जिले के ईंट भट्ठे खुलेआम उड़ा रहे बाल श्रम कानून की धाज्जियां
अरवल। बाल श्रम को लेकर सरकार चाहे जितने कानून बना ले या सख्ती कर ले, लेकिन चोरी छुपे ही सही बाल मजदूरी बदस्तूर जारी है। कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है जिले के कलेर प्रखंड मुख्यालय से महज तीन किलोमीटर दूर पर राजपुरा गांव में, जहां हीरा और सोना नामक ईट भट्ठे पर मासूमों का बचपन मेहनत मजदूरी की आग में जल रहा है। यहां खुलेआम बाल श्रम कानून की धाज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
दावों के उलट है जमीनी हकीकत
‘आज’ संवाददाता की पड़ताल में जिले के कई ईंट भट्ठों पर बड़ी संख्या मासूम बच्चे मजदूरी करते पाये गए। सच तो यह है कि ये तो नाम मात्र उदाहरण है, जिन ईंट भट्ठों पर बाल मजदूरी जारी है। यह काम काफ़ी खतरनाक है और इससे जुड़े हादसों की खबरें अक्सर पढ़ने-सुनने को मिलती हैं। ईंट-भट्ठा उद्योग में मजदूरों की सुरक्षा को लेकर कोई मुकम्मल उपाय नहीं है। बाल मजदूरी पर रोकथाम को लेकर स्थानीय प्रशासन से लेकर राज्य सरकार के द्वारा बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि न तो बाल मजदूरी रुकी है और न ही मासूमों पर अत्याचार।
चिमनी भट्टा की आग में जल रही मासूमों की जिंदगी
कोरोना के दूसरी कहर के बीच लॉकडाउन लागू है। लेकिन, ईट भट्टों पर मासूमों की जिंदगी चिमनी भट्टा की आग में जल रही है। ईट भट्टे पर खुलेआम बाल श्रम कानून की धाज्जियां उड़ाई जा रही है। ईट भट्टे पर छोटे-छोटे मासूम बच्चे ईंटों को बोझ ढोने का काम कर रहे हैं। भट्ठा मालिक इन मासूम बच्चों से काम कराने में जरा भी हिचक महसूस नहीं कर रहा हैं। जिन बच्चों के सिर पर बड़ों का हाथ और माता-पिता का आशीर्वाद होना चाहिए, उस सिरों पर टोकरियां दिखाई पड़ रही हैं।
विभाग की सुस्ती कारण छीन रहा बचपन
बताया जाता है कि ईंट भट्ठों पर काम करने वाले मजदूर अन्य राज्यों से ठेकेदार के द्वारा यहां लाये जाते हैं, लेकिन यहां आने के बाद ना तो ठेकेदार के पास इनका कोई रिकॉर्ड रहता है और ना ही पुलिस प्रशासन की ओर से इनका किसी प्रकार का पुलिस वेरिफि़केशन किया जाता है। इधार जिले का श्रम विभाग आंख मूंदे आराम से गहरी नींद में सोया हुआ नजर आ रहा है। अधिकारी सिर्फ चाय-पानी की दुकानों पर छापेमारी कर कर्तव्यों से इतिश्री कर लेते हैं। इनकी सुस्ती का ही नतीजा है कि भट्ठे पर काम करने वाले बच्चों का बचपन छीन रहा है।
छोटे बच्चे भट्ठा संचालकों के लिए सस्ते मजदूर
बता दें कि जिले में उद्योग के नाम पर बड़ी संख्या में ईंट-भट्ठे संचालित हैं। इनमें से अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं। यहां दूसरे प्रदेश के श्रमिक ईंट पथाई के लिए आते हैं। भट्ठों पर ही झ़ुग्गी बनाकर श्रमिक परिवार जीवनयापन करता आया है। इनके छोटे बच्चे भट्ठा संचालकों के लिए सस्ते मजदूर हैं। भट्ठे पर कच्चे ईंट की ढुलाई, लकड़ियों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने, कोयला तोड़ने आदि काम में बाल श्रमिकों को लगाया जाता है।