डा. भरत झुनझुनवाला
आक्सफोर्ड इकनामिक्सने आकलन किया था कि २०२१ में कुछ गिरावट आनेके बाद २०२२ से विश्व अर्थव्यवस्था पुरानी गतिसे चलती रहेगी। वह आकलन भी निरस्त होता ही जान पड़ता है। इस दुर्गम परिस्थितिमें सरकारकी ऋण लेकर संकटको पार करनेकी नीति बहुत ही भारी पड़ेगी। २०२०-२१ में ऋण लेकर यदि २०२१-२२ में अर्थव्यवस्था चल निकलती तो संभवत: उस ऋणकी आदायगी की जा सकती थी। लेकिन यदि २०२१-२२ और इसके आगे २०२२-२३ में यह संकट बना रहा तो ऋणके बोझसे अर्थव्यवस्था इतनी दब जायेगी कि आगे निकलना ही कठिन होगा। जिस व्यक्तिकी नौकरी छूट गयी हो वह उत्तरोत्तर ऋण लेकर अपने जीवन स्तरको बनाये रखे और नौकरी दुबारा न लगे तो अंतमें उसे भारी कठिनाइयोंका सामना करना पड़ता है। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि कोविडकी वर्तमान दूसरी लहर आखिरी न होगी। कई देशोंमें तीसरी और चौथी लहर भी आ चुकी है। कोविड वायरस म्यूटेट कर रहा है। आनेवालेसेमें कोविडके नये म्युटेंट बन सकते हैं जिनसे यह महामारी दुबारा फैल सकती है। इविन कालवेने नेचर डाट काम वेबसाइटपर लिखा है कि जनवरी २०२१ में बायोटेक कम्पनी नोवावाक्सने सूचना जारी की कि उनके द्वारा खोजी गये कोविडके टीकाके क्लीनिकल ट्रायलमें पता लगा कि वह इंगलैंडके कोविड वैरिएंटपर ८५ प्रतिशत सफल था, लेकिन दक्षिणी अफ्रीकाके वैरिएंटपर मात्र ५० प्रतिशत सफल था। अत: वर्तमान टीके भविष्यमें उत्पन्न होनेवाले कविड वैरिएंटपर संभवत: सफल न हों।
कालवेके अनुसार वायरसोंका म्यूटेट करना एक सामान्य प्रक्रिया है। फ्लूके वायरस भी लगातार म्यूटेट करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संघटनने आस्ट्रेलियामें एक केंद्र बनाया है जो कि सम्पूर्ण विश्वके फ्लूके वायरसपर नजर रखता है। फ्लूके नये वैरिएंटके उत्पन्न होनेपर अध्ययन करता है कि वह वैरिएंट कितना फैल रहा है। यदि वह वैरिएंट किसी विशेष स्थानमें सीमित नहीं है और चारों तरफ फैल रहा है तो वह तत्काल नये टीकेको बनानेको कदम उठाते हैं। इसी प्रकार कोविड वायरस वर्तमानमें म्यूटेट कर रहा है और आनेवाले समयमें यह लगातार म्यूटेट कर सकता है। ऐसेमें उसका सामना करनेके लिए हमें लगातार नये टीके बनानेकी जरूरत पड़ सकती है। लेकिन कोविडका संकट फ्लूकी तुलनामें बहुत गहरा है। फ्लूका टीका बननेमें यदि एक वर्ष लग जाय तो नुकसान होता है लेकिन हाहाकार नहीं मचता है। कोविडका टीका बनानेमें यदि एक वर्षका समय लग जाय तो सम्पूर्ण विश्वमें हाहाकार मच सकता है।
कोविडका टीका बनानेका दूसरा तरीका फाज थैरेपी है। फाज वायरस होते हैं जिनका मूल रूप कोविड अथवा फ्लूके वायरस जैसा ही होता है। लेकिन यह लाभप्रद वायरस होते हैं। फाज हमारे शरीरमें दो प्रकारसे काम करते हैं। यह सीधे रोगकारक बैक्टीरिया जैसे मलेरिया या टाइफाइडके बैक्टीरियापर आक्रमण करके बैक्टीरियाके शरीरमें प्रवेश करते हैं। बैक्टीरियाके शरीरके तत्वोंका उपयोग करके यह स्वयंको मल्टीप्लाई कर लेते हैं। जैसे एक लाभप्रद फाजने मलेरियाके बैक्टीरियामें प्रवेश किया तो वह सौ लाभप्रद फाज बनकर निकलता है। इस प्रकार जो हमारे शरीरमें बैक्टीरिया सम्बन्धी रोग हैं उनका उपचार फाजके द्वारा किया जा सकता है। पूर्वी यूरोपके देश जार्जियामें इस दिशामें बहुत कार्य किया गया है। वहांपर फाजसे क्रोनिक रोगोंका उपचार लगातार किया जा रहा है।
