नई दिल्ली। अयोध्या में रामलला के विराजने का आज सभी को इंतजार है। हर नागरिक 22 जनवरी को भगवान राम के दिव्य-भव्य और अलौकिक दर्शन को आतुर और उल्लास में डूबे राम भक्त निश्चित ही इस वास्तविकता से अनभिज्ञ होंगे कि इस संवेदनशील मुकदमे की सुनवाई के दौरान एक ऐसे भी जज थे जिनकी जान जोखिम में पड़ गई थी।
मुकदमे की सुनवाई कर रहे पीठ में शामिल न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सुधीर अग्रवाल (वर्तमान में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के न्यायिक सदस्य) के इर्द-गिर्द हर पल मौत की आहट थी। उनके स्वजन हर दिन इसे लेकर आशंकित रहते थे कि घर से न्यायालय के लिए निकले सुधीर सुरक्षित वापस घर आएंगे या नहीं? मंदिर निर्माण के स्वर्णिम अध्याय में वह स्याह पन्ना अदृश्य है कि न्यायमूर्ति की हत्या के लिए पांच करोड़ रुपये की सुपारी की खबर ने उनके पूरे परिवार को गहरा आघात पहुंचाया था।
अचानक घर के आस-पास दिखने लगे अलग समुदाय के लोग
न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल बताते हैं कि निर्णय सुनाने की तारीख जैसे-जैसे करीब आ रही थी, वैसे-वैसे अफवाहों का बाजार गर्म हो रहा था और धमकियां मिलनी तेज हो रही थीं। सुनवाई के अंतिम चरण में लखनऊ स्थित गेस्ट हाउस से लेकर इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के घर के आसपास संप्रदाय विशेष की बढ़ती गतिविधियों को महसूस किया। साथ ही कई बार विदेशी नंबर से फोन आए और धमकाने के लहजे में बात की गई।
सिमी के सदस्य हुए थे गिरफ्तार
निर्णय के व्यक्तिगत जीवन में पड़े असर का सवाल सामने आया तो न्यायमूर्ति अग्रवाल का दर्द और बेबसी दोनों छलक पड़े। उन्होंने बताया कि उस दौरान यह अफवाह हर स्तर पर फैली थी कि मामले को तय करने में सबसे सक्रिय भूमिका मेरी है, इसलिए खतरा भी मुझे और मेरे परिवार को था। इसकी पुष्टि तब हुई, जब प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के सदस्य गिरफ्तार हुए और उनके पास से मेरी व परिवार की तस्वीरें मिलीं। यह भी पता चला कि वे कोर्ट रूम में रेकी करके भी गए थे।
पांच करोड़ की मिली थी सुपारी
निर्णय सुनाने से पहले खुफिया एजेंसियों को उन्हें मारने के लिए पांच करोड़ रुपये की सुपारी देने की बात पता चली और जानबूझकर यह जानकारी उनके परिवार के सदस्यों तक पहुंचाई गई। मेरी मां को यह पता चला तो निर्णय सुनाने से तीन दिन पहले 27 सितंबर 2010 को वह भाई के साथ आगरा से इलाहाबाद स्थित घर आ गईं। मेरे बगल में बैठीं मां बस रोए जा रही थीं और इस केस से हटने की गुजारिश कर रही थीं, बाद में मैंने उन्हें मना लिया।
खतरा बर्दाश्त न कर सकी पत्नी की हृदयाघात से हुई मृत्यु
न्यायमूर्ति अग्रवाल ने बताया कि निर्णय सुनाने से पहले और इसके बाद परिवार व उनके ऊपर खतरे को लेकर अफवाह व खबरें आ रही थीं। सुरक्षा कारणों को देख अपने स्थानांतरण के लिए तत्कालीन सीजेआई से गुजारिश की थी, कुछ हुआ नहीं। निर्णय सुनाने के बाद भी खतरा बढ़ता रहा।
खुफिया एजेंसियों को सूचना मिली थी कि मुझ पर रैपिड फायरिंग, सुसाइड बॉम्बिंग से हमला हो सकता है। इस बीच सिमी के सदस्यों के मप्र की जेल से फरार होने की सूचना भी आई। हालांकि, सिमी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन परिवार पर बढ़ते खतरे के दबाव को पत्नी नूतन बर्दाश्त नहीं कर सकीं और दिसंबर 2012 में हृदयाघात से उनका निधन हो गया।न्यायमूर्ति अग्रवाल बताते हैं वह ऐसा समय था, जब एक जज होने के बाद भी खुद को असहाय महसूस किया।
जब दबंग देखने पहुंचे तो…
न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल बताते हैं कि 19 और 20 सितंबर को निर्णय लिखने की प्रक्रिया पूरी करके लंबे समय के बाद मैं आराम की मुद्रा में लखनऊ के गेस्ट हाउस में बैठा था। मुझे देखकर बेटी ने कहा कि आप आज निश्चिंत लग रहे हैं। मैंने जवाब दिया कि सारी प्रक्रिया पूरी हो गई। इस पर उसने कहा कि चलिए फिर सेलिब्रेट करते हैं। बेटी ने दबंग फिल्म देखने की इच्छा जाहिर की, तब फिल्म हाउसफुल चल रही थी।
मैंने सुरक्षाकर्मी से कहा अगर टिकट मिल जाए तो बताएं। कुछ देर में सुरक्षाकर्मी ने टिकट मिलने की बात की और हम फिल्म देखने फन सिनेमा पहुंचे तो वहां कड़ी सुरक्षा व्यवस्था थी। जैसे ही हम हाल में दाखिल हुए, पूरा हाल खाली देखकर हम दंग रह गए। हम तीन लोगों ने बैठकर फिल्म देखी। निश्चित तौर पर सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस ने ऐसा किया हो, लेकिन मुझे इसका पूर्व आभास नहीं था।