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नई फसल अपनाने वालों को मिलेगा विशेष लाभ, आय बढ़ाने को मिलेगी प्राथमिकता


नई दिल्ली। कृषि सुधारों पर महत्वाकांक्षी कदम खींचने के बाद कृषि क्षेत्र में फिलहाल तो किसी भी बड़े सुधार की गुंजाइश नहीं रह गई है। लेकिन यह सोच मजबूत है कि किसानों की आय दोगुना करनी है। ऐसे में उन्हें प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ऐसी खेती की ओर कदम बढ़ाना ही होगा जिसकी बाजार में मांग है। इसके लिए खेती में जहां जैसी जरूरत होगी, वहां सरकार वैसी एमएसपी प्रणाली का उपयोग करेगी। संसद में सोमवार को पेश आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में संकेत है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के सहारे कृषि विविधीकरण का रास्ता अपनाया जाएगा।

किसानों की दोगुना आमदनी और खाद्य तेल और दालों की बढ़ती आयात निर्भरता कृषि क्षेत्र में गंभीर चिंता का विषय है। संसद में पेश वर्ष 2021-22 के आर्थिक सर्वेक्षण में इसका जिक्र करते हुए मंगलवार को आने वाले आम बजट में कृषि क्षेत्र को आगे बढ़ाने वाले संभावित क्षेत्रों पर विशेष जोर देने का संकेत दिया गया है। सर्वेक्षण रिपोर्ट में स्पष्ट संकेत दिया गया है कि एमएसपी के सहारे फसल विविधीकरण (क्राप डाइवर्सिफिकेशन) को आगे बढ़ाने को आम बजट में विशेष महत्व दिया जाएगा। आयात निर्भरता घटाने के लिए तिलहन, दलहन और बागवानी फसलों के साथ पशुधन विकास, डेयरी और मत्स्य क्षेत्र को प्राथमिकता दी जा सकती है। इन्हीं क्षेत्रों के सहारे कृषि क्षेत्र की विकास दर को भी उछाल मिल सकती है।

आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में दिया गया कृषि क्षेत्र की समस्याओं का विस्तार से ब्यौरा

संसद में पेश आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में कृषि क्षेत्र की समस्याओं का विस्तार से ब्यौरा दिया गया है। सीमित प्राकृतिक संसाधनों के बीच उत्पादकता बढ़ाने वाली प्रजातियों के उन्नयन पर जोर दिया गया है। ढांचागत विकास के साथ अन्य जरूरी क्षेत्रों को प्रोत्साहन की जरूरत पर बल दिया गया है। सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक बीते वित्त वर्ष के दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ी है। गेहूं, चावल व अन्य अनाज की उत्पादकता दर दो से तीन प्रतिशत के बीच रही है। इसके मुकाबले दलहनी फसलों की वार्षिक विकास दर 7.9 प्रतिशत और तिलहनी फसलों की 6.1 प्रतिशत दर्ज की गई है। घरेलू मांग व आपूर्ति के हिसाब से देखें तो गेहूं व चावल जैसे अनाज वाली फसलों का जरूरत से ज्यादा स्टाक पड़ा हुआ है। इसके मुकाबले दाल व खाद्य तेलों के लिए आयात निर्भरता बनी हुई है। इस पर सालाना लगभग एक लाख करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा व्यय करनी पड़ती है।