चंदौली। मैं नहीं जानना चाहता हूं उस सच्चाई को इससे मैं नहीं मिलता चाहता हूं, वह हमारी विरह हमारी लगन लगा रहे उस दिन तक जिस दिन तक की हम इस पृथ्वी से जाने वाला न हो, और ही अच्छा रहे मगर यह भी जानता हूं जीवन भर हमलोग उस पवित्र नाम का स्मरण करते रहे हैंए राम या इत्यादि शिव या और भी नामों को फिर भी कि वह सुग्गे की तरह रटे रटाये मैं भी जानता हूं। आप भी जानते हैं कुछ होता नहीं हैं जब वह काल पकड़ता है, जब वह बिलाई पकड़ती है सुग्गा को तो सब उस बखत वह राम.राम कहना छोड़कर टाय.टाय कहने लगता है। तो हम जो भी रट रटाये रट रहे हैं, तो वह रटना हमारा उतना महत्व नहीं है कि जितना महत्व हमको उस एक क्षण का है। उक्त बातें परम पूज्य अघोरेश्वर अवधूत भगवान राम जी ने वर्ष 1990 के शारदीय नवरात्र के द्वितीया तिथि को उपस्थित श्रद्धालुओं व भक्तगणों को अपने आर्शीवचन में कही। इसी तरह हमारे जीवन में जो वह पवित्र क्षण आता है, उस बखत जब हम चुक जाते हैं बन्धु सारा जीवन क्या सुलझात, सुलझाते बहुत वक्त लग जाता है। वह ऐसा उलझा हुआ डोरा है जो उसके लिए फिर जीवन भर सुलझाना पड़ता है। एक बार उलझ जाने पर न जाने हम कितनी बार उलझे है, और आज तक भी उलझते ही गये हैं। तो हमे अपने इस जीवन में अपने हीन भावनाओं को परित्याग करनी चाहिए। बन्धुओं अपने गुरू की, अपने ईष्ठ के शिवाय हमारी मस्तक न नवे और अपने मित्र के सिवाय किसी के हाथ में मैं हाथ न दूं, और यह ध्यान रहे की सैतान भी इंसान के सकल में रहा करते हैं। कही हम उनके हाथ में मैं अपना हाथ तो नहीं दे रहा हूं, जो एक बार घसीट कर मुझे गड्डा में डाल सकता है। और न घटीते तो अपने कुकृत्य के प्रभाव से मुझ पर भी ब्रजपात करा सकता है। जिस तरह उस हंस का कथा उस भागवत में आया है, एक हंस और एक काग ने अपनी मित्रता बढ़ाना चाहा, उस हंस से तो उसकी पत्नी ने कहा कि यदि जिसका कुल और शील नहीं जानते हो तो उसकी संग न करो, यह शायद दुख दे सकता है, हंस की पत्नी की बात हंस ने नहीं माना, उसने कहा यह हम स्वजाति का पक्षी है मैं भी पक्षी हूं, यह भी वृक्ष पर मै भी वृक्ष पर रहता हूं, यह भी स्वावलम्बी है मैं भी स्वावलम्बी हूं, इसके पास भी कोई संचय करने का स्थान नहीं है और मेरे पास भी कोई संचय करने का स्थान नहीं है, मै भी अपने पेट के लिए सुबह उड़ता हूं और सायं लौटता हूं घोसला में यह भी सुबह उड़ता है और शाम लौटता है घोसला में इसलिये हमलोगों में टकरार क्या किसी तरह की संशय की बात क्या होगा उसने कहा कि नहीं इसका स्वभाव अलग है, भले हम लोगों का व्यवहार एक हो स्वभाव इसका अलग है अरे नहीं तुम स्त्री जाति की हो और स्त्री जाति के मन में इस तरह-तरह की भावनाओं का जन्म देना प्राय: है, सभी प्रणियों में यह पाया जाता है उसके बातों को वह तिरस्कार कर के उसके साथ वह बैठने उठने लगा था दूसरे ही दिन एक वृक्ष पर बैठे हुए एक वृक्ष के नीचे सोये हुए पथिक के उपर उसने बीट कर दिया, काग ने और वीट करके उस मित्र से और आगे बढ़ गया। सर्वेश्वरी सेवा संघ जलीलपुर पड़ाव के संस्थापक पूज्य गुरुदेव बाबा अनिल राम जी का कहना है कि गुरु की पूजा अनवरत होनी चाहिए। सौजन्य- कीनाराम स्थल खण्ड-४