नई दिल्ली, । World Press Freedom Day 2022: रूस यूक्रेन युद्ध के दौरान दुनिया की नजर भारत पर टिकी है। भारतीय कूटनीति का लोहा पूरी दुनिया ने माना है। हाल के वर्षों में चाहे मामला रूसी मिसाइल सिस्टम एस-400 की खरीद का हो या रूस यूक्रेन युद्ध के दौरान उसकी तटस्थता नीति का हो भारतीय कूटनीति की सराहना हर तरफ की गई है। इसके अलावा कोरोना महामारी के काल में भारत ने अपने विकास को प्रभावित नहीं होने दिया। भारत दुनिया को यह संदेश देने में सफल रहा कि उसकी आर्थिक व्यवस्था का आधार काफी ठोस है। उसका विकास स्थाई है। कोरोना काल में अपने आर्थिक विकास के साथ उसने अपने मित्र देशों की बढ़चढ़ कर मदद की। इसके अतिरिक्त दुनिया के लोकतांत्रिक देशों की नजरें भी भारत पर टिकी है। भारत दुनिया के उन मुल्कों में शामिल है, जहां लोकतांत्रिक व्यवस्था काफी मजबूत है। दुनिया में लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना में भारत अग्रणी रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर भारत में प्रेस की आजादी के क्या मायने है? क्या भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में प्रेस स्वतंत्र है? इसके लिए क्या संवैधानिक उपबंध है ?
1- प्रेस की आजादी के मामले में वर्ष 2013 से वर्ष 2021 तक भारत की स्थिति बेहतर हुई है। वर्ष 2013 में 180 देशों की सूची में भारत की रैंक 140वें स्थान पर थी। वर्ष 2017 में भारत की रैंकिंग बेहतर हुई। भारत की रैंकिंग चार पायदान ऊपर पहुंच गई। इस वर्ष भारत दुनिया की रैंकिंग में 136वें पावदान पर आ गया। यानी उसकी रैंकिंग में सुधार हुआ। हालांकि, वर्ष 2021 में भारत की रैंकिंग में गिरावट आई। पिछले वर्ष 20 अप्रैल को वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2021 की लिस्ट जारी की गई, जिसमें भारत इस साल भी 180 देशों की सूची में 142वें नंबर पर रहा। इसके पूर्व भी भारत इसी नंबर पर रहा था। इस लिस्ट में पहला नाम नार्वे का है, वहीं दूसरे स्थान फिनलैंड और तीसरे पायदान पर डेनमार्क काबिज है। 180 देशों की सूची में सबसे आखिरी नंबर पर इरीट्रिया का नाम आता है।
2- हालांकि, प्रेस की आजादी के मामले में वर्ष 2021 में दक्षिण एशिया के कई मुल्कों की स्थिति अच्छी नहीं है। खासकर पाकिस्तान और बांग्लादेश की रैंकिंग में यह गिरावट देखी गई है। भारत का पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की रैंकिंग भी खिसक कर तीन पावदान नीचे चली गई। प्रेस की आजादी के मामले में भारत की रैंकिंग 142वें स्थान पर है। बांग्लादेश भी चार पावदान नीचे आ गया। इस लिहाज से भारत बेहतर स्थिति में है। हालांकि, प्रेस की आजादी के मामले में नेपाल की स्थिति भारत से बेहतर है। नेपाल की रैंकिंग भारत से बेहतर है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
1- वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक अरिवंद सिंह ने कहा कि दुनिया भर में प्रेस की आजादी को सम्मान देने और उसके महत्व को रेखांकित करने के लिए 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। लोकतंत्र में तो उसे चौथा स्तंभ भी कहा जाता है। दुनिया के कई मुल्कों में प्रेस यानि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित रखा जाता है। ऐसा अक्सर देश के प्रति खतरे के नाम पर किया जाता है। आज प्रेस और उसके अन्य आधुनिक स्वरूप जिसे मीडिया भी कहा जाता है, की अहमियत जितनी है उतनी पहले कभी नहीं हुआ करती थी। सूचनाओं के आदान प्रदान के माध्यम इंटरनेट के कारण बहुत तेजी से हो पा रहा है। हालांकि, इंटरनेट के जमाने में भी कई मुल्कों की व्यवस्था ने मीडिया पर ऐसी पाबंदियां लगाकर रखा है, जिसे प्रेस की आजादी बाधित होती है।
2- उन्होंने कहा कि इस अंतरराष्ट्रीय इंडेक्स में भारत की चाहे जो स्थिति हो, वह चाहे जिस पावदान पर हो, लेकिन संविधान में प्रेस की आजादी के पर्याप्त उपबंध है। हम यह कह सकते हैं कि आजादी के बाद भारत में जितना लोकतंत्र मजबूत हुआ है उसी अनुपात में प्रेस ने भी आजादी हासिल की है। भारतीय संविधान के मूल अधिकार के अध्याय में अनुच्छेद 19 (1) (क) में भारतीय नागरिकों को वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान की गई है। इसी में प्रेस की स्वतंत्रता भी समाहित है। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में कुछ बातों को लेकर मीडिया के लिए भी लक्ष्मण रेखा खींची गई है। खासकर संविधान के अनुच्छेद 105 में ससंद के अनुच्छेद 194 में राज्य विधानमंडलों को विशेषाधिकार प्रदान किया गया है, जिसके उल्लंघन से पत्र एवं पत्रकारों को भी बचने की जरूरत है।
3- उन्होंने कहा कि भारत में कुछ मौकों को छोड़कर मीडिया पूरी तरह से आजाद है। खासकर भारतीय संविधान के भाग 18 के अन्तर्गत अनुच्छेद 352 में युद्ध 352 से अनुच्छेद 360 तक आपात उपबंध का प्रावधान है। अनुच्छेद 352 में युद्ध, वाह्य आक्रमण एवं सशस्त्र विद्रोह के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा आपात की उद्घोषणा की जाती है। यह आपातकाल की स्थिति है। इस दौरान वाणी एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जिसमें प्रेस की स्वतंत्रता समाहित है, स्थगति रहती है। भारत में 1970 के दशक में इमरजेंसी के दौरान भी भारत में प्रेस की आजादी पर कई प्रतिबंध लगाए गए थे। अगर कुछ अपवादिक स्थितियों को छोड़ दिया जाए तो भारत में प्रेस को पर्याप्त आजादी हासिल है।
क्यों मनाया जाता है ये खास दिन
साल 1991 में अफ्रीका के पत्रकारों ने प्रेस की आजादी के लिए मुहिम छेड़ी थी। इन पत्रकारों ने तीन मई को प्रेस की आजादी के सिद्धांतों को लेकर बयान जारी किया था, जिसे डिक्लेरेशन आफ विंडहोक के नाम से भी जानते हैं। इसके ठीक दो साल बाद यानी साल 1993 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने पहली बार विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाने का फैसला किया था। उस दिन से लेकर आज तक हर साल तीन मई को विश्व प्रेस आजादी दिवस मनाया जाता है। सन 1997 से हर साल तीन मई यानी विश्व प्रेस आजादी दिवस पर यूनेस्को गिलेरमो कानो वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम पुरस्कार देता है। यह उस संस्थान या फिर व्यक्ति को दिया जाता है, जिसने प्रेस की आजादी के लिए कुछ बड़ा काम किया होता है।