नई दिल्ली, । श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट पर चीनी पोत को लेकर भारत-चीन के बीच चल रही कूटनीतिक जंग समाप्त हो गई है। इस जंग में भारत ने चीन को चित कर दिया है। भारत की आपत्ति के बाद श्रीलंका ने इस पोत को हंबनटोटा जाने की इजाजत नहीं दी है। इस मामले को भारत की कूटनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है। आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका ने भारत की बात का मान रखते हुए चीन को साफ इनकार कर दिया है। अब चीन का जहाज श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट पर नहीं रुकेगा। श्रीलंकाई अधिकारियों ने गुरुवार को ये जानकारी दी। बता दें कि गुरुवार को हंबनटोटा पहुंचने की योजना थी। चीनी शिप यहां कुछ समय के लिए लंगर डालने वाला था, लेकिन पिछले दिनों भारत ने श्रीलंका में इस पोत की संभावित मौजूदगी को लेकर चिंता व्यक्त की थी। आइए जानें कि पूरा मामला क्या है। आखिर भारत को इस चीनी पोत से क्या दिक्कत थी।
श्रीलंका ने पहले चीन को हां कहा बाद में लंगर डालने से किया इन्कार
गौरतलब है कि पहले श्रीलंका के विदेश मंत्रालय ने 12 जुलाई को हंबनटोटा बंदरगाह पर जहाज को लंगर डालने के लिए मंजूरी दी थी। आठ अगस्त को मंत्रालय ने कोलंबो में चीनी दूतावास को लिखे एक पत्र में जहाज के तय कार्यक्रम के मुताबिक ठहराव को स्थगित करने का अनुरोध किया। हालांकि, मंत्रालय ने इस तरह के अनुरोध का कारण नहीं बताया। ‘युआन वांग 5’ उस समय तक हिंद महासागर में प्रवेश कर चुका था। हंबनटोटा के बंदरगाह को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। बंदरगाह को बड़े पैमाने पर चीनी कर्ज की मदद से विकसित किया गया है। गुरुवार शाम तक ‘युआन वांग 5’ श्रीलंकाई जल क्षेत्र में दक्षिणी बंदरगाह हंबनटोटा से लगभग 600 समुद्री मील दूर था। पोत अब श्रीलंका के पूर्व से बंगाल की खाड़ी से गुजरेगा।
आखिर क्या है भारत की चिंता
भारत को आशंका है कि चीन इस पोर्ट का इस्तेमाल सामरिक गतिविधियों के लिए कर सकता है। भारत को यह चिंता तब से है, जब हंबनटोटा पोर्ट को श्रीलंका ने कर्ज नहीं चुका पाने के बदले 99 साल के लिए गिरवी रख दिया था। बता दें कि 1.5 अरब डालर का हंबनटोटा पोर्ट एशिया और यूरोप के मुख्य शिपिंग मार्ग के पास है। श्रीलंका के लिए चीन सबसे बड़े कर्जदाता देशों में से एक है। चीन ने श्रीलंका में भारत की मौजूदगी कम करने के लिए रोड, रेल और एयरपोर्ट में भारी निवेश किया है। श्रीलंका अभी आर्थिक संकट में फंसा है। वह चीन से चार अरब डालर की मदद चाह रहा है। इस बाबत दोनों देशों के बीच वार्ता भी चल रही है। श्रीलंका चीन को नाराज नहीं करना चाहता है। दूसरी, ओर वह भारत के नजदीक भी रहना चाहता है। भारत ने श्रीलंका को 3.5 अरब डालर की मदद की है। श्रीलंका, चीन और भारत के बीच संतुलन बनाने की कोशिश में जुटा है। हालांकि, चीन के लिए यह काम इतना आसान नहीं है।
चीन की कुटिल कूटनीति
उधर, इस मामले में चीन का कहना था कि हिन्द महासागर में ट्रांसपोर्टेशन हब है। वैज्ञानिक शोध से जुड़े कई देशों के पोत श्रीलंका में ईंधन भरवाने जाते हैं। इसमें चीन भी शामिल है। चीन हमेशा से नियम के मुताबिक समुद्र में मुक्त आवाजाही का समर्थन करता रहा है। हम तटीय देशों के क्षेत्राधिकार का सम्मान करते हैं। पानी के भीतर वैज्ञानिक शोध की गतिविधियां भी चीन नियमों के तहत ही करता है। श्रीलंका में चीन के राजदूत वांग वेनबिन ने कहा था कि श्रीलंका एक संप्रभु राष्ट्र है। श्रीलंका के पास अधिकार है कि वह दूसरे देशों के साथ संबंध विकसित करे। दो देशों के बीच सामान्य सहयोग उनकी अपनी पसंद होती है। दोनों देशों के अपने-अपने हित होते हैं और यह किसी तीसरे देश को लक्ष्य करने के लिए नहीं होता है। कोई देश कथित सुरक्षा चिंता का हवाला देकर श्रीलंका पर दबाव डाले। वांग ने कहा कि चीन का समंदर में शोध पूरी तरह से तार्किक है। यह कोई चोरी-छिपे नहीं है। चीन और श्रीलंका के बीच सामान्य सहयोग को बाधित करने की कोशिश बंद होनी चाहिए।