चहनियां। मारुफपुर में चल रहे सात दिवसीय संगीत मय श्री राम कथा के छठें दिन बुधवार को कथा सुनाते हुए पूज्य शशिकांत जी महाराज ने कहा कि राम जी ने धनुष को उठा के तोड़ दिया और जानकी जी ने श्री राम जी को जयमाल पहनाया। धनुष अभिमान का प्रतीक है। सीता भक्ति है । जीवन में भगवान की भक्ति पाना हो तो अभिमान रूपी धनुष का खंडन करना ही होगा। जब तक ये अभिमान रूपी धनुष नही टूटेगा तब तक भक्ति का आगमन जीवन में नही हो सकता। परन्तु विचार करने योग्य बात ये है कि श्रीराम जी ने धनुष को मध्य से तोड़ा। ऊपर से नही तोड़ा नीचे से नही तोड़ा बिलकुल मध्य से तोड़ा। क्योंकि धनुष अभिमान का प्रतीक है और अभिमान कभी बाल्यावस्था में नही होता अभिमान कभी बृद्धावस्था में नही होता। अभिमान तो मध्य के युवावस्था में ही होता है। सफलता प्राप्त करनी हो और शांति रूपी सिया को पाना हो तो अभिमान रूपी धनुष का टूटना आवश्यक है। आज अहंकार के वशीभूत होकर अनेक परिवार टूट के बिखर रहे। अपने अहंकार के कारण कोई झुकना नही चाहता और परिवार में अशांति फैल रही है। जब हमारे जीवन से अहंकार दूर होगा तब ही जीवन में शांति रूपी सिया का आगमन होगा । बाल ब्यास ने कहा की की जब धनुष टुटा तो लोगो ने धनुष से कहा की धनुष तुझे राम जी ने तोड़ दिया और अपने चरणों में गिरा के तुम्हारा अपमान कर दिया। धनुष ने कहा मुझे तो टूटना ही था क्योंकि जब तक मैं जुड़ा था लोगों को तोड़ता था और आज मेरा टूटना भी सार्थक हो गया क्यों की मेरे टूटने से मैंने राजा राम और महारानी सिया को जोड़ दिया और राम जी ने मुझे अपने चरणों में गिरा कर मेरा सम्मान किया क्यों की जब राम जी मुझे उठा रहे थे तो मुझे संकोच हो रहा था की मैं राम जी का दास हु और दास को सर पर नही दास को तो भगवान के चरणों में ही होना चाहिए । राम जी ने मुझे अपने चरणों में डाल दिया इसका मतलब श्री राम जी ने मुझे स्वीकार लिया।