नई दिल्ली, : चीन ने भारत के पड़ोसी मुल्क नेपाल में अपनी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road initiative- BRI) बीआरआई प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ाने के लिए एक नया समझौता कर लिया है। चीन और नेपाल की यह निकटता भारत को चिंता में डाल सकती है। दक्षिण एशिया के कई मुल्क इस परियोजना का हिस्सा बन चुके हैं। चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना में कई देश चीन के कर्ज में डूब चुके हैं। दुनिया ने चीन की खतरनाक लोन डिप्लोमेसी के परिणाम श्रीलंका और पाकिस्तान में देख लिया है। आइए जानते हैं कि क्या है चीन की लोन डिप्लोमेसी। इसके क्या होंगे दूरगामी परिणाम। आखिर चीन किस योजना पर कर रहा है काम। भारत किस तरह से हो रहा है प्रभावित।
1- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि पूरी दुनिया में खासकर दक्षिण एशिया में चीन अपना पांव पसार रहा है। यह भारत के लिए खतरा है। वह भारत की संप्रभुता के लिए खतरा है। उन्होंने कहा कि चीन की महाशक्ति बनने की होड़ में पूरी दुनिया का शक्ति संतुलन अस्थिर हो गया है। चीन की खतरनाक लोन डिप्लोमेसी ने कई देशों को अपने कर्ज के चंगुल में फंसा लिया है। चीन ने इस प्रोजेक्ट की आड़ में करीब 385 बिलियन डालर तक का कर्ज कई गरीब देशों को दिया है। उन्होंने कहा कि चीन इसके जरिए कई गरीब मुल्कों को आर्थिक गुलामी की ओर ले जा रहा है। चीन की यह रणनीति उन मुल्कों की एकता और अखंडता के लिए भी खतरनाक है।
2- प्रो पंत का कहना है कि इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि दक्षिण पश्चिम चीन को सीधे दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ने वाली चीनी रेल परियोजना में एक गरीब देश लाओस भी शामिल है। उन्होंने कहा कि लाओस इतना गरीब मुल्क है कि इसकी लागत का एक हिस्से का भी खर्च वह वहन नहीं कर सकता। बावजूद इसके 59 बिलियन डालर की इस योजना में उसे शामिल किया गया है। वर्ष 2020 में लाओस दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया था। इस स्थिति से निपटने के लिए लाओस ने चीन को अपनी एक बड़ी संपत्ति बेच दी। यही हाल श्रीलंका और कई अन्य दक्षिण एशियाई मुल्कों का है।
3- भारत को एक और भी चिंता सता रही है। चीन ने अपनी इस परियोजना के तहत भारत के पड़ोसी मुल्कों श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल को भारी कर्ज दे रखा है। अगर यह योजना अधर में लटकी तो चीन अपने कुचक्र में भारत के इन पड़ोसी मुल्कों को फंसा सकता है। यदि ये मुल्क ऋण चुकाने में विफल रहे तो चीन इन देशों को अपना उपनिवेश बना सकता है। इनको ब्लैकमेल कर सकता है। उन्होंने कहा कि श्रीलंका इसका ताजा उदाहरण है। श्रीलंकाई बंदरगाह हंबनपोर्ट में जो कुछ हुआ यह इसी का परिणाम है। अगर ऐसा हुआ तो यह सीधे तौर पर भारत के सामरिक और रणनीतिक हितों को जबरदस्त चुनौती देगा। चीन की इस परियोजना के कर्ज के जाल में श्रीलंका और नेपाल जैसे छोटे देश भी फंसते जा रहे हैं। श्रीलंका को अपना हंबनटोटा बंदरगाह चीन को 99 साल के लीज पर देना पड़ा है।
इस परियोजना में एशिया, यूरोप और अफ्रीका के देश सम्मलित
चीन की इस परियोजना में एशिया, यूरोप और अफ्रीका के कई देश सम्मलित हैं। चीन ने 65 देशों को इस परियोजना से जोड़ा है। दरअसल, यह परियोजना छह आर्थिक गलियारों की मिली-जुली योजना है। इसके तहत रेलवे लाइन, सड़क और बंदरगाह और अन्य आधारभूत ढांचे शामिल हैं। इसके तहत तीन जमीनी रास्ते भी होंगे। इसके तहत पहला मार्ग मध्य एशिया और पूर्वी यूरोप के देशों की ओर जाएगा। इस मार्ग के जरिए चीन की पहुंच किर्गिस्तान, ईरान, तुर्की से लेकर ग्रीस तक हो जाएगी। दूसरा, मध्य मार्ग मध्य एशिया से होते हुए पश्चिम एशिया और भूमध्य सागर की ओर जाएगा। इस मार्ग से चीन, रूस तक जमीन के रास्ते व्यापार कर सकेगा। इस योजना के तहत तीसरा मार्ग दक्षिण एशियाई देश बांग्लादेश की ओर जाएगा। इसके साथ पाकिस्तानी बंदरगाह ग्वादर को पश्चिम चीन से जोड़ने पर भी कार्य शुरू हो गया है। यह भारत के सामरिक हितों के विपरीत है।
भारत ने किया इस परियोजना का विरोध
भारत शुरू से बीआरआई परियोजना का विरोध करता रहा है। इतना ही नहीं भारत ने कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसकी निंदा की है। चीन इस परियोजना के जरिए पड़ोसी मुल्कों से समझौता कर भारत के खिलाफ दबाव बनाने की रणनीति अपना रहा है। इसके अलावा भारत ने अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सवाल भी उठाया है। दरअसल, इस परियोजना का एक हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे वाले भारतीय क्षेत्र से होकर गुजरता है। चीन इस परियोजना के जरिए भारत को सामरिक रूप से घेरने की कोशिश कर रहा है। यही कारण रहा है कि अंतराष्ट्रीय मंचों पर भी भारत ने बीआरआई परियोजना का विरोध किया है।