संसद और विधानमण्डलोंमें जिस प्रकार संसदीय मर्यादाएं तार-तार हो रही हैं, उसका एक अत्यन्त दुखद परिणाम सामने आया है, जो बेहद चिन्ताका विषय है। कर्नाटक विधानपरिषदके उपसभापति और जनता दल (एस) के नेता एस.एल. धर्मगौड़ाका शव राज्यके चिकमंगलूरमें मंगलवारको भोरमें रेलवे ट्रैकपर मिला। शवके पास एक सुसाइड नोट भी मिला है। पुलिस इसीके आधारपर इसे आत्महत्याका मामला मान रही है। धर्मगौड़ाका नाम कुछ दिनों पूर्व विधान परिषदमें उनके साथ किये गये घोर दुव्र्यवहार और जबरन कुर्सीसे हटा दिये जानेके कारण चर्चामें आया था। वह इस घटनासे अत्यन्त ही दुखी और मर्माहत थे। भावुक और संवेदनशील स्वभावके धर्मगौड़ा इस घटनासे क्षुब्ध और काफी परेशान थे जिसका दुष्परिणाम आत्महत्याके रूपमें सामने आया। विधान परिषदमें उनके साथ हुए दुव्र्यवहारका एक हैरान करनेवाला वीडियो भी सामने आया है। जेडीएसके प्रमुख और पूर्व प्रधान मंत्री एच.डी. देवगौड़ा उनकी मृत्युसे शोकसंतप्त हैं और कहा है कि धर्मगौड़ा बहुत ही साधारण और शान्तिप्रिय व्यक्ति थे। उनकी मृत्युसे राज्यको भारी क्षति पहुंची है। मुख्य मन्त्री बी.एस. येदियुरप्पाने भी इस घटनाको दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। यह दुखद और शर्मनाक घटना राजनीतिक दलोंके लिए सन्देश भी है, जो सदनमें संसदीय परम्पराओं और मर्यादाओंका चीरहरण करनेसे बाज नहीं आते हैं। सदनोंमें अपशब्दोंका प्रयोग और हिंसक घटनाएं लोकतन्त्रके लिए अत्यन्त ही अशुभ हैं। इसके लिए राजनीतिक दल और उनके नेता पूरी तरहसे जिम्मेदार हैं, जो ऐसी हरकतोंपर अंकुश लगानेमें पूरी तरह विफल रहे हैं। सदनकी मर्यादा होती है और वहां अनुशासनका काफी महत्व होता है किंतु इनका उल्लंघन करना राजनेता अपनी शान समझने लगे हैं। यह अत्यन्त ही दुखद प्रवृत्ति है। धर्मगौड़ाने जिन परिस्थितियोंमें आत्महत्या करनेका निर्णय किया उसपर गम्भीरतासे सोचनेकी जरूरत है। आत्महत्याकी इस शर्मनाक घटनाकी न्यायिक जांच होनी चाहिए जिससे कि और भी बातें सामने आ सकें। सदनमें धर्मगौड़ाके साथ दुव्र्यवहारका जो वीडियो सामने आया है, उसमें उन सदस्योंकी पहचान होनी चाहिए जिससे कि उनके खिलाफ कानूनी काररवाई की जा सके। ऐसे राजनेताओंके खिलाफ हत्याका मुकदमा चलना चाहिए और उन्हें कड़ी सजा भी मिलनी चाहिए। यदि ऐसे लोगोंको सजा नहीं मिलती है तो सदनमें इसी तरह संसदीय परम्पराओंका चीरहरण होता रहेगा जो स्वस्थ लोकतन्त्रके लिए अशुभ और घातक है।
अमेरिकाका उचित कदम
अमेरिकी राष्टï्रपति डोनाल्ड ट्रम्पका चीनके हस्तक्षेपके बिना दलाई लामाके उत्तराधिकारी चुननेका अधिकार तिब्बतियोंको देनेकी स्वीकृति महत्वपूर्ण कदम है। राष्टï्रपति ट्रम्पने एक ऐसे विधेयकपर हस्ताक्षर किये जिसके तहत तिब्बतमें न केवल अमेरिकी वाणिज्य दूतावास स्थापित करेगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि अपने सर्वोच्च धर्मगुरुका चयन केवल तिब्बती बौद्ध समुदाय ही करे एवं इसमें चीनका कोई दखल नहीं हो। इसमें चीनपर दबाव बनानेके लिए एक अन्तरराष्टï्रीय गठबन्धन बनानेकी बात भी कही गयी है। नये कानून तिब्बती नीति और सहायता अधिनियम (टीपीएसए) में तिब्बतसे सम्बन्धित विभिन्न कार्यक्रमों और प्रावधानोंको फिरसे अधिकृत किया गया है। साथ ही भारतमें रहनेवाले तिब्बतियोंके लिए ६० लाख डालरका प्रावधान भी किया गया है। चीनके विरोधके बावजूद अमेरिकी सीनेटने बीते सप्ताह इस विधेयकको पारित किया था। नये दलाई लामाकी नियुक्तिमें चीनकी दखलन्दाजी रोकनेकी अमेरिकाकी यह कोई पहली कोशिश नहीं है। इसके पूर्व भी दलाई लामाके उत्तराधिकारी चुननेमें संलिप्त चीन सरकार और उसकी कम्युनिस्ट पार्टीके अधिकारियोंके विरुद्ध काररवाई करना अमेरिकाकी अबतककी नीति रही है। तिब्बतपर समर्थन सम्बन्धी विधेयकपर ट्रम्पकी स्वीकृतिसे चीन तिलमिला गया है। ट्रम्पने ताइवानसे रिश्तोंको लेकर भी समर्थन जताया है जिसे चीन अपने लिए खतरेकी घण्टीके तौरपर ले रहा है, क्योंकि इन क्षेत्रोंपर चीन अपना पूर्ण दावा करता रहा है। चीनका सीमावर्ती देशोंके आन्तरिक मामलोंमें बढ़ता हस्तक्षेप वैश्विक स्तरपर चिन्ताका विषय है। नेपालमें गम्भीर सियासी संकटके बीच चीनने रणनीति बदलते हुए प्रधान मंत्री केपी शर्मा ओलीसे किनारा कर लिया है। साथ ही नये चुनाव रोकने और ओलीकी जगह पुष्प कमल दहल प्रचण्डको प्रधान मंत्री बनाये जानेकी कोशिशमें जुट गया है। जबकि भारत वहां नये सिरेसे चुनाव कराये जानेके पक्षमें है, ताकि भारतविरोधी ताकतोंसे छुटकारा मिल सके। भारत नेपालके तेजीसे बदलते घटनाक्रमको लेकर पूरी तरह सतर्क है। चीनके विरुद्ध अमेरिकाका सख्त कदम पूरी दुनियाके लिए सन्देश है। इसका वैश्विक स्तरपर समर्थन किया जाना चाहिए।