फाज दूसरी तरहसे भी हमारे शरीरमें काम करते हैं। यह शरीरमें प्रवेश करके अपने समकक्ष दूसरे फाजके प्रवेशको रोक सकते हैं। पोलैंडके प्रोफेसर एन्द्रेज गोर्सकीके अनुसार फाज हमारे फेफड़ोंमें प्रवेश करके जिन कोशिकाओंमें कोविडका वायरस प्रवेश करना चाहता है, उन कोशिकाओंमें यह प्रवेश करके कोविडके वायरसके प्रवेशको रोक सकते हैं। इसी क्रममें तुर्कीके पाक ग्रुप आफ कम्पनियोंके मर्ट सेलीमुगलूने कैप्सिड एंड टेल पत्रिकामें लिखा है कि कोविड वायरसका सामना करनेका एक उपाय यह है कि फाजके मिश्रणका उपयोग करके वैक्सीन बनायी जाय। फाजके मिश्रणको मनुष्यको देनेपर उसके शरीरमें तमाम प्रकारके फाज उपस्थित हो जायेंगे। उनमेंसे जिस फाजके समकक्ष बैक्टीरिया शरीरमें उपलब्ध होंगे उन बैक्टीरियाको वह फाज समाप्त कर देगा और जिन कोशिकाओंको जो फाज रोक सकेगा उनमें वह प्रवेश करके कोविडके प्रवेशको भी रोक सकेगा। मिश्रणमें दिये गये दूसरे फाज जो उपयोगी नहीं होंगे वह स्वयं समाप्त हो जायेंगे। जैसे किसान द्वारा खेतमें मिश्रित खेती की जाती है और एक ही खेतमें तीन फसलोंके बीज बो दिये जाते हैं। तीनोंमें जिस फसलके अनुकूल मौसम होगा वह फसल सफल कामयाब हो जायेगी और बाकी दोनों फसलें समाप्त हो जायेंगी। इसी प्रकार सेलीमुगलूका कहना है कि हम मिश्रित फाजोंसे टीका बनाकर मनुष्यको दे सकते हैं जो कि कोविडके विभिन्न वैरिएंटको समाप्त करनेमें सफल हो सकता है।
इस दिशामें अपने देशमें विशेष उपलब्धि गंगा नदीकी है। नेशनल इन्वायरमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूटके अनुसार गंगामें दो सौ प्रकारके फाज पाये जाते हैं जिसकी तुलनामें यमुना और नर्मदा नदीमें केवल २० प्रकारके। अत: हम गंगा नदीके मिश्रित फाजोंका उपयोग करके कोविडका टीका बना सकते हैं। मेरिलैंड अमेरिकाके फेज थ्युरेप्यूटिक्स कम्पनीने फाज आधारित कोविडका टीका बनाया है और उसकी फेज वन ट्रायल चल रही है। विश्वमें चल रहे यह प्रयोग हमें उत्साहित करते हैं कि कोरोना वायरसके संक्रमणका उपचार गंगाजलसे करनेका अध्ययन करें। वर्तमान संकटसे शीघ्र ही छुटकारा मिलनेवाला नहीं दिख रहा है। सरकारको सर्वप्रथम टीका बनानेमें भारी निवेश करना चाहिए विशेषकर देशमें उपलब्ध गंगाके फाज अथवा आयुर्वेद इत्यादिसे। दुसरे, ऋण लेकर अपने खर्चोंको सामान्य रूपसे बनाये रखनेकी नीतिको त्याग कर सरकारी खर्चोंमें ५० प्रतिशतकी कटौती तत्काल कर लेनी चाहिए, ताकि हम ऋणके बोझसे न दबें। तीसरे, तात्कालिक विषम परिस्थिति सरकारको आक्सीजन, आक्सीजन कंसनट्रेटर, टीका इत्यादिकी जरूरतोंको पूरा करनेके लिए आयात करना चाहिए। लेकिन दीर्घकालके लिए इनके साथ तमाम आयातोंपर आयात कर बढ़ाना चाहिए जिससे आनेवाले संकटमें हमें ऑक्सीजनके लिए आयातोंका सहारा न लेना पड़े।