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PM मोदी ने किया ‘स्टैच्यू आफ इक्वलिटी’ का अनावरण, बोले- आज मानवीय प्रेरणाओं को मूर्त रूप दे रहा भारत


हैदराबाद, प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने शनिवार को यहां 11वीं सदी के संत और समाज सुधारक रामानुजाचार्य की 216 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया। इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने शमशाबाद स्थित ‘यज्ञशाला’ में विधिवत पूजा-पाठ की। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने कहा कि संत रामानुजाचार्य की यह प्रतिमा भारत और विश्‍व में समानता का प्रतीक है। यह ‘स्टैच्यू आफ इक्वलिटी’ के रूप में हमें समानता का संदेश दे रही है। इसी संदेश को लेकर आज देश ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, और सबका प्रयास’ के मंत्र के साथ अपने नए भविष्य की नींव रख रहा है।

एकजुट प्रयास कर रहा भारत

पीएम मोदी ने कहा- विकास हो, सबका हो, बिना भेदभाव हो। सबको बिना भेदभाव के सामाजिक न्याय मिले। हमारी यही कोशिश है। जिन्हें सदियों तक प्रताड़ित किया गया, वो पूरी गरिमा के साथ विकास के भागीदार बनें, इसके लिए आज का बदलता हुआ भारत, एकजुट प्रयास कर रहा है।

यही तो भारत की विशेषता है

पीएम मोदी ने कहा कि भारत का स्वाधीनता संग्राम केवल अपनी सत्ता और अपने अधिकारों की लड़ाई भर नहीं था। इस लड़ाई में एक तरफ ‘औपनिवेशिक मानसिकता’ थी तो दूसरी ओर ‘जियो और जीने दो’ का विचार भी था। आज देश में एक ओर सरदार साहब की ‘स्‍टेच्‍यू आफ यू‍निटी’ एकता की शपथ दोहरा रही है तो रामानुजाचार्य जी की ‘स्‍टेच्‍यू आफ यूनिटी’ समानता का संदेश दे रही है। यही एक राष्ट्र के रूप में भारत की विशेषता है।

रामानुजाचार्य जी भारत की एकता की प्रेरणा

प्रधानमंत्री ने कहा- रामानुजाचार्य जी भारत की एकता और अखंडता की भी एक प्रदीप्त प्रेरणा हैं। उनका जन्म दक्षिण में हुआ लेकिन उनका प्रभाव दक्षिण से उत्तर और पूरब से पश्चिम तक पूरे भारत पर है। इसमें एक ओर ये नस्लीय श्रेष्ठता और भौतिकवाद का उन्माद था तो दूसरी ओर मानवता और आध्यात्म में आस्था थी और इस लड़ाई में भारत विजयी हुआ… भारत की परंपरा विजयी हुई।

हम अपनी असली जड़ो से जुड़ें

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने कहा- आज जब दुनिया में सामाजिक सुधारों की बात होती है प्रगतिशीलता की बात होती है तो माना जाता है कि सुधार जड़ों से दूर जाकर होगा लेकिन जब हम रामानुजाचार्य जी को देखते हैं, तो हमें अहसास होता है कि प्रगतिशीलता और प्राचीनता में कोई विरोध नहीं है। यह जरूरी नहीं है कि सुधार के लिए अपनी जड़ों से दूर जाना पड़े वरन जरूरी यह है कि हम अपनी असली जड़ो से जुड़ें, अपनी वास्तविक शक्ति से परिचित हों।