मथुरा, । मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मस्थान परिसर से शाही मस्जिद ईदगाह हटाने की लड़ाई भले ही फिर से न्यायालय में प्रारंभ हो गई, लेकिन कानूनी लड़ाई तो 190 वर्ष पहले ही प्रारंभ गई थी। 1832 में पहली बार स्वामित्व को लेकर मुकदमा चला। ये कान्हा के प्रति अगाध आस्था ही थी कि वाराणसी के पटनीमल और उनके वारिसों ने 112 वर्ष तक कानूनी लड़ाई लड़ी। मुकदमे में खर्च हुआ, तो पैरोकार कर्ज में डूब गए। लेकिन मुस्लिम पक्ष को कान्हा के हिस्से भूमि नहीं सौंपी। हां, जब भूमि की बिक्री की, तो केवल कर्ज के 13,400 रुपये ही लिए। कर्जे का ब्याज अपने पास से चुकाया।
कृष्ण जन्मस्थान ने देखे हैं कई दौर
कान्हा के जन्मस्थान ने तमाम झंझावात झेले हैं। आक्रांताओं का आक्रमण देखा, तो स्थानीय स्तर पर भूमि पर कब्जे के प्रयास भी शुरू हुए। ईस्ट इंडिया कंपनी से वाराणसी के पटनीमल ने 16 मार्च 1815 को जन्मस्थान की भूमि नीलामी में ली। ये भूमि जब ली गई, तब भी पटनीमल का उद्देश्य यहां मंदिर निर्माण ही था। नीलामी के बाद मुस्लिम पक्ष की ओर से वाद दायर होने लगे। 15 मार्च 1832 को पहला वाद अताउल्ला नामक व्यक्ति ने कलक्टर के न्यायालय में दायर किया। कहा कि पटनीमल के नाम कटरा केशवदेव की भूमि की नीलामी की गई, उसे निरस्त कर मस्जिद की मरम्मत करने दी जाए। कलक्टर ने तब नीलामी को जायज ठहराया गया।
लगातार चलते रहे वाद
इस बीच लगातार वाद चलते रहे। 1928 में पटनीमल के वारिस राय कृष्णदास ने मोहम्मद अब्दुल खां नामक व्यक्ति पर वाद दायर किया। कहा कि मस्जिद के आसपास पड़े सामान का विपक्षी इस्तेमाल कर रहे हैं। न्यायालय ने राय कृष्ण दास के पक्ष में निर्णय दिया। आठ फरवरी 1944 को राय कृष्ण दास और उनके पुत्र आनंदकृष्ण ने पंडित मदन मोहन मालवीय, गणेश दत्त और भीखनलाल आत्रेय को भूमि बेच दी। इस संकल्प के साथ कि मंदिर का निर्माण कराएंगे।
पैरोकारों पर हो गया था कर्ज
श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सचिव कपिल शर्मा बताते हैं कि भूमि के मुकदमे लड़ते-लड़ते पटनीमल के पैरोकारों पर 13,400 रुपये का कर्ज हो गया। जब 13.37 भूमि का सौदा हुआ, तो पटनीमल के वारिसों ने केवल कर्ज उतारने का ही 13,400 रुपये लिया। इस पर ब्याज करीब दस हजार रुपये हो गया, लेकिन ब्याज की धनराशि वारिसों ने धीरे-धीरे अपने पास से चुकाने की बात कही।
रजिस्ट्री में मंदिर निर्माण की शर्त
1944 में जब पटनीमल के वारिस राय कृष्ण दास और उनके पुत्र आनंद कृष्ण ने भूमि की रजिस्ट्री करते समय लिखी गई डीड में कहा था कि मंदिर का उद्धार करने के उद्देश्य से हमारे पूर्वज ने भूमि नीलामी में ली थी। मदन मोहन मालवीय आदि का उद्देश्य भी यही है। ये भी शर्त थी कि मंदिर के जीर्णोद्धार के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जिस प्रकार चाहें मालवीय आदि कटरा केशवदेव की भूमि का उपयोग कर सकते हैं।