मुगलसराय। जब किसी को पड़ाव या वाराणसी जाना पड़ता है तो उनके जेहन में सबसे पहले चंधासी की धूल आती है। लेकिन लोगों के लिए और कोई विकल्प नहीं होने के कारण उन्हे उसी उड़ते हुए धूल में से गुजरना पड़ता है। उस रास्ते से गुजरने के बाद लोगों का क्या हाल होता है वह तो वही बेहतर बता सकते हैं। उक्त मंडी से धूल से निजात दिलाने के लिए समाजिक संगठनों ने कई बार विरोध प्रदर्शन किया। जिसके बाद अधिकारी कुछ पल के लिए सक्रिय हुए फिर स्थिति जस की तस बन गयी है। न अब कोई विरोध जताता है और ना ही अधिकारी उस पर अमल करते हैं। उक्त रास्ते से आयेदिन हजारों लोग गुजरते हैं। उक्त मार्ग से गुजरते वक्त चार पहिया वाले तो अपना शीश चढ़ा लेते हैं लेकिन जो सवारी वाहन हैं या बाइक चालक हैं उनको उसी गर्दे में से होकर गुजरना पड़ता है। गुजरते वक्त जहां पूरा मुंह काला हो जाता है और कपड़े धूल धुसरित हो जाता है। अगर कोई किसी पार्टी या आफिस में जा रहा हो तो उसकी तो पूरी हुलिया ही बिगड़ जाती है। ऐसे न जाने कितने लोग इस रास्ते से गुजरते वक्त शासन- प्रशासन को कोसते होंगे यहा कहां नहीं जा सकता। वैसे तो शासन-प्रशासन पर्यावरणा संतुलन पर कार्यक्रम करती रहती है और जहां पर सबसे अधिक पर्यावरण प्रदूषण दिखाई देता है वहां उत्पन्न समस्याओं के निस्तारण का भी कार्य करती है। जनपद में अगर सबसे प्रदूषित क्षेत्र है तो वह चंधासी कोलमंडी है। जहां से गुजरने के लिए लोगों को कई बार सोचना पड़ता है। ऐसी समस्या वर्षो से मौजूद होने के बावजूद भी शासन प्रशासन द्वारा उसके निस्तारण का कोई पहले नहीं किया जाता है जो दुर्भाग्यपूर्ण है। चंधासी में उड़ते धूल से लोगों के स्वास्थ्य पर प्रभाव ही नहीं पड़ता है बल्कि धूल के धूंध में कई बार दुर्घटनाएं भी हो चुकी है जिसमें कुछ चोटिल हुए हैं तो कई ने अपनी जान गवाई है। लोग भी विरोध प्रदर्शन व शिकायत करके अब थक चुके हैं। ऐसे में अब चंधासी मंडी में कार्य करने वाली संस्थाएं आगे आ जाये तो शायद वर्षो की समस्या का निवारण हो जाये और आस-पास रहने वाले लोगों के साथ रास्ते से गुजरने वालों को बड़ी राहत मिल जायेगी। लोगों का कहना है कि कोलमंडी में कार्य करने वाली संस्थाएं किन कारणों से इस जनहित के कार्य को नहीं कर पा रही हैंं यह सोच से परे है।
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