नई दिल्ली, । स्वशासित ताइवान के राजदूत बौशुआन गेर ने कहा कि भारत और ताइवान दोनों एक अधिनायकवादी खतरे का सामना कर रहे हैं। गेर ने चीन के आक्रामक व्यवहार को लेकर कहा कि क्षेत्र में निरंकुशता का विस्तार रोकने के लिए इस समय भारत और ताइवान को न केवल निकट रणनीतिक सहयोग बढ़ाने की जरूरत है बल्कि आवश्यक है। समाचार एजेंसी से रविवार को एक साक्षात्कार के दौरान ताइवानी राजदूत गेर ने पूर्व और दक्षिण चीन सागर, हांगकांग और गलवन घाटी में तनाव को रेखांकित करते हुए कहा कि इस खतरे से निपटने के लिए भारत और ताइवान को हाथ मिलाने की जरूरत है।
ताइवानी राजदूत ने भारत के रूख की प्रशंसा की
बीते अगस्त में अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद चीन से बढ़े तनाव के दौरान ताइवान स्ट्रेट में न्याय, शांति और स्थायित्व के लिए खड़े रहने के लिए ताइवानी राजदूत ने भारत की प्रशंसा की। उल्लेखनीय है कि अगस्त में अमेरिकी स्पीकर की ताइवान यात्रा के बाद चीन ताइवान स्ट्रेट में चीन ने लगातार सैन्य अभ्यास कर दबाव बनाने की कोशिश की। चीन जहां ताइवान को अपना प्रांत मानता है, वहीं ताइवान का कहना है कि वह कभी चीन का अंग नहीं रहा।
व्यापार व तकनीक के क्षेत्र में सहयोग दोनों के हित में
ताइवानी राजदूत बौशुआन गेर ने कहा कि मेरा विश्वास है कि भारत और ताइवान के बीच रणनीतिक साझेदारी को मजबूत कर व्यापार और तकनीक के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने का सबसे अच्छा अवसर है। हम लोग साइबर, अंतरिक्ष, समुद्र, हरित ऊर्जा, खाद्य सुरक्षा, पर्यटन और पाक कला के क्षेत्र में और सहयोग बढ़ा सकते हैं।
चीन के रूख को लेकर अमेरिका ने जताई चिंता
उधर, अमेरिका ने चीन की आक्रामकता और उसकी विस्तारवादी नीतियों के बारे में चिंता जतार्इ है। इस बारे में अमेरिका के रक्षा मंत्री लायड आस्टिन ने कहा कि ताइवान स्ट्रेट समेत दूसरे इलाकों में चीनी सेना की गतिविधियां चिंता का विषय है। उन्होंने ये भी कहा कि अमेरिका इंडो पैसिफिक क्षेत्र में सभी देशों के लोगों की निर्बाध आवाजाही को सुनिश्चित करना चाहता है।