नई दिल्ली, । केरल उच्च न्यायालय ने सोमवार को सामाजिक कार्यकर्ता रेहाना फातिमा (Rehana Fathima) को राहत दी है।केरल हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट मामले में उन्हें बरी करते हुए कहा कि हमारे समाज में किसी भी व्यक्ति को अपने शरीर पर स्वायत्तता का अधिकार है।
जानें क्यों हुआ मुकदमा दर्ज
बता दें कि कुछ महीनों पहले रेहाना सुर्खियों में आ गईं थी। उन्होंने अर्ध नग्न शरीर(सेमी न्यूड) होकर अपने नाबालिग बेटे और बेटी से अपनी शरीर पर पेटिंग बनवाई थी। यह वीडियो सोशल मीडिया पर खूब शेयर की गई। इसके बाद उनके खिलाफ POCSO, किशोर न्याय और सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत मुकदमा दर्ज किया गया।
रेहाना ने अपने शरीर को केवल कैनवास के रूप में इस्तेमाल किया: कोर्ट
न्यायमूर्ति कौसर एडप्पागथ ने कहा,यह अनुमान लगाना संभव नहीं है कि उन्होंने अपने बच्चों का उपयोग किसी यौन कृत्यों के लिए किया था। अदालत ने कहा कि उन्होंने केवल अपने शरीर को कैनवास के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति दी, ताकि उनके बच्चे पेंटिंग कर सकें। एक महिला अपने शरीर के बारे में स्वायत्त निर्णय ले सकती हैं । यह संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा हर व्यक्ति को स्वतंत्रता दी गई है।”
इस मामले को यौन क्रिया के रूप में चित्रित नहीं किया जा सकता: कोर्ट
न्यायमूर्ति एडप्पागथ ने कहा कि एक कला परियोजना के रूप में अपने ही बच्चों द्वारा एक मां के ऊपरी शरीर पर पेंटिंग को यौन क्रिया के रूप में चित्रित नहीं किया जा सकता है और न ही यह कहा जा सकता है कि यह किसी यौन संतुष्टि के उद्देश्य से किया गया था।
कोर्ट ने आगे कहा कि इस मामले यह बात नहीं कही जा सकती कि बच्चों को गलत कार्य के लिए इस्तेमाल किया गया था। वीडियो में कामुकता का कोई संकेत नहीं है। किसी व्यक्ति के नग्न ऊपरी शरीर पर पेंटिंग करना, चाहे वह पुरुष हो या महिला, को यौन रूप से स्पष्ट कार्य नहीं कहा जा सकता है।
जानें अभियोजन पक्ष ने क्या दी दलील
हालांकि, अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि फातिमा ने वीडियो में अपने ऊपरी शरीर को उजागर किया था और इसलिए, यह अश्लील और अशोभनीय था। अभियोजन पक्ष की दलीलों को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि ‘नग्नता और अश्लीलता हमेशा पर्यायवाची नहीं होते हैं।’
अदालत ने कहा कि केरल में निचली जातियों की महिलाओं ने एक बार अपने स्तनों को ढंकने के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी थी। कोर्ट ने आगे कहा, देश के कई हिस्सों में प्राचीन मंदिरों और विभिन्न सार्वजनिक स्थानों पर अर्ध-नग्न देवताओं की मूर्तियां है और ये मूर्तियां पवित्र माने जाते हैं।”
नग्न प्रदर्शन को कभी भी अश्लील नहीं माना जा सकता: कोर्ट
कोर्ट ने आगे कहा कि पुरुषों के ऊपरी शरीर के नग्न प्रदर्शन को कभी भी अश्लील या अशोभनीय नहीं माना जाता है और न ही इसका यौन शोषण किया जाता है, लेकिन एक महिला के शरीर के साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया जाता है।
कोर्ट ने आगे कहा कि प्रत्येक व्यक्ति अपने शरीर की स्वायत्तता का हकदार है, यह लिंग पर चयनात्मक नहीं है। लेकिन हम अक्सर पाते हैं कि इस अधिकार के साथ भेदभाव किया जाता है।
अदालत ने कहा, महिलाओं को शरीर की स्वायत्तता के मामले पर धमकाया जाता है, उनके साथ भेदभाव किया जाता है, उन्हें अलग-थलग कर दिया जाता है और उनके शरीर और जीवन के बारे में चुनाव करने के लिए मुकदमा चलाया जाता है।” अदालत ने आगे कहा कि कुछ ऐसे लोग हैं जो महिला नग्नता को वर्जित मानते हैं।
न्यायमूर्ति एडप्पागथ ने कहा,”नग्नता को यौन-क्रिया से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। एक महिला के नग्न शरीर के चित्रण को भी अश्लील नहीं कहा जा सकता है।”
अभियोजन पक्ष ने यह भी तर्क दिया था कि वीडियो नैतिकता की सार्वजनिक धारणाओं के खिलाफ था और इसे देखने वाले लोगों के दिमाग पर नैतिक रूप से भ्रष्ट प्रभाव पड़ेगा।”
नैतिकता और आपराधिकता एक साथ नहीं हैं: कोर्ट
अदालत ने इस तर्क को भी यह कहते हुए खारिज कर दिया कि सामाजिक नैतिकता की धारणा स्वाभाविक रूप से व्यक्तिपरक है। अदालत ने आगे कहा,नैतिकता और आपराधिकता एक साथ नहीं हैं। जिसे नैतिक रूप से गलत माना जाता है, जरूरी नहीं कि वह कानूनी रूप से गलत हो।”