रांची, झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डा रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि आखिर झारखंड सरकार किस आधार पर कह रही है कि राज्य में भूख से किसी की मौत नहीं हुई है। क्या झारखंड सरकार ने भूख से मौत होने को परिभाषित किया है। अदालत ने इसकी जानकारी दो सप्ताह में राज्य सरकार को पेश करने का निर्देश दिया है। मामले में अगली सुनवाई 25 नवंबर को होगी।
सरकार का कहना- भूख से नहीं हुई है किसी की मौत
पूर्व में अदालत ने मौखिक रुप से इसे स्पष्ट करने को कहा था, लेकिन सरकार की ओर से लिखित आदेश नहीं होने पर जवाब दाखिल नहीं किया गया। बोकारो में एक ही परिवार के तीन लोगों की भूख से मौत की खबर प्रकाशित होने पर अदालत ने संज्ञान लिया है और राज्य सरकार से जवाब मांगा था। राज्य सरकार की ओर से दाखिल जवाब में कहा गया था कि पूरे राज्य में भूख से किसी की मौत नहीं हुई है। ऐसी स्थिति न हो इसके लिए राज्य सरकार कई तरह की योजनाएं चला रही हैं। इसी मामले में अधिवक्ता सोनल तिवारी ने हाई कोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दाखिल की थी।
पिछले पांच सालों में भूख से झारखंड में कुल 34 लोगों की मौत
सोनल तिवारी ने बताया कि पिछले पांच सालों में राज्य में भूख से कुल 34 मौत हो चुकी है। लेकिन राज्य सरकार इसे भूख की बजाय बीमारी से मौत होने की बात कहती है। पूर्व में सुनवाई के दौरान अदालत ने झालसा (झारखंड विधिक सेवा प्राधिकार) से भी इसकी रिपोर्ट मांगी थी। राज्य सरकार की ओर से दाखिल जवाब के बाद अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि सरकार यह स्पष्ट करें कि आखिर भूख से मौत का पैमाना (परिभाषा) क्या है। वहीं, इसको रोकने के लिए राज्य सरकार क्या तंत्र विकसित किया है। ताकि राज्य के लोगों को भूख से मौत नहीं हो।
बोकारो में एक ही परिवार के तीन लोगों की भूख से हो गई थी मौत
बता दें कि बोकारो जिले के कसमार प्रखंड के भूखल घासी की कथित तौर पर भूख से मौत हो गई थी। इसके छह महीने के बाद उनकी बेटी और बेटे की मौत हो गई। एक ही परिवार के तीन लोगों की भूख से मौत की खबर अखबारों में प्रकाशित होने के बाद हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था।