नई दिल्ली, मानसून 2022 में भले ही दिल्ली में 19 प्रतिशत कम बारिश हुई हो, लेकिन पूरे देश में ऐसा नहीं है। समूचे देश में इस बार ला नीना के असर से सामान्य से अधिक बारिश हुई। चार महीने तक चलने वाला दक्षिण- पश्चिम मानसून आधिकारिक तौर पर 30 सितंबर को समाप्त हो गया। एक शांत शुरुआत के बाद देश में ठीकठाक बरसात के साथ मानसून का मौसम एक अच्छे मोड़ पर समाप्त हुआ। बदलती जलवायु परिस्थितियों के कारण मानसून की बढ़ती परिवर्तनशीलता वर्षा पर हावी रही।
अधिक बारिश के लिए ला नीना जिम्मेदार
जैसा कि अनुमान लगाया गया था, दक्षिण-पश्चिम मानसून 2022 सामान्य से अधिक वर्षा के साथ समाप्त हुआ। देश में एक जून से 30 सितंबर तक 870 मिमी के सामान्य के मुकाबले 925 मिमी बरसात दर्ज की गई। इसके साथ ही भारत में लगातार चौथे वर्ष सामान्य से अधिक वर्षा दर्ज की गई। इस अधिक बरसात के लगातार तीसरे वर्ष होने के लिए लिए प्रशांत महासागर में सक्रिय ला नीना को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
कम बारिश में पूर्वी यूपी भी शुमार
भारत मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों के अनुसार, देश के कुल 36 मौसम विज्ञान उपखंडों में से 12 में अधिक मौसमी बरसात हुई, 18 उपखंडों में सामान्य मौसमी वर्षा हुई और छह उपखंडों में कम मौसमी बरसात हुई। इन छह उपखंडों में नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, गंगीय पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिम उत्तर प्रदेश शामिल हैं।
ट्रिपल डिप ला नीना
उत्तरी गोलार्ध में लगातार तीन ला नीना की घटना एक अपेक्षाकृत दुर्लभ घटना है और इसे ‘ट्रिपल डिप’ ला नीना के रूप में जाना जाता है। आंकड़ों के अनुसार, 1950 के बाद से लगातार तीन ला नीना घटनाएं केवल दो बार हुई हैं।
ला नीना की वजह से होती है अधिक बारिश
ला नीना की घटना हमेशा सामान्य से अधिक मानसूनी बरसात से जुड़ी होती है, लेकिन इसके अपवाद भी हैं। अल नीनो और कमजोर मानसून बारिश के बीच काफी मजबूत संबंध के विपरीत, ला नीना और बरसात की मात्रा में ठोस कारण-प्रभाव संबंध नहीं मिलते हैं। मौसम विज्ञानियों के अनुसार, लंबे समय तक ला नीना की स्थिति में, अगले वर्ष की तुलना में उन वर्षों में मानसून की बारिश बेहतर पाई जाती है जब ला नीना शुरू होता है।
इसे चिह्नित करने के लिए, देश में दक्षिण-पश्चिम मानसून 2020 के दौरान लंबी अवधि के औसत (एलपीए) के 109 प्रतिशत की सामान्य वर्षा दर्ज की गई। इसके बाद 2021 में सामान्य मानसून का मौसम रहा, जहां भारत ने एलपीए की 99 प्रतिशत बरसात दर्ज की।
मानसून परिवर्तनशीलता के चलते भारत में वर्षा का असमान वितरण जारी रहा। कुछ जिलों में सामान्य से अधिक सामान्य वर्षा देखी गई, जबकि कुछ में कमी रही।
विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
स्काईमेट वेदर के मौसम विज्ञानी महेश पलावत का कहना है कि डेटा स्पष्ट रूप से मानसून के रुझानों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को दर्शाता है। मानसून प्रणाली अपने सामान्य मार्ग का अनुसरण नहीं कर रही है जिसका निश्चित रूप से इस क्षेत्र पर प्रभाव पड़ता है। जैसे-जैसे उत्सर्जन बढ़ता जा रहा है, हमें डर है कि इस क्षेत्र के लिए अच्छी खबर नहीं मिलने वाली है।
इसी तरह, उत्तर पश्चिमी भारत भी पूरे उत्तर पश्चिमी भारत, विशेषकर दिल्ली में सामान्य से कम बारिश से जूझ रहा है। मानसून की देरी से वापसी के कारण इस क्षेत्र में सामान्य बारिश केवल एक प्रतिशत दर्ज करने में सफल रही, जिसने उत्तर पश्चिमी भारत पर एक ट्रफ रेखा का गठन किया।
मानसून के रुझान में बदलाव
मौसम विज्ञानी देश भर में मानसून मौसम प्रणालियों के ट्रैक में बदलाव पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं। यह प्रवृत्ति पिछले 4-5 वर्षों में अधिक से अधिक दिखाई देने लगी है, जिसमें 2022 सीज़न नवीनतम है। जुलाई, अगस्त और सितंबर में गठित अधिकांश मौसम प्रणालियों ने भारत-गंगा के मैदानों को पार करने के पारंपरिक मार्ग को अपनाने के बजाय मध्य भारत में यात्रा की।