- उत्तर प्रदेश की सियासत में दलित समुदाय के बीच राजनीतिक चेतना जगाने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सूबे की सत्ता में चार बार विराजमान हुई और राष्ट्रीय पार्टी होने का खिताब भी अपने नाम किया, लेकिन 2012 के बाद से पार्टी का ग्राफ नीचे गिरना शुरू हुआ तो अभी तक थमा नहीं. सवा चार साल पहले यूपी में 19 सीटें जीतने वाली बसपा की मौजूदा समय में हालत अनुप्रिया पटेल की अपना दल और कांग्रेस जैसी हो गई है.
मायावती ने अपने खोए हुए सियासी जनाधार को दोबारा से वापस पाने के लिए चार साल में चार प्रदेश अध्यक्ष बदल दिए, लेकिन विधायकों की संख्या दो अंकों से घटकर ईकाई में आ गई है और नेताओं का पार्टी छोड़ने का सिलसिला भी जारी है.
प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की सियासी सरगर्मियों के बीच बसपा का राजनीतिक कुनबा बिखरता जा रहा है. बसपा से निलंबित 11 विधायकों ने एकजुटता दिखाते हुए लालजी वर्मा के नेतृत्व में एक अलग दल बनाने का फैसला कर लिया है. वहीं, 5 बागी विधायकों ने मंगलवार को लखनऊ में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात की. माना जा रहा है कि बसपा के ये सभी बागी विधायक जल्द ही अपना गुट बनाकर सपा का दामन थाम सकते हैं.
यूपी में बसपा कहां से कहां आ गई
साल 2017 के विधानसभा में बसपा यूपी में महज 19 सीटों पर सिमट गई थी, लेकिन उपचुनाव में एक सीट गंवाने के बाद पार्टी की सीटें 18 रह गईं थी. इसके बाद बसपा में एक-एक कर विधायकों का मोहभंग होना शुरू हुआ तो फिर सवा चार साल में मायावती ने 19 में से 12 विधायकों को खो दिया है. इस तरह से मौजूदा समय में बसपा विधायकों की संख्या यूपी में अपना दल (एस) से भी कम और कांग्रेस के बराबर पहुंच गई है.
विधानसभा चुनाव की सियासी हलचल के बीच बसपा संस्थापक कांशीराम के समय से पार्टी का झंडा उठाने और संघर्ष करने वाले पार्टी के पिछड़ा चेहरा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राम अचल राजभर और लालजी वर्मा को मायावती ने पिछले दिनों पार्टी से बर्खास्त कर दिया. इतना ही नहीं मायावती ने कहा कि उन्हें अब न तो पार्टी का टिकट मिलेगा और न ही उन्हें किसी पार्टी कार्यक्रम में आमंत्रित किया जाएगा. ऐसे में बसपा से निष्कासित दोनों ही नेताओं ने अब अपना सियासी भविष्य तलाशना शुरू कर दिया है.
बसपा का नुकसान, सपा का फायदा
लालजी वर्मा और राम अचल राजभर के अलावा अब तक बसपा ने असलम रैनी, असलम अली, हरगोविंद भार्गव, मुजतबा सिद्दीकी, हकीम लाल बिंद, सुषमा पटेल, वंदना सिंह, अनिल सिंह और रामवीर उपाध्याय समेत 11 विधायकों को निलंबित कर दिया है. बसपा के एक पार्टी पदाधिकारी के अनुसार, उनमें से 8 सपा के संपर्क में हैं और 3 भाजपा के साथ हैं. उन्होंने कहा कि रामवीर उपाध्याय, अनिल सिंह और राम अचल भाजपा के संपर्क में हैं, जबकि अन्य सपा के संपर्क में हैं.
बसपा के एक विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर aajtak.in को बताया कि मैं बागी की श्रेणी में नहीं हूं, लेकिन हमारे बीच भी अनिश्चितता है. किसको कब हटा दिया जाये क्या पता? उन्होंने किसी अन्य पार्टी में शामिल होने की संभावना से इनकार किया है. पार्टी के एक पदाधिकारी भी इस अनिश्चितता के दौर से गुजर रहे हैं. हालांकि, यह हकीकत भी है कि मायावती की गज कब और किस नेता पर गिर जाए यह कोई नहीं कह सकता है.