, मुंबई। हिंदी सिनेमा में महेंद्र सिंह धौनी, मुहम्मद अजहरुद्दीन, प्रवीण तांबे जैसे भारतीय क्रिकेटरों की जिंदगानी पर फिल्म बनी है। उसमें उनके किक्रेटर बनने के संघर्ष को दर्शाया गया है। पिछले साल रिलीज रणवीर सिंह अभिनीत फिल्म 83 भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम के वर्ष 1983 में वर्ल्ड कप जीतने पर आधारित थी। सिनेमाई पर्दे पर पहली बार किसी भारतीय महिला क्रिकेट खिलाड़ी की जिंदगानी पर फिल्म शाबास मिथु बनी है। यह फिल्म भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पूर्व कप्तान मिताली राज की जिंदगानी पर आधारित है। घर हो या खेल का मैदान महिलाएं समानता के अधिकार की लड़ाई लड़ रही हैं। शाबाश मिथु भी महिला क्रिकेटरों के साथ होने वाले भेदभाव और असमानता को दर्शाती है।
तापसी पन्नू ने किया इंप्रेस
फिल्म की शुरुआत में ही एक सीन है जिसमें बीसीसीआई के अधिकारियों के सामने मिताली (तापसी पन्नू ) कहती है कि सर हम भी तो इंडिया के लिए ही खेलते हैं। हमारी भी कोई पहचान है। इस पर बीसीसीआई अधिकारी (बृजेंद्र काला) चपरासी को बुलाकर पांच महिला खिलाड़ियों के नाम बताने के लिए कहते हैं। वह एक का भी नाम नहीं बता पाता है। वहां से कहानी मिताली के बचपन में आती है। हैदराबाद में अपने माता-पिता और दादी के साथ रह रही मिताली का भाई क्रिकेटर बनना चाहता है। मिताली की दोस्त नूरी उसका परिचय क्रिकेट से कराती है। दोनों एक दूसरे को सचिन कांबली बुलाते हैं। उनकी प्रतिभा को कोच संपत (विजय वर्मा) पहचानते हैं और उन्हें ट्रेनिंग देना शुरू करते हैं। नेशनल टीम में आने के बाद युवा मिताली का सामना असल कठिनाइयों से होता है। वहां टीम की कैप्टन और खिलाड़ियों द्वारा उसके साथ अच्छा व्यवहार न करना फिर टीम की कप्तान बनना और महिला क्रिकेटरों के अधिकारों के लिए लड़ना जैसे प्रसंगों के साथ कहानी आगे बढ़ती है।
इंटरवल के बाद धीमी पड़ी शाबास मिथु
इस फिल्म का शुरुआती निर्देशन राहुल ढोलकिया ने किया था। बाद में श्रीजित मुखर्जी ने निर्देशन की कमान संभाली। फिल्म का स्टोरी आइडिया अजित अंधारे का है जबकि इसे लिखा प्रिया एवन ने है। श्रीजित मुखर्जी ने क्रिकेट के साथ महिला सशक्तीकरण, महिला क्रिकेटरों के साथ होने वाले भेदभाव, खेल के साथ महिलाओं का निजी और प्रोफेशनल जिंदगी में संतुलन साधना, देशभक्ति जैसे कई मुद्दे उठाने की कोशिश की है। फिल्म में एक दृश्य में एयरपोर्ट पर पहुंचे भारतीय पुरुष क्रिकेट टीम के प्रति प्रशंसकों की दीवानगी और महिला किक्रेटरों के प्रति बेरुखी का दर्द सालता है। वहीं काउंटर पर बैठे शख्स को इससे फर्क नहीं पड़ता कि यह महिला खिलाड़ी हैं वह उनके साथ आम लोगों जैसा बर्ताव करता है। इसी तरह एक दृश्य में क्रिकेट बोर्ड की तरफ से महिला टीम को पुरुष खिलाड़ियों की पुरानी जर्सी भेजी जाती है। यह दृश्य समाज के हर क्षेत्र में व्याप्त असमानता और भेदभाव को लेकर कहीं न कहीं हर महिला की व्यथा और दर्द को बयां करते हैं जिसे इस तरह के व्यवहार और तिरस्कार का सामना करना पड़ता है। बहरहाल, इंटरवल से पहले फिल्म टी-20 मैच की तरह तेजी से बढ़ती है। बाद में टेस्ट मैच की तरह धीरे हो जाती है। फिल्म की अवधि दो घंटे 42 मिनट काफी ज्यादा है। चुस्त एडीटिंग से उसे कम करने की पूरी संभावना थी।
तापसी पन्नू ने मिताली बनने में की मेहनत
कलाकारों में तापसी पन्नू ने ऑन स्क्रीन मिताली बनने के लिए काफी मेहनत की है। उनकी मेहनत पर्दे पर झलकती है। हालांकि जब उनका किरदार अपने करियर के शिखर पर क्रिकेट छोड़ने का फैसला लेता है तो उस पल को लेखक और निर्देशक प्रभावी बनाने में कामयाब नहीं हो पाए है। कहानी मिताली के ईदगिर्द है तो बाकी खिलाड़ियों की जिंदगी में बहुत ज्यादा नहीं जाती, लेकिन खेल के प्रति उनके प्रेम और संघर्षों को संवादों में जरूर बताती है। फिल्म में मिताली के बचपन से लेकर वर्ष 2017 तक के सफर को दर्शाया गया है।