पटना

पटना: बच्चे फिर न भूल जायें क्लास और शिक्षक उनके नाम


(आज शिक्षा प्रतिनिधि)

पटना। पढ़ाई के लिए स्कूल खुलने पर कहीं बच्चे भूल न जायें अपने क्लास का नाम। बच्चों जैसा हाल ही शिक्षकों का भी होने वाला है। कि, कहीं अपनी कक्षाओं के बच्चों के नाम शिक्षक भी न भूल जायें।

यह संभावना इसलिए जतायी जा रही है, क्योंकि कोरोना की पहली लहर के बाद जब पढ़ाई के लिए स्कूल खुले, तो पहुंचे ज्यादातर बच्चे यह भूल चुके थे कि वे किस क्लास में हैं। और तो और, अपने क्लास के हर बच्चे को नाम से पुकारने वाले क्लासटीचर ज्यादातर बच्चों के नाम भूल चुके थे। क्लास और बच्चों के नाम भूलने-भुलाने का किस्सा सुनाने के पहले आपको स्कूलों और उनमें पढ़ने वाले बच्चों की संख्या बता दें। राज्य में पहली से बारहवीं कक्षा की पढ़ाई वाले सरकारी स्कूलों की संख्या तकरीबन 80 हजार है। इनमें पढ़ने वाले बच्चों की संख्या तकरीबन दो करोड़ दस लाख है। 80 हजार स्कूलों में 43 हजार 1ली से 5वीं, 29 हजार में 1ली से 8वीं और आठ हजार में 9वी से 10वीं-12वीं कक्षा तक की पढ़ाई वाले हैं। इसके साथ ही 1ली से 8वीं तक की पढ़ाई वाले 108 प्रारंभिक एवं 72 सहायताप्राप्त गैरसरकारी (अल्पसंख्यक सहित) माध्यमिक विद्यालय हैं। 715 प्रस्वीकृत व स्थापना की अनुमतिप्राप्त माध्यमिक विद्यालय हैं, जिन्हें सरकार उनके मैट्रिक के रिजल्ट पर अनुदान देती है।

तो, बात पिछले साल यानी वर्ष 2020 से शुरू करते हैं। मार्च का महीना शुरू हो चुका था। स्कूलों में वार्षिक परीक्षा की तैयारी चल रही थी। 1ली से 8वीं कक्षा की परीक्षा मार्च के अंतिम हफ्ते में थी। मार्च के अंतिम हफ्ते में ही 9वीं की परीक्षा भी थी। इन कक्षाओं के बच्चे उसके अगले माह अप्रैल में नयी कक्षा में जाने वाले थे। इसलिए कि, अप्रैल में ही स्कूलों में नया सेशन शुरू होने वाला था। 11वीं की परीक्षा अप्रैल में होनी थी। कि, अचानक कोरोना ने दस्तक दे दी। स्थिति के मद्देनजर 13 मार्च को तत्काल प्रभाव से स्कूल-कॉलेज सहित तमाम शिक्षण संस्थानों को बंद करने का फैसला लिया गया।

22 मार्च को राष्ट्रीय स्तर पर जनता कर्फ्यू लगा एवं 24-25 मार्च की रात्रि से राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन लगा। नतीजतन, 1ली से 9वीं एवं 11वीं कक्षा की परीक्षा नहीं हो पायी। इन कक्षाओं के बच्चों को बिना परीक्षा ही अगली कक्षा में प्रोन्नति दे दी गयी। जब अनलॉक शुरू हुआ, तो 28 सितंबर से 33 फीसदी बच्चों की उपस्थिति के साथ मार्गदर्शन कक्षा के नाम पर 9वीं से 12वीं के स्कूल खोले गये, लेकिन कोरोना के खौफ के चलते बच्चे नहीं पहुंचे। खैर, चार जनवरी से पचास फीसदी उपस्थिति के साथ जब 9वीं से 12वीं की पढ़ाई शुरू हुई, तो बच्चों की उपस्थिति थोड़ी बढ़ी।

इसमें चौंकाने वाली बात यह रही कि वर्ष 2020 के मार्च के बाद वर्ष 2021 के जनवरी में पहुंचे 12वीं के ज्यादातर बच्चे अपने क्लास रौल नम्बर तक भूल चुके थे। इनमें ऐसे छात्र-छात्रा भी थे, जिन्हें यह भी याद नहीं था कि भाषा समूह में उन्होंने क्या रखा है। आर्ट्स में तो ऐसे भी विद्यार्थी थे, ऐक्षिक विषयों में भी गड़बड़ा रहे थे। ऐसी ही स्थिति 1ली से 8वीं की पढ़ाई वाले स्कूलों में रही। इन स्कूलों के 1ली से 7वीं के बच्चे प्रोन्नति से पहुंच तो गये थे 2री से 8वीं कक्षा में, लेकिन वे तय नहीं कर पा रहे थे कि पहले वाले क्लासरूम में बैठें या नये वाले में।

ऐसा ही 1ली से 5वीं की पढ़ाई वाले स्कूलों के बच्चों के साथ भी हुआ। 1ली से 5वीं वाले स्कूल वर्ष 2021 में एक मार्च से खुले। मोटे तौर पर साल भर बाद स्कूल पहुंचे बच्चों में ज्यादातर तो नयी कक्षा के बदले पुरानी कक्षा में ही जा बैठे थे। इतने पर ही कहानी खत्म नहीं हुई। अपनी कक्षा के बच्चों को नाम से पुकारने वाले ऐसे भी क्लासटीचर निकले, जिन्हें दिमाग पर जोर देने के बाद बच्चों के नाम याद नहीं आ रहे थे।

तो, एक माह ही गुजरे थे कि कोरोना कि कोरोना की दूसरी लहर में एक बार फिर पांच अप्रैल से स्कूलों के दरवाजे बच्चों के लिए बंद हो गये। पिछले साल की तरह ही 1ली से 8वीं कक्षा के बच्चों को बिना परीक्षा अगली कक्षा में प्रोन्नति मिल गयी है। जब स्कूल खुलेंगे, तो बच्चे नयी कक्षा में बैठेंगे। लेकिन, इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि बच्चों को अपना क्लास और शिक्षकों को उनके नाम याद ही रहेंगे।