- अफगानिस्तान में तालिबान की ओर से घोषित सरकार ”निश्चित तौर पर समावेशी नहीं” है और अफगान लोग शासन के ऐसे ढांचे को कत्तई स्वीकार नहीं करेंगे जिसमें महिलाएं और अल्पसंख्यक शामिल न हों। संयुक्त राष्ट्र में देश के राजदूत ने यह बात कही और वैश्विक संगठन से इस्लामी अमीरात की बहाली को अस्वीकार करने का आह्वान किया। तालिबान ने मंगलवार को मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद के नेतृत्व वाली एक कट्टरपंथी अंतरिम सरकार की घोषणा की, जिसमें प्रमुख भूमिकाएं विद्रोही समूह के हाई-प्रोफाइल सदस्यों को दी गई है। इसमें खूंखार हक्कानी नेटवर्क के विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी को आंतरिक मंत्री बनाया गया है।
मुल्ला अब्दुल गनी बरादर “नयी इस्लामी सरकार” में मुल्ला हसन अखुंद के बाद दूसरे नंबर पर यानी उपप्रधानमंत्री होंगे। संयुक्त राष्ट्र में अफगानिस्तान के राजदूत एवं स्थायी प्रतिनिधि गुलाम इसाकजई ने कहा, “आज तालिबान ने अपनी सरकार की घोषणा की है। यह किसी भी हाल में समावेशी नहीं है।” उन्होंने कहा, “अफगानिस्तान के लोग, खासकर युवा जो केवल एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक अफगानिस्तान को जानते हैं, शासन की ऐसी संरचना को स्वीकार नहीं करेंगे जो महिलाओं और अल्पसंख्यकों को बाहर रखती हो, सभी के लिए संवैधानिक अधिकारों को समाप्त करती हो और पूर्व में हासिल उपलब्धियों को संभाल कर नहीं रखती हो।”
इसाकजई को पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी ने जून 2021 में संयुक्त राष्ट्र में काबुल का राजदूत नियुक्त किया था। उनकी टिप्पणी कार्यवाहक तालिबान सरकार के गठन को लेकर पूर्ववर्ती गनी शासन द्वारा नियुक्त किसी अधिकारी की पहली प्रतिक्रिया है। ‘शांति की संस्कृति’ विषय पर उच्च स्तरीय फोरम पर संयुक्त राष्ट्र महासभा सभागार में अपनी टिप्पणी में, इसाकजई ने कहा, हम संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य राष्ट्रों से अफगानिस्तान में शांति की संस्कृति को बढ़ावा देने में हमारी मदद करने की अपील करते हैं।”
उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि आप इस्लामी अमीरात की बहाली को अस्वीकार करना जारी रखें, तालिबान को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों और मानवीय कानून के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार ठहराएं, एक समावेशी सरकार पर जोर दें । महिलाओं और लड़कियों के साथ तालिबान के व्यवहार एवं उनके अधिकारों को सम्मान देने के संबंध में एक मौलिक सीमा तय करें।” अफगानिस्तान में कार्यवाहक सरकार में प्रमुख व्यक्तियों की घोषणा तालिबान द्वारा युद्धग्रस्त अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर पश्चिमी देशों द्वारा समर्थित पिछले निर्वाचित नेतृत्व को बाहर करने के बाद की गई है।