं को मतदान के लिए प्रेरित करने के अभियान में जुटे और उन्हें नागरिक कर्त्तव्य का बोध कराते हुए राष्ट्रनिर्माण के लिए मतदान अवश्य करने को प्रेरित किया। हम मतदाताओं को घरों से निकलने का आह्वान करते हुए उन्हें बूथों तक लेकर गए।
राष्ट्र के नाम सबकी आहुति हो: आरएसएस
लोकतंत्र के महापर्व पर राष्ट्र के नाम सबकी आहुति हो, यह संघ की कोशिश है। उन्होंने कहा कि जहां तक भाजपा की बात है तो मध्य प्रदेश, दिल्ली, हिमाचल, उत्तराखंड में सभी सीटें भाजपा को मिलीं। छत्तीसगढ़, गुजरात, बिहार, झारखंड और पूर्वोत्तर आदि राज्यों में भी बेहतर परिणाम रहा। झारखंड में भाजपा की कुछ सीटें घटीं। आदिवासी इलाकों में कौन कौन से तत्व प्रभावी रहे। इसकी समीक्षा हो रही है। बिहार, यूपी, राजस्थान आदि प्रदेशों में कई जगह कुछ उम्मीदवारों को लेकर नाराजगी थी, संघ के स्वयंसेवकों ने मोर्चा नहीं संभाला होता तो परिणाम और कुछ रहता।
मतांतरित आदिवासियों का ध्रुवीकरण हो सकता है हार का कारण
सूत्रों के अनुसार झारखंड में आदिवासी बहुल सीटों पर मतांतरित आदिवासियों की एकजुटता और स्थानीय कारणों के कारण परिस्थितियां बदलीं। खूंटी, पश्चिमी सिंहभूम और लोहरदगा में तो चर्च के पादरी चुनाव के पहले से भाजपा के खिलाफ भूमिका बनाने में लगे थे। मतांतरित आदिवासियों के साथ-साथ सरना आदिवासियों को भी भड़काया जा रहा था। मोदी सरकार द्वारा आरक्षण समाप्त करने एवं संविधान बदलने की बात लोगों के मन में भरा जा रहा था, जिसमें उन्हें सफलता मिली।
अब संघ में इसको लेकर चर्चा है कि सभी समवैचारिक संगठनों का काम और बढ़ाने और उन संगठनों में आदिवासियों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है। संघ ने चुनाव अभियान चलाने को लेकर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय से रणनीति बदली है। अब संघ के स्वयंसेवक घर-घर पर्चा बांटने नहीं जाकर छोटी-छोटी बैठकें कर लोगों से बात करते हैं। उस समय तो छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभा में 20 लाख से अधिक बैठकें हुईं। इसलिए इस लोकसभा चुनाव में स्वयंसेवक घर-घर नहीं गए।