न्यूयॉर्क (यूएस), । संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कम्बोज ने शुक्रवार को कहा कि पीएम मोदी के नेतृत्व ने ‘बेटी बचाओ’, ‘बेटी पढ़ाओ’ जैसे प्रभावशाली अभियानों के माध्यम से लैंगिक समानता, महिला सशक्तिकरण के महत्व को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भारत के प्राचीन सभ्यतागत मूल्यों और सांस्कृतिक लोकाचार ने हमें लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तीकरण को हमारे समाज के प्रमुख किरायेदारों में से एक के रूप में पहचानना सिखाया है।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने महिलाओं के लिए वित्त, ऋण, प्रौद्योगिकी और रोजगार तक पहुंच को सक्षम करने के लिए अधिक ध्यान देने के साथ कई नागरिक-केंद्रित डिजिटल पहल भी की हैं।
उन्होंने कहा कि इन पहलों ने संकट में फंसी महिलाओं को बड़ी सहायता प्रदान करने, महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने और समाज के हर क्षेत्र में महिलाओं की समान भागीदारी को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया है।
कंबोज ने उदाहरण देते हुए कहा, भारत सरकार ने बैंक खाते खोले हैं। बैंक खातों में 482 मिलियन से अधिक लोग हैं जिनमें से 55 प्रतिशत से अधिक खाताधारक महिलाएं हैं।
कोविड महामारी के दौरान, इस पहल ने लगभग 200 मिलियन महिलाओं को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण में मदद की।
इस बीच, भारत ने हाल ही में महिलाओं, शांति और सुरक्षा पर सुरक्षा परिषद की बहस में जम्मू-कश्मीर का मुद्दा उठाने पर पाकिस्तान की आलोचना की और कहा कि इस तरह के “दुर्भावनापूर्ण और झूठे प्रचार” का जवाब देना अयोग्य है।
मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को संबोधित करते हुए कंबोज ने कहा कि मैं केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के बारे में पाकिस्तान के प्रतिनिधि द्वारा की गई ओछी, निराधार और राजनीति से प्रेरित टिप्पणी को खारिज करती हूं। मेरा प्रतिनिधिमंडल इस तरह के दुर्भावनापूर्ण और झूठे प्रचार का जवाब देना भी अयोग्य समझता है।
उन्होंने कहा, आज की चर्चा महिलाओं की शांति और सुरक्षा एजेंडे के पूर्ण कार्यान्वयन में तेजी लाने के हमारे सामूहिक प्रयासों को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण है। हम बहस के विषय का सम्मान करते हैं और हम समय के महत्व को पहचानते हैं। ऐसे में हमारा फोकस टॉपिक पर ही रहेगा।
यूएनएससी में अपने भाषण में कंबोज ने कहा कि महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ आतंकवादियों द्वारा की जाने वाली हिंसा बड़े पैमाने पर जारी है और आतंकवाद के सभी रूपों के प्रति शून्य-सहिष्णुता के दृष्टिकोण को अपनाने का आह्वान करते हुए इसकी कड़ी निंदा की जानी चाहिए।