फिर भी मोर्चा के घटक संगठनों के बीच इसे लेकर कोई हलचल नहीं है। वास्तविकता यह है कि आपस में ही उलझे किसान संगठन यह तय करने की ही स्थिति में नहीं हैं कि उनकी ओर से बोले तो कौन? किसका नाम भेजें? और भेजे तो कौन?
किसान मोर्चा के प्रमुख घटकों में पंजाब के किसान संगठन ज्यादा
संयुक्त किसान मोर्चा तो आंदोलन समाप्त होने के साथ ही बिखरने लगा था। फिलहाल तो हालत यह है कि किसान मोर्चा के घटक अपनी-अपनी ढपली और अपना-अपना राग बजा रहे हैं। किसान मोर्चा के प्रमुख घटकों में पंजाब के किसान संगठन ज्यादा थे, लेकिन आंदोलन समाप्त होने के साथ ही उनमें से ज्यादातर पंजाब की राजनीति में कूद पड़े। आंदोलन को सफलता को देखते हुए उन्होंने चुनावी रण भी जीतने का ऐलान कर दिया। मोर्चा को गैर राजनीतिक करार देने वाले किसान संगठनों ने उनसे किनारा कर लिया। जबकि आंदोलन के अंतिम दौर में हरियाणा के गुरुनाम सिंह चढ़ूनी से पंजाब के किसान नेताओं से मतभेद गहरा गया। एक दूसरे के खिलाफ गंभीर आरोप प्रत्यारोप लगाए जाने लगे थे।
आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाले शिवकुमार शर्मा ‘कक्का’ ने संयुक्त किसान मोर्चा को हाल ही में उधेड़कर रख दिया। उन्होंने इसके नेताओं पर गंभीर आरोप लगाते हुए अपने को इससे अलग कर नया संगठन खड़ा कर लिया। उनके संगठन का नाम संयुक्त किसान मोर्चा (अराजनीतिक) हो गया है।
दिल्ली की पूर्वी सीमा को घेरकर बैठे भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) में भी बिखराव हो गया है। उसके नेता राकेश टिकैत की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए उनके प्रमुख सहयोगी रहे धर्मेंद्र मलिक और राजेश सिंह चौहान ने अलग रास्ता चुन लिया है।
आपसी विवाद के चलते नामों पर नहीं बन पाई सहमति
उन्होंने अपने संगठ का नाम बीकेयू (अराजनीतिक) रख लिया है। संकिमो के बिखरे घटक के किसान नेताओं को एक मंच पर लाना और तीन सदस्यों के नाम तय करना टेढ़ी खीर साबित होगा। बीकेयू नेता धर्मेंद्र मलिक ने बताया ‘बड़े नेताओं की महत्वाकांक्षा इतनी अधिक है कि वे अपने नाम के आगे किसी और के बारे में नहीं सोच सकते हैं। आपसी विवाद के चलते नामों पर सहमति नहीं बन पाई थी और अब क्या बनेगी? जिस जिद के चलते सरकार और किसान मोर्चा के बीच वार्ता विफल हुई था, अब वही जिद मोर्चा के लिए घातक साबित हुई।’