उन्होंने कहा, ‘आरबीआइ भारतीय रुपये का मूल्य तय करने के लिए हस्तक्षेप नहीं करता और यह (रुपया) अपना रास्ता बनाने के लिए स्वतंत्र है।’ उन्होंने कहा कि आरबीआइ द्वारा किए गए हस्तक्षेप भारतीय रुपये और डालर के बीच अस्थिरता को नियंत्रित करने के लिए अधिक है। वित्त मंत्री ने कहा, ‘कई अन्य देशों की तरह भारत अपनी मुद्रा को बहुत ऊंचे स्तर पर नहीं ले जा रहा है। इसलिए जिस तरह से हम इसे मजबूत करना चाहते हैं, उसके लिए आरबीआइ और मंत्रालय प्रयासरत हैं। जब कांग्रेस सदस्य ने पूरक प्रश्न पूछते हुए सुझाव दिया कि अनिवासी भारतीयों को विदेशी मुद्रा में राशि भारत भेजने की अनुमति दी जानी चाहिए। इस पर वित्त मंत्री ने कहा कि इस संबंध में उनका मंत्रालय कोई आश्वासन नहीं दे सकता। हालांकि वह आरबीआइ को इस सुझाव से अवगत करा सकती हैं।
रुपये का प्रदर्शन अन्य मुद्राओं की तुलना में बेहतर
सीतारमण ने कहा कि डालर के मुकाबले रुपये में अधिक उतार-चढ़ाव देखा गया है लेकिन रुपये का प्रदर्शन अन्य मुद्राओं की तुलना में बेहतर है। उन्होंने कहा कि रुपये ने अमेरिकी केंद्रीय बैंक के फैसलों के प्रभाव को किसी अन्य मुद्रा की तुलना में बेहतर तरीके से मुकाबला किया है। उन्होंने कहा कि वास्तव में रुपये की तुलना अन्य मुद्राओं से की जाए तो इसके मूल्य में वृद्धि हुई है। विदेशी मुद्रा भंडार कम होने पर उन्होंने कहा कि 22 जुलाई को यह 571.56 अरब डालर था और यह कोई छोटी राशि नहीं है।
मोदी जी की टिप्पणी तत्कालीन अर्थव्यवस्था से जुड़ी थी
रुपये के संबंध में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की टिप्पणी का जिक्र करते हुए कांग्रेस के प्रमोद तिवारी ने सवाल किया कि रुपये का मूल्य कब बढ़ेगा। इस पर वित्त मंत्री ने कहा कि जब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और अब प्रधानमंत्री ने भारतीय मुद्रा के संबंध में जो टिप्पणी की थी, तब अर्थव्यवस्था अन्य सभी मापदंडों के लिहाज से गंभीर स्थिति में थी। सीतारमण ने कहा कि उस समय मोदी जी की टिप्पणियों का कारण यह था कि भारत में लगातार 22 महीनों तक मुद्रास्फीति दहाई अंकों में थी और भारत एक नाजुक अर्थव्यवस्था वाला देश बन गया था।