पटना

तो 450 बच्चे बाल-विवाह के दलदल में फंस चुके होते


(आज शिक्षा प्रतिनिधि)

पटना। डॉ. शंकरनाथ झा नहीं होते, तो 450 बच्चे बाल-विवाह के दलदल में फंस चुके होते। इन बच्चों को बाल-विवाह से डॉ. झा ने बचाया। पेशे से चिकित्सक डॉ. शंकरनाथ झा जमुई के हैं, जिनका चयन इस बार ढाई लाख रुपये के मौलाना अबुल कलाम आजाद शिक्षा पुरस्कार के लिए हुआ है। यह राज्य में शिक्षा के क्षेत्र में दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है।

यह पुरस्कार उन्हें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथों 11 नवंबर को शिक्षा दिवस समारोह में मिलेगा। देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के जन्मदिन को शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है। राज्य सरकार में 1981 से 2019 तक चिकित्सा पदाधिकारी के पद पर कार्यरत रहे डॉ. झा द्वारा दलित बस्तियों के मुसहर जाति के बच्चों को शिक्षित करने की दिशा में एक टोले से शुरू किया गया अभियान अब 55 टोलों तक पहुंच गया है। इससे तकरीबन 5,500 बच्चे जुड़े हैं। बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा के लिए गांव के ही शिक्षक की नियुक्ति की गयी। डॉ. आनंदमयी सिन्हा के सहयोग से बच्चों के लिए किताबों की व्यवस्था की गयी। जमुई जिले में सामाजिक सहयोग से दो स्कूलों की स्थापना की गयी। देवघर में स्कूल खोलने के लिए उन्होंने अपने भाई को प्रोतिसाहित किया। उन्हें आर्थिक मदद दी। अभिवंचित वर्ग के बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में योगदान की डॉ. झा की कहानी यहीं खत्म नहीं होती। नीम नवादा केंद्र की शिक्षक पुष्पाजी के नर्सिंगहोम में दाखिला एवं पूरी शिक्षा का खर्च उठाना।

केंद्र से जुड़े सारे बच्चों को नि:शुल्क नर्सिंग कोर्स की सुविधा प्रदान की। डॉ. झा के प्रयास से पांच बच्चे राष्ट्रीय खेलकूद में शामिल हुए। 25 बच्चों को सरकारी नौकरी मिली। 950 बाल श्रमिकों का उन्होंने स्कूल में नामांकन कराया। 850 कुपोषित बच्चे घरेलू देखभाल से स्वस्थ हुए। डॉ. झा के प्रयास से महादलित समुदाय के 15 बच्चे बीएड, 75 बच्चे इंटरमीडिएट एवं 350 बच्चे मैट्रिक की परीक्षा पास हुए। एक बच्चा स्पोट्र्स कोटे से रेलवे में नौकरी कर रहा है। जमुई के गांधी मैदान में सामाजिक सहयोग से बैडमिंटन एवं टेबुल टेनिस के लिए एक हॉल का निर्माण कराया है। ‘दस्तक’ नाम की संस्था के माध्यम से बच्चों के बीच 15 वर्षों तक विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन भी डॉ. झा के नाम है।