जम्मू, : रविवार : पाक रमजान का पहला दिन समाप्त हो चुका था और लोग इफ्तार के बाद नमाज के लिए मस्जिदों का रुख कर रहे थे। इसी दौरान आतंकियों ने पुलवामा में हिमाचल के नूरपुर से पोल्ट्री लेकर आए ट्रक चालक व सहचालक को गोली मार दी।
सोमवार : पाक रमजान का दूसरा दिन। इस बार निशाना बने बिहार से रोजगार की तलाश में आए श्रमिक पिता-पुत्र। कुछ देर बाद आतंकियों ने श्रीनगर में हमला किया, जिसमें सीआरपीएफ कर्मी बलिदान और एक अन्य जख्मी हो गया। रात होते-होते आतंकियों ने शोपियां में कश्मीरी ङ्क्षहदू दवा विक्रेता बालकृष्ण को गोली मार दी।
पाक रमजान के पहले दो दिन में चार आतंकी हमलों ने फिर साबित कर दिया कि इस्लाम में सबसे पवित्र माने जाने वाला यह माह आतंकियों के लिए कोई मायने नहीं रखता। वह निर्दोषों का खून बहाते रहते हैं। यह पहला मौका नहीं है, जब रमजान में खून बहाया गया हो। कश्मीर में 32 साल से जारी आतंकी हिंसा का इतिहास बताता है कि रमजान हमेशा ही खूरेंज रहा है। इस सच्चाई को जानते-समझते भी सुरक्षाबलों पर रमजान में अपने अभियान थामने का दबाव बनाया जाता है। जब-जब ऐसा प्रयास हुआ आतंकियों के हौसले और बढ़ गए।
सामाजिक कार्यकर्ता सलीम रेशी ने कहा कि रमजान में आतंकी हमले में तेजी के दो कारण हैं। पहला जिहाद और दूसरा सुरक्षा तंत्र। यह आतंकी आज तक इस माह की पवित्रता को नहीं समझ पाए। इसके अलावा रमजान के दौरान आम लोगों की सुविधा के लिए सुरक्षा प्रबंधों में दी गई राहत का भी आतंकी फायदा उठाते हैं।
रमजान में जंगबंदी कारगर नहीं रही : रक्षा मामलों के विशेषज्ञ एवं पूर्व पुलिस महानिरीक्षक अशकूर वानी ने कहा कि 19 नवंबर 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने रमजान में जंगबंदी का एलान किया था। हमने अपने अभियान रोके, लेकिन आतंंकी हमले नहीं रुके। यह जंगबंदी मार्च 2001 तक चली और सिर्फ हमारी तरफ से। इसके बाद भी तत्कालीन राज्य सरकारों के आग्रह पर तीन से चार बार रमजान में जंगबंदी हुई है। आतंकियों ने कभी इस पर अमल नहीं किया।
रमजान में ही सबसे ज्यादा लोगों की जान गई : पूर्व पुलिस महानिरीक्षक अशकूर वानी ने कहा कि अगर आप आंकड़ों का अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि वर्ष 2000 से 2018 तक रमजान में जंगबंदी के दौरान करीब 210 सुरक्षाकर्मी बलिदान हुए और करीब 365 आम लोग मारे गए। 2010 और 2016 के दौरान वादी में रमजान के दौरान सबसे ज्यादा सिलसिलेवार हिंसक प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों में 32 लोगों की मौत हुई। इनके अलावा आतंकी ङ्क्षहसा में 16 सुरक्षाकर्मी बलिदान हुए और आठ आम लोग मारे गए। इस दौरान 30 आतंकी भी मारे गए थे। अंतिम बार रमजान जंगबंदी का एलान 2018 में हुआ था और आतंकियों ने इसका जवाब 17 मई 2018 को बांडीपोर में एक युवक की हत्या से दिया था।
रमजान में कुछ बड़े हमले :
- कश्मीर विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति प्रो. मुशीर उल हक को रमजान में ही छह अप्रैल 1990 को अगवा कर लिया था। प्रो. मुशीर करीब चार दिन आतंकियों के कब्जे में रहे और 10 अप्रैल को सहरी के समय उन्हें व उनके सचिव को मौत के घाट उतार दिया गया।
- लैलतुल कद्र की रात को इस्लाम में पवित्र माना जाता है। यह रमजान महीना समाप्त होने के लगभग 10 दिन पहले होती है, लेकिन आतंकियों ने 25 जनवरी 1998 को इसी रात गांदरबल के वंधामा में 25 कश्मीरी हिंदुओं को गोलियों से भून डाला था।
- शब-ए-कद्र की रात 22 जून 2017 को श्रीनगर की जामिया मस्जिद में पुलिस उपाधीक्षक मोहम्मद अयूब पंडित को पीट-पीटकर मार डाला था।
- बडग़ाम में 1991 में रमजान के दौरान दो सीआरपीएफ कर्मी इफ्तार के लिए सामान खरीदने गए, आतंकियों ने उन पर पीछे से हमला किया, जिसमें दोनों बलिदान हो गए थे।
- मई 2020 को श्रीनगर के सौरा इलाके में इफ्तारी के लिए सामान खरीद रहे दो बीएसएफ कर्मी आतंकी हमले में बलिदान हो गए थे।
- कुपवाड़ा के सोगाम में करीब 25 वर्ष पूर्व रमजान के दौरान आतंकियों ने जामिया मस्जिद में दाखिल होकर वहां तरावी अदा कर रहे नजीर अहमद का मस्जिद के दरवाजे पर सबके सामने सिर धड़ से अलग कर दिया था।
- दक्षिण कश्मीर में भाजपा नेता गुल मोहम्मद मीर की आतंकियों ने पांच मई 2019 को रमजान के पहले दिन हत्या कर दी थी।