लखनऊ [राज्य ब्यूरो]। अमेठी और रायबरेली के नाम पर कांग्रेस कभी इतराती थी लेकिन आज यह दोनों नाम पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं को भी असहज करते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से चला विधानसभा चुनाव अब अवध क्षेत्र में पहुंच गया है जहां कभी कांग्रेस के गढ़ रहे यह दोनों जिले भी हैं। कांग्रेस भले ही प्रदेश के 399 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ रही है लेकिन उसके लिए कसौटी तो रायबरेली और अमेठी जिलों की सीटें ही होंगी। कांग्रेस पर अब अमेठी और रायबरेली जिलों में कोरी स्लेट पर नई इबारत लिखने की चुनौती होगी। वहीं कांग्रेस की प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा के रणकौशल की भी परीक्षा होगी।
गांधी-नेहरू परिवार के साथ अमेठी और रायबरेली की गलबहियां ने इन दोनों जिलों को कांग्रेस के गढ़ के रूप में पहचान दिलाई। यह बात और है कि 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अमेठी की चारों सीटें हार गई थी। दो साल बाद कांग्रेस को तब करारा झटका लगा जब लगातार तीन बार यहां से सांसद चुने गए पार्टी नेता राहुल गांधी 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की स्मृति ईरानी से हार गए। लिहाजा अमेठी में कांग्रेस दोहरे दबाव में है। खासकर तब जब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की कमान पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के हाथों में है। अठारहवीं विधान सभा के चुनाव में कांग्रेस के सामने पहली चुनौती तो यह है कि वह अमेठी में अपना खाता खोलकर अपना अस्तित्व बचाए। दूसरी चुनौती यह है कि जिले में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर प्रियंका की सफल कप्तानी पर मुहर लगाए।