चंदौली। परम पूज्य अघोरेश्वर अवधूत भगवान राम जी ने वर्ष 1990 के शारदीय नवरात्र के द्वितीया तिथि को उपस्थित श्रद्धालुओं व भक्तगणों को अपने आर्शीवचन में कहा कि मेरे पांच-पांच बच्चे है, चार लड़कियां है एक लड़का है, उनके परवरिश करने के लिये मेरे पास कुछ नहीं रह गया है, न मुझे नौकरी मिला न चाकरी मिला न मुझे कही कार्य मिला। यह सब कुछ कृत्य मेरे को उस बखत की आप का अवहेलना या हमको खदेड़ देना और उन लोगों का मोह जाल ने आज मुझे इस परिणाम तक पहुंचाया। मैने कहा ये बन्धु इसमें मै कुछ भी नहीं कर सकता था, उस बखत क्योकि मेरा अधिकार तुम पर नहीं था। आज तुम हमको कह रहे हो मै मान लेता हूं कि मेरा भी उस बखत तुम्हारे साथ बहुत प्यार करके विदा कर दिया था, मैं फिर रोक भी तुमको नहीं सकता था, यदि रोक भी लेता तुम उस दिन बालिग नहीं हुए थे, तुम्हारा उमर उस बखत 16 साल का हुआ था, मैं तुम्हे दीक्षा भी नहीं दे सकता था, हर तरह के मेरे सामने कष्ट आया था, कोई भी उंगली उठा सकता था, इसलिये मेरे तो अपराध तुम क्षमा करोगे मै जानता हूं पर मेरा जो कुछ अपराध किया हूं यह आश्रम खुला है जब चाहो आओ रहो तुम्हारे लिये यहां के अन्न और जल और वस्त्र जो कुछ भी मेरे पास रहेगा, जो कोई रहेगा मैं उनसे कह सकता हूं तुम भोग कर सकते हो तो वह कहता है कि जो जन्म ले लिये है यह सबो का क्या करें तो बन्धु इसके बारे में तुम्हारे और लोग है, उन लोगों ने जो तुम्हे ले जा रहे थे झुण्ड आ के गाड़ीी में बैठा करके तो कहे कि वह लोग तो अब पूछने के लिए तैयार नहीं है, मै दो-दो, तीन-तीन दिन ऐसे ही रह जाता हूं तो बन्धु यह नहीं है कि आप से ही अपराध होता है मेरे से भी बहुत अपराध होता है, अब कल ही परसो की बात है, हमको इस अपराध के लिए वह आदमी ओरहना दे रहा था, मेरा भी था इस तरह से ेअब उसमें इतना हीन भावना हो गया कि अब दूर खड़ा रहा। जब मैं टहलने निकलता था तो देखता था दूर खड़ा है मैने पूछा बाबू बैठता क्यो नहीं, नजदीक क्यो नहीं आता, यहां तो कहता है मैं कैसे आउ अब तो मैं बहुत व्यथित हो गया हूं, अभी से अभी तुम बहुत कुछ कर सकते हो तुम मनुष्य हो तुम में अपार शक्ति है, और इन सब शक्तियों के उपर जो शंख पड़ा हुआ है इसमें तो अग्नि दुधुक रही है अब तो तभी होगा इस सबको मौत के घाट उतार दे या मौत अपने आप इन्हें ले जाये दूसरा कोई रास्ता नहीं है, बाबा मैने कहा ऐसा अपराध मत करों अब पुर्नजन्म की प्रतीक्षा करो पुर्नजन्म मिलेगा तब फिर तुम्हें अब सदाचारी की तरह इन लोगों के भरण पोषण में तुम लग जाओ और वही अपने लिये सब कुछ तुम्हारे लिये तीर्थ व्रत या गुरू की सेवा या महापुरूष की सेवा या सज्जनों की सेवा या राष्ट्र की सेवा या अपने माता-पिता की सेवा के समान होगा और इनके साथ इस तरह की कृत्य करके कुछ लाभ नहीं उठा सकते तो बन्धु हम लोगों में भी इस तरह की जो हीन भावनाये जनम लेती है और इसके कारण हम उस हीन भावनाओं की और जगह प्रचार-प्रसार या उसमें सहायक होते है, इससे बढ़कर जघन्य पाप और क्या हो सकता है, अपने प्रति दूसरे के प्रति और समस्त अपने संस्कृति के प्रति साधु जनों को चाहिए की अपने जीवन में उत्साहित करें जो कोई भी आये हुए पथिक है। सौजन्य से बाबा कीनाराम स्थल खण्ड-७