यदि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यह प्रस्ताव पारित हो जाता है तो मोहिउद्दीन औरंगजेब आलमगीर और अली काशिफ को वैश्विक आतंकी घोषित किया जा सकेगा। फ्रांस द्वारा भारत के इस प्रकार के सहयोग की सूचना ऐसे समय में आई है जब फ्रांस की विदेश मंत्री 14-15 सितंबर के बीच भारत आ रही हैं। उल्लेखनीय है कि पठानकोट और पुलवामा आतंकी हमलों के मास्टरमाइंड रहे इन दोनों आतंकियों को पिछले साल गृह मंत्रालय ने अवैधानिक क्रियाकलाप (रोकथाम) अधिनियम के तहत आतंकी घोषित किया था।
पाकिस्तान का औरंगजेब आलमगीर बीते वर्षों पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों पर हमला करने का मुख्य षड्यंत्रकारी और घुसपैठ कमांडर था। वहीं अली काशिफ 2016 में पठानकोट एयर फोर्स स्टेशन पर आतंकी हमलों का दोषी है। इन दोनों को वैश्विक आतंकवादी तभी घोषित किया जा सकेगा जब सुरक्षा परिषद के किसी भी स्थायी सदस्य द्वारा इस मुद्दे पर वीटो का प्रयोग न किया जाए।
पूर्व में आतंकियों को वैश्विक आतंकी घोषित करवाने के प्रस्तावों पर चीन वीटो पावर लगाता रहा है जिससे यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में सुधार की जरूरत है। चीन का पाकिस्तान के साथ सामरिक, आर्थिक, कूटनीतिक संबंध हो इसमें कोई समस्या नहीं है, लेकिन आतंकियों को वैश्विक मंचों पर बचाना चीन की साख को इतना कमजोर करेगा जिसका अंदाजा शायद उसे अभी नहीं है। चीन को भारत, अमेरिका, जापान जैसी शक्तियों से आर्थिक सामरिक प्रतिस्पर्धा करने का इतना तुच्छ मार्ग नहीं अपनाना चाहिए।
चीन को लगता है कि पाकिस्तानी आतंकी संगठनों और आतंकियों को संरक्षण देकर वह भारत, अमेरिका, फ्रांस, जापान और आस्ट्रेलिया जैसे देशों पर दबाव डाल सकता है। जब विश्व के सबसे ताकतवर देश ही संयुक्त राष्ट्र में आतंक के मुद्दे पर दोहरा चरित्र निभाते नजर आएं, तो इससे बड़ी विडंबना क्या होगी। जिन देशों को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता इसलिए दी गई थी कि वे वैश्विक शांति और सुरक्षा को बनाने के लिए यूएन के देशों को नेतृत्व देंगे, यदि वही भक्षक जैसा बर्ताव करने लगें तो सवाल यूएन जैसी संस्था पर भी उठने लगता है। चीन ने कुछ ही माह पहले संयुक्त राष्ट्र में लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े एक बड़े आतंकी को बचाया।
पाकिस्तानी आतंकी अब्दुल रहमान मक्की को वैश्विक आतंकी घोषित करने के भारत और अमेरिका के साझा प्रस्ताव पर चीन ने सुरक्षा परिषद में अड़ंगा डाल दिया था। चीन ने यूएन में जिस मक्की को बचाया उसे अमेरिका ने पहले ही आतंकी का दर्जा दे रखा है। मक्की उसी हाफिज सईद का संबंधी है जो 26/11 के मुंबई आतंकी हमले का मास्टरमाइंड था। मक्की को यूएन के बैनर तले वैश्विक आतंकी घोषित करवाने के लिए भारत और अमेरिका ने यूएनएससी में एक संयुक्त प्रस्ताव दिया था जिस पर चीन ने अपने विशेषाधिकारों का इस्तेमाल करते हुए रोक लगा दी। चीन नहीं चाहता कि मक्की को वैश्विक आतंकी घोषित किया जाए।
अमेरिका ने अपने डिपार्टमेंट आफ स्टेट्स रिवार्ड्स फार जस्टिस प्रोग्राम के तहत मक्की के बारे में सूचना देने वाले को 20 लाख डालर का पुरस्कार देने की घोषणा कर रखी है। मक्की लश्कर-ए-तैयबा के लिए काम करता है। इससे पहले चीन मलेशिया और तुर्की (अब तुर्किए) के साथ मिलकर फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स में पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से ब्लैक लिस्ट होने से बचा चुका है। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स में नियम है कि किसी मुद्दे को तीन सदस्य देश ब्लाक कर दें तो वह आगे नहीं बढ़ पाएगा। इससे पहले भी 2019 में जब भारत ने पुलवामा आतंकी हमले के मास्टर माइंड मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी और उसके संगठन जैश-ए-मोहम्मद को वैश्विक आतंकी संगठन घोषित कराने के लिए यूएनएससी में प्रस्ताव किया था तो चीन ने वीटो पावर लगा दिया था और आतंकवाद और पाकिस्तान के प्रति अपने प्रेम का इजहार किया था। यूएनएससी में चीन ऐसा कारनामा करने वाला अकेला देश था।
वर्ष 2009 में भी भारत ने मसूद अजहर के विरुद्ध ऐसा प्रस्ताव किया था। वर्ष 2016 में भारत ने सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस के साथ मिलकर यही प्रस्ताव किया। यूएन की िवशेष अनुमोदन समिति के तहत इन देशों ने मसूद को प्रतिबंधित करने का प्रस्ताव किया था। मसूद अजहर ही 2016 के पठानकोट आतंकी हमले का मास्टर माइंड था। वर्ष 2017 में भी ऐसा ही प्रस्ताव िदया गया था, लेकिन चीन ने हर बार ऐसे यूएन प्रस्तावों को ब्लाक कर मसूद अजहर और जैश-ए-मोहम्मद को बचा लिया। इन सभी बातों से यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि पाकिस्तान को अपने रणनीतिक साझेदार, स्वाभाविक साझेदार और प्रमुख रक्षा साझेदार का दर्जा दे चुका चीन पाकिस्तान के आतंकियों और आतंकी संगठनों के हितों पर तमाम वैश्विक मंचों पर कोई आंच नहीं आने देता और इससे आतंकवाद से निपटने के वैश्विक प्रयासों को झटका लगता है।